तन मन जन: रामदेव के दावे और IMA का गुस्सा


रामदेव एवं इन्डियन मेडिकल एसोसिएशन (आइएमए) के बीच कोरोनाकाल में उठे विवाद को आयुर्वेद बनाम एलोपैथी का विवाद नहीं माना जाना चाहिए। यह विवाद दरअसल रामदेव जी के पतंजलि व दिव्य फार्मेसी की बहुप्रचारित दवा कोरोनिल के कारोबार एवं उसके भ्रामक प्रचार पर आइएमए की आपत्ति से जुड़ा है। इसका एक और कारण यह भी हो सकता है कि कोरोना संक्रमण को डील करने में केन्द्र सरकार की विफलता को छुपाने के लिए यह सारा विवाद खड़ा किया गया हो ताकि लोगों का ध्यान बंटाया जा सके।

इसमें कोई शक नहीं कि दुनिया के लिए एक नये वायरस संक्रमण कोविड-19 के रोकथाम व उपचार में अभी तक कोई स्पष्ट दिशानिर्देश सामने नहीं हैं, फिर भी एलोपैथी की दवाओं का प्रयोग कर कोविड-19 के मरीजों के इलाज व बचाव का प्रयास किया जा रहा है। ऐसा ही प्रयास आयुर्वेद, युनानी एवं होमियोपैथी के चिकित्सकों द्वारा भी किया जा रहा है, लेकिन स्वास्थ्य विभाग पर एलोपैथी के वर्चस्व के कारण होमियोपैथी, आयुर्वेद एवं युनानी चिकित्सा पद्धतियों को कोरोना संक्रमण से बचाव के लिए न तो सराहना मिल रही है और न ही मान्यता।

देशी चिकित्सा पद्धतियों को लेकर एलोपैथी के चिकित्सकों का नजरिया पहले से ही तंग है। ये अलग बात है कि एलोपैथी के चिकित्सक अपनी प्रैक्टिस में आयुर्वेद की कई दवाओं को स्थायी रूप से शामिल कर चुके हैं, लेकिन यदि कोई आयुर्वेद चिकित्सक एलोपैथी की दवा किसी मरीज को लिख दे तो वह आपराधिक मामला बन जाता है। ऐसे ही होमियोपैथी के उपचार के दावों पर भी एलोपैथिक चिकित्सा लॉबी को शुरू से ही आपत्ति है। वर्तमान कोरोनावायरस संक्रमण में भी विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्लूएचओ) एवं आइसीएमआर होमियोपैथी की दवाओं को बचाव एवं उपचार के लिए वैश्विक स्तर पर खुली छूट देने के खिलाफ है। जाहिर है कि बड़ी दवा कम्पनियां एवं एलोपैथी की लॉबी महामारी में दवा व्यापार के एकाधिकार को बनाये रखने के लिए हर नैतिक-अनैतिक हथकण्डे अपनाने में जरा भी नहीं हिचकती। स्वास्थ्य विभाग और सरकार पर भी एलोपैथिक दवा लॉबी का प्रभाव स्पष्ट दिखता है। ऐसे में आयुर्वेद के नाम पर श्री रामदेव की कम्पनी दिव्य फार्मेसी के कोरोनिल के दावे को भला ये कैसे सहन करेंगे?

योग से आयुर्वेदिक दवा व्यवसाय में शिफ्ट हुए रामदेव एवं उनके शिष्य बालकृष्ण के आयुर्वेदिक दवाओं के दावे बिल्कुल वैसे ही हैं जैसा कि वे योग से दुनिया की अधिकांश बीमारियों को खत्म कर देने का दावा करते रहे हैं। शुरू में रामदेव जी दवाओं के ही खिलाफ थे। वे दवाओं को गैरजरूरी बताते थे और उनका बहुप्रचारित मंत्र था- ‘‘करो योग रहो निरोग।’’ आयुर्वेदिक एवं हर्बल दवाओं और खाद्य व्यवसाय में आने के बाद रामदेव एवं बालकृष्ण का योग से ज्यादा आयुर्वेद पर फोकस बढ़ा और देखते ही देखते सैकड़ों करोड़ का एक बड़ा व्यापारिक साम्राज्य खड़ा हो गया।

पतंजलि के दिव्य फार्मेसी के आयुर्वेदिक दवाओं के साथ-साथ कई भ्रामक दावे भी चर्चा में रहे हैं, जैसे पुत्र प्राप्ति के लिए दवा, मधुमेह एवं उच्च रक्तचाप को जड़ से खत्म करने की दवा आदि। अभी कोरोनावायरस संक्रमण से बचाव व उपचार की दवा कोरोनिल को लेकर रामदेव जी ने एक भ्रामक दावा किया कि उनकी दवा को डब्लूएचओ से मान्यता मिल चुकी है। सत्ताधारी पार्टी बीजेपी से नजदीकी का फायदा उठाकर रामदेव एलोपैथिक संस्थाओं तथा केन्द्रीय स्वास्थ्य मंत्री डॉ. हर्षवर्धन का सहारा लेकर अपना प्रचार भी करते हैं और एलापैथिक के चिकित्सकों द्वारा कोरोना संक्रमण से जूझते हुए जान दे देने का उपहास भी करते हैं। यह प्रीति और वैर दोनों एक साथ कैसे चलेगा? मगर यह रामदेव की चतुराई है कि वे एलोपैथी को गाली भी देते हैं और समय पड़ने पर उसका लाभ भी लेते हैं।

मौजूदा विवाद दरअसल रामदेव जी के कोरोना संक्रमण से बचाव एवं उपचार के लिए उनके फार्मेसी की उत्पादित दवा ‘‘कोरोनिल’’ के राष्ट्रव्यापी बाजार व व्यवसाय को लेकर है। कई राज्य सरकारों ने तो सरकारी खर्च पर कोरोनिल खरीद कर मरीजों में बंटवाया भी, लेकिन देश की 100 करोड़ जनता को ध्यान में रखकर उत्पादित दवा की वांछित बिक्री न होने से घबराये श्री रामदेव ने यह नया स्टंट किया ताकि कोरोनिल फिर से चर्चा में आ जाए। इस तिकड़म में वे कुछ कामयाब भी हुए, लेकिन इसी विवाद की आड़ में सरकार ने जनता को रामदेव एवं आइएमए के सर्कस में व्यस्त कर अपनी विफलता से लोगों को ध्यान बंटा दिया। कुल नतीजा क्या निकला पता नहीं मगर इस नूराकुश्ती ने वर्तमान सरकार के विफल कोरोना संक्रमण नियंत्रण के प्रति उत्पन्न जनाक्रोश को थोड़ा ठंडा कर दिया।

अपने देश में आयुर्वेद एवं देशी चिकित्सा पद्धतियों तथा होमियोपैथी की एक समृद्ध परम्परा रही है। कई गम्भीर रोगों तथा महामारियों में बचाव एवं उपचार के लिए प्रयुक्त होमियोपैथिक दवाओं एवं आयुर्वेदिक औषधियों की उपलब्धता के बावजूद सरकार ने कभी इन आयुष पद्धतियों को तरजीह नहीं दी। इतिहास गवाह है कि सन् 1918 में दुनिया में फैली स्पैनिश फ्लू महामारी में होमियोपैथी की दवा फास्फोरस, आसिलोकोसिनम, आर्सेनिकम अल्बम ने रोकथाम एवं उपचार में महत्वपूर्ण भूमिका निभायी थी। ऐसे ही कॉलरा (डायरिया) महामारी में होमियोपैथिक दवा कैम्फर, क्यूप्रम मेटालिकम, वेरेट्रम अल्बम आदि की भूमिका सराहनीय थी। सवाल है कि एकदम सस्ती और प्रामाणिक वैज्ञानिक चिकित्सा पद्धति होमियोपैथी के प्रति एलोपैथिक लॉबी के उदासीनता की वजह महज व्यावसायिक है? देश और दुनिया की बड़ी मुनाफे वाली दवा कम्पनियों की लॉबी कभी भी किसी पारम्परिक चिकित्सा पद्धति को किसी भी गम्भीर बीमारी या महामारी के उपचार या बचाव में सक्रिय नहीं देखना चाहती।

कोरोनावायरस संक्रमण से बचाव एवं उपचार के लिए होमियोपैथी के कई विद्वानों ने व्यक्तिगत एवं संस्थागत अनुसंधान एवं प्रयोग किये मगर देश और दुनिया की स्वास्थ्य एवं दवा नियामक संस्थाओं ने इन दवाओं के क्लिनिकल ट्रायल की अनुमति तक नहीं दी। बाद में बड़ी मशक्कत के बाद मैं और मेरे कुछ मित्र चिकित्सकों ने दबाव बना कर दिल्ली में कोरोना संक्रमण में बचाव व उपचार के लिए होमियोपैथिक दवा के क्लस्टर क्लिनिकल ट्रायल की अनुमति दिल्ली सरकार के स्वास्थ्य मंत्रालय से हासिल की। एलोपैथिक दवा लॉबी का स्वास्थ्य मंत्रालय और विभाग पर इतना दबदबा है कि वे होमियोपैथी और आयुर्वेदिक दवाओं के कोरोना संक्रमण में उपचार एवं बचाव के प्रयोग को भी प्रमाणित करते हैं और इसके लिए वे आयुष विभाग का भी सहारा लेते हैं।

तन मन जन: कोरोना वायरस संक्रमण की विभीषिका और दवा व्यापार का खेल

फिलहाल हम रामदेव जी के पतंजलि की दवा ‘‘कोरोनिल’’ के विवाद पर ही लौटते हैं। दरअसल यह जड़ी बूटियों से बनी दवा फ्लू जैसे लक्षणों को नियंत्रित करती है, लेकिन सीटीआरआइ के निबन्धन दस्तावेजों के अनुसार पतंजलि ने दावे और परिणाम के साथ छेड़छाड़ की है। पतंजलि से उनकी दवा कोरोनिल एवं श्वासारि बटी के घटक बताने को कहा गया। क्लिनिकल ट्रायल के सैम्पल साइज एवं लैब, आचार समिति की अनुशंसा आदि पर भी प्रश्नचिन्ह थे लेकिन रामदेव ने अपने प्रभाव और तिकड़म के सहारे कोरोनिल को कोरोना की दवा के रूप में लांच कर दिया। बाद में भारत सरकार के आयुष मंत्रालय ने इस बाबत पतंजलि से जानकारी मांगी और स्पष्ट किया कि उसके संज्ञान में इस दवा के निर्माण की कोई जानकारी नहीं है। बाद में रामदेव भी अपने दावे से पलट गये और कोरोनिल को कोरोना संक्रमण के इलाज या बचाव की दवा के रूप में बताने के दावे से इनकार कर दिया।

बीजेपी और आरएसएस की यह सोची समझी चाल है कि एलोपैथी बनाम आयुर्वेद का मुद्दा खड़ा करें ताकि कोरोना प्रबन्धन में सरकार की विफलता को छुपाया जा सके। अब यह जगजाहिर है कि मोदी सरकार कोरोनावायरस संक्रमण से निपटने में बुरी तरह फेल हुई है। कोरोना संक्रमण के आरम्भिक दौर (मार्च 2020) से अब तक कोरोना संक्रमण से लोगों को बचाना सरकार की प्राथमिकता में कहीं नहीं दिखा। शुरू से लेकर अभी तक कोरोना संक्रमण से बचाव व उपचार के लिए जारी गाइडलाइन तक विवादों में रही। स्वास्थ्य मंत्रालय पर केन्द्रीय स्वास्थ्य मंत्री डॉ. हर्षवर्धन से ज्यादा पीएमओ कार्यालय का दखल रहा। मास्क, सेनेटाइजर, डाक्टरों के लिए पीपीई किट, वेंटिलेटर आदि की खरीद में भयंकर भ्रष्टाचार सामने आया। कोरोना संक्रमण से बचाव के नाम पर पी.एम. केयर फंड के खर्च भी सवालों के घेरे में हैं। कोरोना राहत पैकेज का 20 लाख करोड़ रुपया कहीं जमीन पर दिख नहीं रहा। वैक्सीन के निर्माण से लेकर वितरण तक मोदी सरकार का दखल और विफलता अब जगजाहिर है। देश के बजट 2020-21 में 35 हजार करोड़ रुपये वैक्सीन के नाम पर किये गये आवंटन के बावजूद राज्य सरकारों को विश्व बाजार से सीधे टीका खरीदने के लिए कहना निरी मूर्खता है। कोई भी अंतरराष्ट्रीय दवा कम्पनी ऐसे डील नहीं करती। बहरहाल, कोरोना नियंत्रण की तमाम सम्भावनाओं को बरबाद कर मोदी सरकार जब घिरती दिखी तो योग प्रचारक से आयुर्वेदिक दवा विक्रेता बने रामदेव को एक विवाद के साथ आगे कर दिया गया।

बालकृष्ण के आरोप पर संघ के मुखपत्र में खबर

रामदेव के सहयोगी विवादास्पद वैद्य बालकृष्ण के ताजा बयान को देखिए- वे कह रहे हैं कि एलोपैथी के चिकित्सक धर्मांतरण (हिन्दू से ईसाई बनाने) में लगे हुए हैं। इस बयान की जड़ तलाशेंगे तो आरएसएस की संलिप्तता या समर्थन साफ दिखेगा। आइएमए (भारतीय चिकित्सक संघ) के अध्यक्ष डॉ. जानटोज आस्टीन जयलाल को इंगित करते हुए बालकृष्ण का यह आरोप बिल्कुल संघी अंदाज में वैसे ही है जैसे संबित पात्रा जैसा बीजेपी का प्रवक्ता श्रीमती सोनिया गांधी पर सार्वजनिक टिप्पणी करते हुए उनके ईसाई धर्म का मजाक उड़ाता है। रामदेव-आइएमए विवाद में इन बिन सिर पैर की बातों की आड़ लेकर दरअसल वे अपने हर्बल दवाओं का धंधा चमकाना चाहते हैं। पतंजलि की अब तक की आयुर्वेदिक दवाओं को देखें तो जड़ी बूटियों में केमिकल मिलाकर बनाये गये हर्बल सौंदर्य उत्पाद या खाद्य पदार्थों के संदिग्ध रूप में पकड़े जाने की कई घटनाएं संज्ञान में हैं। पतंजलि पर खाद्य तेल, घी, शहद आदि में मिलावट के कई मामले सामने आने के बाद भी रामदेव की पतंजलि कम्पनी या किसी व्यक्ति के खिलाफ कोई ठोस कार्यवाही की गई हो ऐसा नहीं दिखा।

एलोपैथी में तमाम बुराइयां हैं जिसे दुनिया की सम्पन्न और ताकतवर दवा कम्पनियां अपने प्रभाव से ढंकती रहती हैं और दवा का साम्राज्य कायम है। इसमें भी कोई सन्देह नहीं कि रिसर्च एवं अध्ययन के नाम पर अनेक जालसाजी में लिप्त बड़ी बहुराष्ट्रीय दवा कम्पनियां जहर बेचकर अकूत मुनाफा कमाती हैं, लेकिन विगत सात वर्षों से देश में मोदी सरकार के अतिरेक नारे और योग, आयुर्वेद के प्रति आसक्ति का ठोस परिणाम तो नहीं दिखा। बस रामदेव, सदगुरु, आसाराम जैसे चर्चित कथित स्वयंभू आध्यात्मि‍क गुरुओं का आयुर्वेदिक व हर्बल दवाओं का कारोबार चल निकला। श्री रामदेव की पतंजलि की दवाओं के खिलाफ आयुर्वेद की कई प्राचीन पारम्परिक दवा निर्माता कम्पनियां दबे जुबान से आवाज उठाती रही हैं लेकिन सत्ता से निकटता और प्रचार माध्यमों पर अपनी पकड़ के बूते रामदेव का पतंजलि व्यापारिक तरक्की करता ही रहा है। शोध के नाम पर एलोपैथी की दवा कम्पनियों की ही तरह रामदेव के पतंजलि दवा कम्पनी के कथित वैज्ञानिक शोधों में भी कई तरह के झोल हैं। वर्ष 2005 में मैंने खुद रामदेव के पतंजलि योग पीठ में जाकर उनसे मिलकर उनके शोध और दावों के बारे में जानना चाहा था लेकिन कोई भी संतोषजनक जवाब नहीं मिला था। मैंने तब कादम्बि‍नी पत्रिका में इस विषय पर अपने लम्बे लेख में इसका खुलासा किया था। (फरवरी 2005)

दरअसल रामदेव, अन्ना हजारे, सदगुरू, श्रीश्री रविशंकर आदि संतों के वेश में बीजेपी-आरएसएस के प्रवक्ता हैं। इन सभी के आश्रमों में संघ की उपस्थिति और उनकी दखल स्पष्ट देखी जा सकती है। देश का दुर्भाग्य है कि देश के असली शहीदों और राष्ट्र निर्माताओं को बदनाम कर संघ रामदेव जैसे मोहरों के माध्यम से दरअसल भारतीयता को ही नष्ट कर देना चाहता है। लोगों में भ्रम इस बात का है कि संघ भारतीयता को स्थापित करना चाहता है। वास्तव में ऐसा नहीं है। रामदेव, बालकृष्ण आदि का बौद्धिक स्तर देखिए जो वास्तविक विज्ञान को कथित विज्ञान से चुनौती देकर देश में पाखण्ड को स्थापित करना चाहते हैं। आयुर्वेद के नाम पर पुत्रप्राप्ति का नुस्खा, सौंदर्य के तमाम प्रसाधन, फटी जीन्स, मिलावटी जूस, शहद आदि बेचकर रामदेव बहुराष्ट्रीय कम्पनियों को देसी उत्पादों से चुनौती देते दिख सकते हैं, लेकिन वास्तव में वे आर्यसमाजी होकर भी मूर्ति पूजा के छद्म समर्थक की तरह देश में ब्राह्मणवाद को स्थापित करने की संघी योजना के एक कार्यकर्ता की तरह काम कर रहे हैं।

अपनी दवा कोरोनिल के व्यावसायिक गतिरोध से क्षुब्ध होकर रामदेव ने एलोपैथी का उपहास उड़ाते हुए जो आन्तरिक सभा में बोला वह एलोपैथिक चिकित्सकों के संगठन आइएमए को नागवार गुजरा। रामदेव ने एलोपैथी को ‘‘स्टूपिड’’ एवं ‘‘दिवालिया विज्ञान’’ बता दिया। इतना ही नहीं, उन्होंने एक बार योग कराते हुए लाइव यह भी कह दिया कि वातावरण में भरपूर आक्सीजन है फिर भी लोग आक्सीजन सिलेण्डर ढूंढ रहे हैं? दरअसल, जब किसी प्राचीन विज्ञान को आधुनिक विज्ञान के बरअक्स खड़ा करने या दिखाने में व्यक्ति अतिरेक एवं पाखण्ड का सहारा लेने लगता है और उसे सत्ता का समर्थन होता है तो वह ऐसे बड़बोले दावे या उपहास करने को अपना घमण्ड मान लेता है। रामदेव के बिगड़े बोल इसी घमण्ड एवं हताशा के परिणाम हैं।

इस घटना को मैं रामदेव के झूठ और एलोपैथी की लूट के बीच की बहस के रूप में देखता हूं, न कि आयुर्वेद बनाम एलोपैथी के रूप में। फिलहाल मुझे संत कबीर की यह पंक्तियां याद आ रही हैं-

ऐसी वाणी बोलिए, मन का आपा खोय,
औरन को शीतल करे, आपहु शीतल होय।

लेखक जन स्वास्थ्य वैज्ञानिक एवं राष्ट्रीय पुरस्कार प्राप्त होमियोपैथिक चिकित्सक हैं


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