‘अगर तुम पंजाब को समझना चाहते हो, तो लाशें गिनते जाओ’!

हथियार आये कैसे? हरित क्रान्ति में क्रान्ति कहां थी? सीमा पर बसे लोगों को हम किस देश का नागरिक मानते हैं? इन समस्याओं को बने रहने देने में केंद्र या राज्य सरकारों का कितना योगदान है? ऐसे अनगिन प्रश्न इस किताब में हैं जो हमें पंजाब के साथ-साथ स्थानीय जगहों से जुड़े मसलों पर विचारने के लिए प्रेरित करते हैं।

Read More

बुधिनी: एक दुर्लभ मुलाकात की एक अभूतपूर्व साहित्यिक परिकथा

लेखिका सारा जोसेफ ने वापस जाकर बुधिनी के बारे में अधिक से अधिक पढ़ा। उनसे सम्बंधित सूचनाओं का संधान किया। उन्होंने उस जगह की यात्रा का निर्णय किया जहां उनकी नायिका बुधिनी रहती थी। उन्हें यह बताया गया था कि उसकी मृत्यु वर्षों पूर्व हो गयी, हालाँकि उनकी इस यात्रा में अप्रत्याशित और नाटकीय मोड़ तब आया जब वह सद्यः जीवित बुधिनी से स्वयं मिलीं।

Read More

अमरकांत के कथा साहित्य में स्त्री की उपस्थिति

आज कथाकार अमरकांत की जयन्‍ती है। उनके लेखन का दायरा निम्नमध्यवर्ग और मध्यवर्ग की समस्याओं के आसपास केन्द्रित रहा है। इस समाज की आर्थिक, धार्मिक, सामाजिक और सांस्कृतिक स्थिति को अमरकांत ने व्यापक विस्तार के साथ चित्रित किया है।

Read More

शेरनी: जंगल से निकाल कर जानवरों को म्यूज़ियम में कैद कर दिए जाने की कहानी

फ़िल्म की कहानी और इसके बीच स्थानीय राजनीति, अफ़सरशाही, प्रशासनिक नाकामी, पर्यावरण का दोहन और अवैध शिकार जैसे खलनायक शेरनी को बचाने का प्रयास करती फ़िल्म की ‘शेरनी’ विद्या बालन को बार-बार रोकते हैं और अंत में इसमें सफल भी हो जाते हैं।

Read More

No Land’s People: डिटेन्शन कैंप का रास्ता कानून से होकर जाता है

पूरी किताब नागरिकता ढूंढो के सरकारी और प्रायोजित अभियान की कलई खोलती है। खासकर ‘डिटेन्शन और डिपोर्टेशन’ पर विस्तृत चर्चा करने वाला अध्याय जब इस सरकारी और राजनीतिक कवायद से उपजी निराशा और हताशा को बयान करता है, तब कलेजा चाक हो उठता है।

Read More

दक्षिणावर्त: थोपी गयी महानताएं और खंडित बचपन के अंतर्द्वंद्व

एक तरफ तो तालिबानी शासन से मुक्ति, जिस दौरान गुल-मकई के छद्म नाम से लिखकर मलाला प्रख्यात हुईं, दूसरी तरफ इंग्लैंड का खुलापन और तीसरी तरफ इस्लाम का शिकंजा, जहां तयशुदा नियमों और संहिता के अलावा कुछ भी बोलना शिर्क है, गुनाह-ए-अज़ीम है। हो सकता है कि मलाला ने शादी के विषय में खुलकर बोल दिया हो, वह पश्चिम के खुलेपन से प्रेरित रही हों, लेकिन वह अपने देश की ‘कल्चरल एंबैसडर’ भी तो हैं और इसीलिए हिजाब, इसीलिए उनके पिता की सफाई, आदि!

Read More

‘साइना’ और ‘जामुन’: पुरुष वर्चस्व को चुनौती देती आज़ाद स्त्रियों की कहानियां

आज लड़कियां विभिन्न क्षेत्रों में आगे बढ़कर अपने देश का नाम रोशन कर रही हैं और अपने माता-पिता से भी उनके संबंध काफी मधुर हैं, जिससे उन्होंने यह साबित कर दिखाया है कि लड़कों की चाह रखना परिवार की आवश्यकता नहीं है बल्कि हमारे समाज के दकियानूसी विचारों का परिणाम हैl

Read More

दक्षिणावर्त: दो घूंट पी और मस्जिद को हिलता देख…

टीवी सीरीज में या पूरे समाज में जो हो रहा है, वह एक-दूसरे का पूरक है या प्रतिबिंब? यदि प्रतिबिंब है तो जो बेचैनी, जो क्रांति न्यूज-चैनल्स को देख कर महसूस होती है, वह मोटे तौर पर समाज में अनुपस्थित क्यों है, जो समस्याएं या टकराव बहुमत वाले समाज में हैं, वह टीवी या सिनेमा से अनुपस्थित क्यों है?

Read More

1857 के पुरबिया विद्रोहियों का एक ऐतिहासिक दस्तावेज़

उम्मीद है साम्प्रदायिक होते समाज विशेषकर पूरबी उत्तर प्रदेश को फिर से पटरी पर लाने में यह पुस्तक मील का पत्थर साबित होगी। यह इस पुस्तक की अन्य प्रमुख विशेषताओं में से एक है। लेखक इसके लिए साधुवाद का पात्र हैं।

Read More

अज्ञेय को प्रचलित मुहावरों में समझना मुश्किल है, उन्हें फिर से समझने की कोशिश की जानी चाहिए!

आज जब दुनिया की राजनीति से शीतयुद्ध पूरी तरह खत्म हो गया है और मनुष्यता पर अन्य कई तरह के खतरे हावी हो रहे हैं, तब अज्ञेय अधिक साहस के साथ हमारे पक्ष में होंगे। वह हमें अपने भीतर झाँकने और खुद को समझने में सहयोग कर सकेंगे। अज्ञेय की खासियत यही है कि हर बार आप उन्हें एक ही रूप में अनुभव नहीं कर सकते।

Read More