दिल्ली दंगे पर अल्‍पसंख्‍यक आयोग की पूरी फैक्ट फाइंडिंग रिपोर्ट यहां पढ़ें

पिछले छह महीने में पहली बार सरकार के अंग ने दिल्‍ली पुलिस और केंद्र में सत्‍तारूढ़ दल के नेताओं को कठघरे में खड़ा किया है।

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गुना प्रकरण: शोषण और दमन का ऐक्शन रीप्ले

जैसा कि इस तरह के अधिकांश मामलों में होता है सरकार बड़े धीरज और शांति से इस बात की प्रतीक्षा कर रही है कि मीडिया कोई नई सुर्खी ढूंढ ले और बयानबाजी कर रहे विरोधी दल इस मामले से अधिकतम राजनीतिक लाभ लेने के बाद अधिक सनसनीखेज और टिकाऊ मुद्दा तलाश लें

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सियासी वजूद बचाने के लिए जूझती कांग्रेस और जनता की वापसी का सवाल

ऐसा नहीं है कि कांग्रेस पार्टी में इस तरह की संकटपूर्ण स्थिति पहली बार उत्पन्न हुई हो। इससे पहले भी संकट की स्थितियाँ पैदा हुई हैं। स्वतंत्रतापूर्व कई बार ऐसी स्थितियाँ पैदा हुईं और पार्टी विभाजित हुई, लेकिन तब इसका आधार वैचारिक था।

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बुनियादी मुद्दों के एनकाउंटर का दौर

बुनियादी मुद्दों पर चर्चा से बचने के लिए व्यक्तियों को लार्जर दैन लाइफ नायकों और खलनायकों में बदला जा रहा है। विकास दुबे प्रकरण कोई अपवाद नहीं है।

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भगवान राम का भारतीय होना आरएसएस के लिए क्यों जरूरी है?

कंफ्यूजन की सबसे बड़ी वजह है कि कम्युनिस्ट ओली ने राम के अस्तित्व को खारिज नहीं बल्कि राम की सांस्कृतिक परंपरा को भारतीय हिंदुओं से झपटने की कोशिश की है.

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हय्या सोफ़िया के सांकेतिक विध्वंस ने दुनिया भर के मुसलमानों की बुनियादी दिक्कत और बढ़ा दी है

मेरी नज़र में यह घटना वैसी ही है जैसी बाबरी मस्जिद ढहने की है और वहां के सुप्रीम कोर्ट का फैसला भी वैसा ही है जैसा नवम्बर 2019 में भारत के सुप्रीम कोर्ट ने बाबरी मस्जिद के संबंध में सुनाया। तुर्की में हय्या सोफिया को ढहाया नहीं गया लेकिन सांकेतिक रूप से मानें तो यह ढहाने जैसा ही क़दम है।

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कोरोना की वैक्सीन 15 अगस्त तक लाने की ICMR की घोषणा क्या राजनीतिक दबाव में की गयी थी?

सवाल यह है कि चिकित्सा शोध की सर्वोच्च सरकारी संस्था को किसने दबाव बनाकर यह दावा करने को कहा कि 15 अगस्त 2020 तक वैक्सीन आ जाएगी? ग़ौरतलब बात यह है कि जब कि जब यह घोषणा की गयी थी और तब वैक्सीन का इंसान पर शोध आरंभ तक नहीं हुआ था.

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आत्मनिर्भर भारत के बहाने अपनी जिम्मेदारियों से मुंह मोड़ती सरकारें

2014 के लोकसभा चुनाव से पहले मोदी जी ने दावा किया था कि प्रतिवर्ष दो करोड़ लोगों को रोजगार देंगे लेकिन देश में उत्पादन विरोधी नीतियों के कारण रोजगार देने के दावे और वादे खोखले साबित हुए जबकि ठीक उसका उल्टा पब्लिक सेक्टर एव संगठित, असंगठित प्राइवेट सेक्टरों में छंटनी की प्रक्रिया बहाल कर दी गयी और करोड़ों मजदूर काम से बाहर हो गए।

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“घुमन्तू जातियों का दर्द समझने की क्षमता इस देश ने खो दी है”: गणेश एन. देवी का व्याख्यान

हमारा पिछले अस्सी साल का इतिहास अगर हमें दिखाई देता है और हमारे सीने में अगर कलेजा है तो शर्म से हमें अपनी गर्दन झुका लेनी चाहिए। जय हिंद बोलना चाहता हूं लेकिन अगर हमारे देश में घुमंतू समुदायों को इज्जत मिले, तो और गर्व से जय हिंद बोल पाऊंगा।

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मिनटों में न्याय, न्याय व्यवस्था की हत्या है इसलिए अगला नंबर किसी का भी हो सकता है!

उत्तर प्रदेश की बीजेपी सरकार ने तो उसकी हत्या की ही है, यहां के सामान्य लोगों में हत्या को लेकर कोई सवाल नहीं है बल्कि पुलिस-प्रशासन के लिए प्रशंसा के भाव हैं. उस उत्तर प्रदेश पुलिस के लिए, जिसके बारे में एक बार इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा था कि उत्तर प्रदेश पुलिस ‘डकैत’ है!

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