पहले कोरोना, अब बाढ़! क्या बिहार के मजदूर-किसानों की ज़िंदगी का कोई मोल नहीं है?

यह प्रदेश में तथाकथित विकास की असफलता को दर्शाता है, जहाँ गांव की जनता को अपनी बीमारी के अच्छे इलाज के इलाज के लिए कम से कम 3 घण्टे का सफर तय करना होता है। शुरुआती दौर में तो सैम्पल को पटना या कोलकाता भेजा जाता था, जिसकी फाइनल रिपोर्ट आते-आते एक सप्ताह से 10 दिन तक लग जाते थे।

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ढहते घरों की गहराती दरारों पर इश्‍तहार चिपकाती सियासत और मीडिया

19 जुलाई तक जारी हुए आंकड़ों के अनुसार असम में 79 लोगों की जान इस विनाशकारी बाढ़ ने ले ली है, राज्य के 26 जिलों के 2678 गाँव इसकी चपेट में हैंं और हजारों एकड़ की खेती वाली ज़मीनें जलमग्न हो चुकी हैंं। बिहार में भी करीब 3 लाख लोगों पर खतरा है, राज्य की सभी मुख्य नदियाँ खतरे के निशान से ऊपर प्रवाहित हैं।

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COVID-19 के दौरान महिला-हिंसा की समानांतर महामारी पर APCRSHR-10 में चर्चा

हाल ही में संपन्न हुए एपीसीआरएसएचआर10 (10वीं एशिया पैसिफिक कांफ्रेंस ऑन रिप्रोडक्टिव एंड सेक्सुअल हेल्थ एंड राइट्स) के दूसरे वर्चुअल सत्र में महिला-अधिकार पर काम करने वाली अनेक महिलाओं ने एशिया पैसिफिक में कोविड-काल के पश्चात जनमानस के अधिकारों और विकल्पों को गतिशीलता प्रदान करने के विषय पर चर्चा करते हुए एशिया पैसिफिक में रहने वाली महिलाओं की समस्याओं की ओर ध्यान आकर्षित किया, जिनके अधिकारों के संबंध में केवल खानापूर्ति की गई है.

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UP: कांग्रेस के आंदोलन, सपा की खुशफहमी और बसपा की इंजीनियरिंग में फंसे ब्राह्मण और मुस्लिम

मायावती के इस रुख से यह साफ हो जाता है कि वह एक बार फिर ब्राह्मण समाज और मुसलमान का पूर्व की भाँति समर्थन चाहती हैं जैसा उन्हें 2007 के विधानसभा चुनाव में मिला था, जिसके बाद बसपा ने पूर्ण बहुमत की सरकार बनाई थी।

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दिल्ली दंगे पर अल्‍पसंख्‍यक आयोग की पूरी फैक्ट फाइंडिंग रिपोर्ट यहां पढ़ें

पिछले छह महीने में पहली बार सरकार के अंग ने दिल्‍ली पुलिस और केंद्र में सत्‍तारूढ़ दल के नेताओं को कठघरे में खड़ा किया है।

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गुना प्रकरण: शोषण और दमन का ऐक्शन रीप्ले

जैसा कि इस तरह के अधिकांश मामलों में होता है सरकार बड़े धीरज और शांति से इस बात की प्रतीक्षा कर रही है कि मीडिया कोई नई सुर्खी ढूंढ ले और बयानबाजी कर रहे विरोधी दल इस मामले से अधिकतम राजनीतिक लाभ लेने के बाद अधिक सनसनीखेज और टिकाऊ मुद्दा तलाश लें

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सियासी वजूद बचाने के लिए जूझती कांग्रेस और जनता की वापसी का सवाल

ऐसा नहीं है कि कांग्रेस पार्टी में इस तरह की संकटपूर्ण स्थिति पहली बार उत्पन्न हुई हो। इससे पहले भी संकट की स्थितियाँ पैदा हुई हैं। स्वतंत्रतापूर्व कई बार ऐसी स्थितियाँ पैदा हुईं और पार्टी विभाजित हुई, लेकिन तब इसका आधार वैचारिक था।

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बुनियादी मुद्दों के एनकाउंटर का दौर

बुनियादी मुद्दों पर चर्चा से बचने के लिए व्यक्तियों को लार्जर दैन लाइफ नायकों और खलनायकों में बदला जा रहा है। विकास दुबे प्रकरण कोई अपवाद नहीं है।

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भगवान राम का भारतीय होना आरएसएस के लिए क्यों जरूरी है?

कंफ्यूजन की सबसे बड़ी वजह है कि कम्युनिस्ट ओली ने राम के अस्तित्व को खारिज नहीं बल्कि राम की सांस्कृतिक परंपरा को भारतीय हिंदुओं से झपटने की कोशिश की है.

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जिसकी दुकान पर पुलिसवाले पांच साल से चाय-पकौड़ी खा रहे थे, उसी को ईनामी नक्सली कह कर उठा लिया!

गिरिडीह एसपी और राजकुमार किस्कू के परिजनों के पास मौजूद सभी साक्ष्यों को देखने से तो यही लगता है कि पुलिस की कहानी में काफी झोल है और पुलिस की कहानी पर सवाल ही सवाल है।

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