डॉ. आंबेडकर के प्रति मेरा नजरिया कैसे बना!

हम जिस जाति में जन्म लेते हैं उस जातिगत दंभ का प्रभाव हमारे समाजीकरण पर पड़ता है। सामाजिक सोच और दृष्टिकोण को निर्मित करने में जाति एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। ऐसा अवसर भारतीय जाति व्यवस्था में हर जाति को प्राप्त है क्योंकि हर जाति के ऊपर- नीचे कोई न कोई जाति है जहां एक जाति अपने से उच्च जाति की क्रियाविधि से हीनता का बोध ग्रहण करती है, वहीं अपने से निम्न जाति के प्रति व्यवहार करके श्रेष्ठताबोध को महसूस करती है।

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डॉ. आंबेडकर का सामाजिक सुधार और आज का परिदृश्य

आंबेडकर सामाजिक असमानता के ख़िलाफ़ हमेशा मुखर रहते थे। जहां कहीं भी उनको अवसर मिलता था वह इस मुद्दे को उठाते थे। संविधान सभा में लोकतान्त्रिक व्यवस्था को लेकर आंबेडकर का मानना था कि राजनीतिक लोकतंत्र से पहले सामाजिक लोकतंत्र की आवश्यकता है।

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लोकप्रिय आध्यात्मिकता की आड़ में पूंजी, सियासत और जाति-अपराधों के विमर्श का ‘आश्रम’

आश्रम सबसे महत्वपूर्ण बिन्दु यह सिखाती है कि धर्म को केवल एक पहलू से समझने की गलती नहीं करनी चाहिए। वो भी भारतीय समाज में तो और नहीं, जिसका आधार ही धार्मिक मान्यताओं पर टिका हो।

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कोरोना काल में मांग कर खाने को मजबूर हैं बाँसफोर और बहेलिया जैसी घुमंतू जातियों के लोग

कोरोना ने उनकी सम्पूर्ण रोज़ी रोटी पर ही वार किया है। ये यूपी के आजमगढ़ से आये लोग हैं और उनके समुदाय के लोग गाजीपुर बलिया, मऊ, गोरखपुर, बहराइच आदि में घूम-घूम कर रहते है। ये अपनी जाति बीन बंशीबासफोर बताते हैं जो बाँसफोर समुदाय के अंतर्गत ही आते हैं।

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