दक्षिणावर्त: या तो चतुर या फिर घोड़ा, कॉमरेड! दोनों एक साथ नहीं चलेगा

सूचनाओं के महाविस्फोट के दौर में वैसे भी गारबेज अधिक है, गरिमामय सूचना बेहद कम। अगर हम अपनी कसौटी भी एक न रखेंगे, तो मामला फिर गड़बड़ होने वाला ही अधिक है।

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दक्षिणावर्त: इंसाफ की डगर पर ‘पहचान’ की पूंजी और ‘लिन्चिंग’ का खाता

अगर पुलिस का आधिकारिक बयान दिल्‍ली में सही माना जाना है तो फिर बाकी जगह भी उसका मान रखा जाना था। अगर नहीं, तो फिर दिल्‍ली में भी झगड़े वाली थ्‍योरी का कोई अर्थ नहीं है। क्‍या पुलिस की तफ़्तीश और बयान कोई सुविधा है? जिसे जब चाहे सामने रख दें और जब चाहे गलत करार दें?

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दक्षिणावर्त: व्यक्ति के नाश की बुनियाद पर आदर्श समाज कैसे खड़ा हो सकता है?

हमारा दुर्भाग्य है कि हम आधुनिक शिक्षा नाम पर ऐसे कूड़े से दो-चार हुए हैं, जिसने किसी भी विषय पर समग्र दृष्टि डालने की हमारी क्षमता को ही खंडित कर दिया है। हमें एकरेखीय, एकपक्षीय, एकवलीय तरीके से देखना सिखाया गया है और हम इसी को लेकर गर्वित होते रहते हैं।

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दक्षिणावर्त: आस्थाएं नहीं, समूचा विमर्श ही चयनित है!

लेखक दुहराव का खतरा उठाकर भी यह सब इसलिए लिख रहा है क्योंकि यह हमारे वक्त का सच है। दोहराव और बासीपन, सत्य और असत्य के बीच का धुंधलापन, ख़बर और राय के मिटते हुए फर्क का यह काल ही हमारे जीवन का एकमात्र सच है।

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दक्षिणावर्त: ये सरकार डरी हुई है या मोदी जी महान बनने के चक्कर में हैं?

कहीं मोदी इन तथाकथित आंदोलनों को स्पेस देकर, सुरक्षा देकर प्रेशर कुकर की उसी सीटी का तो काम नहीं ले रहे, ताकि जनता बड़े औऱ असल मुद्दों को भूली रहे। आखिर, यह देश पिछले साल कोरोना की महामारी में लिपटा रहा है, अर्थव्यवस्था हलकान है, बेरोजगारी बढ़ती जा रही है और सच पूछें तो देश में फिलहाल ‘अच्छे दिन’ नहीं दिख रहे हैं।

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दक्षिणावर्त: लोकतंत्र भी चाहिए और खूंटा भी वहीं गड़ेगा, ऐसे कैसे चलेगा?

वाम विचार किस तरह पक्षपोषण करने वाले दिलफरेब तमाशों को अंजाम देता रहा है, अमेरिका की घटना के तुरंत बाद दुनिया भर में आयी प्रतिक्रियाओं को देखने से समझ में आता है।

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दक्षिणावर्त: उड़ने से पेशतर भी मेरा रंग ज़र्द था…

नया साल और मुंबई के दिन, जहां भीड़ कम है, अपार्टमेंट्स अधिक। लोग कम हैं, सोसायटियां अधिक। ऐसे ही अपार्टमेंट्स से वे ख़बरें छन कर आती हैं, जहां कोई लाश जब बदबू फैलाती है तो पुलिस उसे बरामद करती है। किसी अख़बार की बोसीदा ख़बर बनकर वह हम तक बयां होती है।

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दक्षिणावर्त: प्रधान सेवक के हाथ से क्या चीज़ें फिसल रही हैं?

भाजपा को सत्ता से 25 वर्षों तक दूर रखना है, तो 5 वर्ष के लिए सत्ता में ला दो। यह यूं ही नहीं कहा जाता।

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दक्षिणावर्त: लोकतंत्र अगर “टू मच” है तो उसका अर्थ कहां है?

सहस्राब्दि‍ के दूसरे दशक के शुरुआती वर्षों में मुद्दा आधारित विमर्श और आंदोलन को मध्‍यवर्ग का उत्‍सव बनाने का काम अन्ना हजारे-केजरीवाल की युति ने किया था, जब दिल्‍ली का खाया पीया अघाया सर्विस क्‍लास भ्रष्‍टाचार का वीकेंड विरोध आइसक्रीम खाते हुए करता था।

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दक्षिणावर्त: विकास का जबरन प्रसव कराने के नतीजे

दरभंगा एयरपोर्ट हो या एम्स, तारामंडल हो या आइटी पार्क, लुभावने वादे करने में कहीं किसी ने कोई कमी नहीं छोड़ी। एम्स इस चुनावी साल में भी कहां तक पहुंचा है, यह अल्ला मियां को ही पता है। पिछले दो चुनाव से आइटी पार्क की घुट्टी पिला रही इस सरकार के सबसे पिलपिले मंत्रियों में शामिल (जिनको हमेशा घूर कर देखने के अलावा कुछ नहीं आता) रविशंकर प्रसाद इस चुनाव में भी वह झुनझुना बेचे कि नहीं, पता नहीं।

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