दक्षिणावर्त: या तो चतुर या फिर घोड़ा, कॉमरेड! दोनों एक साथ नहीं चलेगा
सूचनाओं के महाविस्फोट के दौर में वैसे भी गारबेज अधिक है, गरिमामय सूचना बेहद कम। अगर हम अपनी कसौटी भी एक न रखेंगे, तो मामला फिर गड़बड़ होने वाला ही अधिक है।
Read MoreJunputh
सूचनाओं के महाविस्फोट के दौर में वैसे भी गारबेज अधिक है, गरिमामय सूचना बेहद कम। अगर हम अपनी कसौटी भी एक न रखेंगे, तो मामला फिर गड़बड़ होने वाला ही अधिक है।
Read Moreअगर पुलिस का आधिकारिक बयान दिल्ली में सही माना जाना है तो फिर बाकी जगह भी उसका मान रखा जाना था। अगर नहीं, तो फिर दिल्ली में भी झगड़े वाली थ्योरी का कोई अर्थ नहीं है। क्या पुलिस की तफ़्तीश और बयान कोई सुविधा है? जिसे जब चाहे सामने रख दें और जब चाहे गलत करार दें?
Read Moreहमारा दुर्भाग्य है कि हम आधुनिक शिक्षा नाम पर ऐसे कूड़े से दो-चार हुए हैं, जिसने किसी भी विषय पर समग्र दृष्टि डालने की हमारी क्षमता को ही खंडित कर दिया है। हमें एकरेखीय, एकपक्षीय, एकवलीय तरीके से देखना सिखाया गया है और हम इसी को लेकर गर्वित होते रहते हैं।
Read Moreलेखक दुहराव का खतरा उठाकर भी यह सब इसलिए लिख रहा है क्योंकि यह हमारे वक्त का सच है। दोहराव और बासीपन, सत्य और असत्य के बीच का धुंधलापन, ख़बर और राय के मिटते हुए फर्क का यह काल ही हमारे जीवन का एकमात्र सच है।
Read Moreकहीं मोदी इन तथाकथित आंदोलनों को स्पेस देकर, सुरक्षा देकर प्रेशर कुकर की उसी सीटी का तो काम नहीं ले रहे, ताकि जनता बड़े औऱ असल मुद्दों को भूली रहे। आखिर, यह देश पिछले साल कोरोना की महामारी में लिपटा रहा है, अर्थव्यवस्था हलकान है, बेरोजगारी बढ़ती जा रही है और सच पूछें तो देश में फिलहाल ‘अच्छे दिन’ नहीं दिख रहे हैं।
Read Moreवाम विचार किस तरह पक्षपोषण करने वाले दिलफरेब तमाशों को अंजाम देता रहा है, अमेरिका की घटना के तुरंत बाद दुनिया भर में आयी प्रतिक्रियाओं को देखने से समझ में आता है।
Read Moreनया साल और मुंबई के दिन, जहां भीड़ कम है, अपार्टमेंट्स अधिक। लोग कम हैं, सोसायटियां अधिक। ऐसे ही अपार्टमेंट्स से वे ख़बरें छन कर आती हैं, जहां कोई लाश जब बदबू फैलाती है तो पुलिस उसे बरामद करती है। किसी अख़बार की बोसीदा ख़बर बनकर वह हम तक बयां होती है।
Read Moreभाजपा को सत्ता से 25 वर्षों तक दूर रखना है, तो 5 वर्ष के लिए सत्ता में ला दो। यह यूं ही नहीं कहा जाता।
Read Moreसहस्राब्दि के दूसरे दशक के शुरुआती वर्षों में मुद्दा आधारित विमर्श और आंदोलन को मध्यवर्ग का उत्सव बनाने का काम अन्ना हजारे-केजरीवाल की युति ने किया था, जब दिल्ली का खाया पीया अघाया सर्विस क्लास भ्रष्टाचार का वीकेंड विरोध आइसक्रीम खाते हुए करता था।
Read Moreदरभंगा एयरपोर्ट हो या एम्स, तारामंडल हो या आइटी पार्क, लुभावने वादे करने में कहीं किसी ने कोई कमी नहीं छोड़ी। एम्स इस चुनावी साल में भी कहां तक पहुंचा है, यह अल्ला मियां को ही पता है। पिछले दो चुनाव से आइटी पार्क की घुट्टी पिला रही इस सरकार के सबसे पिलपिले मंत्रियों में शामिल (जिनको हमेशा घूर कर देखने के अलावा कुछ नहीं आता) रविशंकर प्रसाद इस चुनाव में भी वह झुनझुना बेचे कि नहीं, पता नहीं।
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