दक्षिणावर्त: विकास का जबरन प्रसव कराने के नतीजे


नेताओं की अदम्य वोट-लिप्सा और किसी भी तरह सत्ता पाने की भूख क्या करवा सकती है, यह दरभंगा एयरपोर्ट का नज़ारा दिखाता है। कई चुनाव से एयरपोर्ट का वादा झेलने वाली जनता तब तक सचमुच यकीन न कर सकी, जब इस बार आनन-फानन में दरभंगा एयरपोर्ट शुरू कर दिया गया। 8 नवंबर से स्पाइसजेट की बेंगलुरू, मुंबई की सीधी फ्लाइट शुरू की गयी, हालांकि एक महीने में ही यहां की पोल खुल गयी। अब इस फैसले को लोग मैथिली में जी भर कर कोस रहे हैं।

एक कहावत है, ‘हड़बड़ी के बियाह, कनपट्टी में सेनुर’- बिहार विधानसभा चुनाव को देखते हुए यह तत्काल शुरू तो किया गया, लेकिन सच पूछिए तो यात्रियों की सुरक्षा-संरक्षा के साथ किसी बड़ी आफ़त को न्योता देने सरीखा यह फैसला है। कम दृश्यता की वजह से लगातार उड़ानें बाधित हो रही हैं। गुरुवार यानी 3 तारीख को मुंबई से दरभंगा आने वाली फ्लाइट (जो फिर मुंबई जाती) कम दृश्यता की वजह से पटना में उतारी गयी और उसके यात्रियों को दिन भर पामाल-परेशान करने के बाद अगले दिन वह तीन बजे शाम को गयी, हालांकि उसका समय उस दिन भी 11.45 का ही था। उसी के अगले दिन शुक्रवार को बेंगलुरू से दरभंगा आने वाली फ्लाइट नहीं उतर पायी और दिन भर यात्री हैरान-परेशान रहे।

इस एयरपोर्ट को शुरू करने की इतनी जल्दबाजी क्यों थी, यह तो मिथिलांचल में राजग को 10 में से 9 सीटों पर मिली जीत ही बता देती है, लेकिन इसमें सुरक्षा के प्रबंधों को इस तरह ताक पर कैसे रख दिया गया यह समझ के बाहर है। एयरपोर्ट की बाउंड्री इतनी नीची है कि बाहर 200 मीटर पर जो मुख्य सड़क है, उससे विमान नंगी आंखों से दिखते हैं। दीवार फांदकर कभी भी कोई किसी कांड को अंजाम दे सकता है।

रन-वे तक जाने वाली सड़क अभी बन ही रही है, धूल और मिट्टी से सराबोर है। विजिबिलिटी रडार का पता ही नहीं है। सुरक्षा के नाम पर बस ये किया जा रहा है कि जिनका टिकट है, उनको ही गेट से अंदर जाने दिया जा रहा है। अंदर न बैठने की, न खाने-पीने की व्यवस्था है। जिनके छोटे बच्चे हैं, उनका हवाल खुदा ही जाने (रायपुर एयरपोर्ट से जो सेकंड हैंड फर्नीचर लिया गया था, वह पता नहीं कहां चला गया, या इतना कम क्यों खरीदा गया, यह भी पता नहीं चला है)।

दरभंगा सुरक्षा के लिहाज से संवेदनशील शहर है। नेपाल से सटी और खुली हुई सीमा है। यहां का आतंकी मॉड्यूल भी पूरे देश में बदनाम रह चुका है। इसके बावजूद इतनी हड़बड़ी और तमाम नियमों को धता बताकर एयरपोर्ट चालू करने का सबब केवल नेताओं को ही समझ में आया होगा, बाकी जनता के सिर से ऊपर है। 

दरअसल, भाजपा या उसके गठबंधन की यही दिक्कत है। दरभंगा एयरपोर्ट हो या एम्स, तारामंडल हो या आइटी पार्क, लुभावने वादे करने में कहीं किसी ने कोई कमी नहीं छोड़ी। एम्स इस चुनावी साल में भी कहां तक पहुंचा है, यह अल्ला मियां को ही पता है। पिछले दो चुनाव से आइटी पार्क की घुट्टी पिला रही इस सरकार के सबसे पिलपिले मंत्रियों में शामिल (जिनको हमेशा घूर कर देखने के अलावा कुछ नहीं आता) रविशंकर प्रसाद इस चुनाव में भी वह झुनझुना बेचे कि नहीं, पता नहीं।

समस्या वही है। इंफ्रास्ट्रक्टर तैयार हो या नहीं, भाजपा विकास का प्रसव कराने पर बिल्कुल आमादा है। इतनी जल्दी में वह अपने बेसिक्स ही भूल जा रही है। हालिया उदाहरण दिल्‍ली का है जहां लाखों किसान राशन-पानी लेकर चढ़ बैठे हैं और सरकार बहादुर सड़क खोद रही है। इस आंदोलन की तैयारी महीनों से चल रही थी। इसीलिए ये किसान टीवी चैनल्स का बहिष्कार कर रहे हैं और जिन पर आ भी रहे हैं, तो बिल्कुल किसी एक्टिविस्ट, पके-पकाये आंदोलनकारी की तरह बाइट्स दे रहे हैं।

दरभंगा से शुरू हुई बात दिल्ली तक पहुंचाने का मकसद इस सरकार की थर-थर नीति को उजागर करना है। याद कीजिए, कोई पांच साल पहले जेएनयू से शुरू हुए सिलसिले का नतीजा? डेढ़-दो छात्र-छात्राओं को नेता बनाने से लेकर दुनिया भर की प्रेस में सही गयी जलालत? हरेक ख्यातिलब्ध यूनिवर्सिटी से गुज़रते हुए यह सिलसिला इस साल शाहीन बाग और फिर दिल्ली दंगों तक पहुंच गया और अब किसान-आंदोलन चल ही रहा है। यह सब कुछ उस सरकार में हो रहा है जहां चाणक्य (अमित शाह), जेम्स बांड (अजित डोभाल) और खुद राजर्षि (नरेंद्र मोदी) मौजूद हैं।

छह वर्षों के बाद आप इसे ईकोसिस्टम पर धकेलकर नहीं बच सकते। भाजपा के बारे में अगर यह धारणा बन रही है कि उसको राज करना नहीं आता, तो इसकी जवाबदेही कहीं न कहीं इनको लेनी ही होगी। ठीक है कि राम-मंदिर से लेकर कश्मीर तक के मसले पर आपने अपना वादा पूरा किया, लेकिन जिस तरह मात्र 44 सांसदों वाली कांग्रेस आपको हैरान-परेशान करती रही है, वह सचमुच चिंता का विषय है।

इसके पीछे मोदीराज में सेकंड लीड की रहस्यमय ना-मौजूदगी का होना है। आप ज़रा गौर करें तो पाएंगे कि सब कुछ मोदीमय है। इसके पीछे हमारे नौटंकी टीवी चैनलों से लेकर बिछे हुए अखबार तक भले जिम्मेदार हों, लेकिन याद कीजिए कि अटलजी के समय 24 घोड़ों वाली सरकार को भी इस बुरी तरह से नहीं घेरा जा सकता था। इसलिए, क्योंकि वहां क्षेत्रीय क्षत्रप मौजूद थे। आज राजस्थान से लेकर छत्तीसगढ़ और महाराष्‍ट्र तक साफ़ है। मुझे नहीं पता कि यह भाजपा ने जान-बूझकर या मोदीजी को प्रसन्न करने के लिए किया है, लेकिन यह उस पार्टी की सेहत के लिए ठीक नहीं है, इतना इस लेखक को पता है।

भाजपा विकास का प्रसव कराने पर आमादा तो है, लेकिन इसके लिए प्रशिक्षित दाइयों (इसे पढ़ें उसके पक्ष में नैरेटिव तय करने वाले बुद्धिजीवी) की उसके पास घोर कमी है। यह मसला खैर अगले लंबे आलेख का विषय है।


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