दक्षिणावर्त: विश्वास के संकट से घिरा दर्शक और किसान आंदोलन का रंगमंच

जिस वक्‍त हमें सामाजिक क्रांति की जरूरत सबसे अधिक है, उस वक्‍त हम राजनीतिक छद्म में व्यस्त हैं। मूल्य या वैल्यू-सिस्टम को दुरुस्त करने की दरकार मौजूदा वक्त में सबसे अधिक है, तो हम चौबीसों घंटे सोप-ऑपेरा देखते हुए जीवन को भी वही बना चुके हैं।

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शपथ ग्रहण तो हो गया, अब नीतीश की ‘ग्रेसफुल विदाई’ तय करेगी सरकार की उम्र

या तो खट्टर और फडणवीस की तरह बिहार में भी तारकिशोर प्रसाद औऱ रेणु देवी को लाया-बढ़ाया जा रहा है या फिर मोदी-शाह द्वय ने सोच लिया है कि बिहार में नीतीश से सीधा वे ही डील करेंगे

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अंतिम नतीजा चाहे जो हो, यह जनादेश सिर्फ और सिर्फ नीतीश के खिलाफ है!

तेजस्वी अगर इस चुनाव के एकल विजेता हैं, तो मुख्यमंत्री नीतीश कुमार हार के सर्वाधिक उचित व्यक्तित्व। वैसे तो राजनीति में नैतिकता और शर्म नामक शब्द होते नहीं, लेकिन नीतीश को नतीजे देखते हुए खुद ही अब संन्यास ले लेना चाहिए, केंद्र की राजनीति चाहें तो करते रहें।

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दक्षिणावर्त: अपने ब्रह्म और आत्‍म से दूर होता हिंदू

सनातन संस्कार में समय का टुकड़ा, जिसे हम काल के नाम से जानते हैं, वह बहुत ही दूसरे अर्थों में इस्तेमाल किया जाता है, यदि इसे हम टाइम या समय के संदर्भ में देखें तो। यही वजह है कि आपको भारतवर्ष के शताब्दियों से गर्वोन्नत मंदिरों, स्थापत्य के चमत्कार गगनचुंबी धरोहरों के निर्माताओं का नाम कहीं नहीं मिलेगा।

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दक्षिणावर्त: अदृश्य भय वाला सेकुलरिज्म बनाम फ़र्ज़ी डराने वाला इस्लामोफोबिया

मुद्दा क्या होना चाहिए था और क्या है? मुद्दा था कि इस्लाम के नाम पर फ्रांस में एक और हत्या हुई। यह तमाम हत्याओं की फेहरिस्‍त में एक और हत्या मात्र है और कम से कम अब इस्लाम के ऊपर बात होनी चाहिए। यह लेकिन मुद्दा नहीं बना। मसला इस बात को बनाया गया कि मैक्रां ने इस्लाम के ऊपर टिप्पणी की है और वह एक हत्यारे के बहाने ‘इस्लामोफोबिया’ को बढ़ावा दे रहे हैं।

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दक्षिणावर्त: सेकुलर खोल, बाइनरी बोल और अश्लीलताओं के बीच

हरेक घटना के पक्ष या विपक्ष में बैटिंग तो हो रही है, लेकिन किनारे बैठकर थोड़ी धूल बैठ जाने का इंतजार नहीं किया जा रहा है। राजनेताओं का तो समझ में आता है, लेकिन हम जैसे जो आम लोग हैं, उन्हें पंजाब पर राहुल गांधी को और हाथरस पर योगी आदित्यनाथ को घेरने में क्यों संकोच हो रहा है, यह समझ के बाहर है।

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दक्षिणावर्त: तनिष्क का ‘एकत्वम’ और विकृत अस्मिताओं का दोयम

मजहब या रिलीजन के बदले हम धर्म शब्द का प्रयोग कतई नहीं कर सकते। दूसरे, अब्राहमिक मजहबों के बरक्स जिस क्षण आप सनातन धर्म को खड़ा करते हैं, आप ठीक वही गलतियां करते हैं जो 200 वर्षों तक हमारे आका रहे अंग्रेज आक्रांताओं ने सोच समझ कर की।

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दक्षिणावर्त: भाभी जी हाथरस में हैं, सत्य कहां है?

ये सारी जानकारी हम तक बुद्धू बक्सा पहुंचा रहा है। इस बीच एसआइटी की जांच अपनी गति से चल रही है जबकि प्रशासन अपनी मंथर गति के सहारे अपने छूटे कस-बल को पेंचदार बना रहा है।

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दक्षिणावर्त: न्‍याय की चिता पहले ही जल चुकी है, अब केवल प्रहसन बाकी है

कल एक चैनल की अदाकारा ने जिस तरह हाथरस के एसडीएम को लाइव जलील किया या धमकी दी, वह कौन सी पत्रकारिता है? इसका अंजाम तो वही होना था, जो हुआ। दूसरा एंकर अपने स्टूडियो में चीखते-नाचते हुए जुगाड़-मीडिया को बेनकाब करेगा ही। इसमें नुकसान किसका हुआ? गर्भपात तो न्याय का ही हुआ न!

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दक्षिणावर्त: More Power to You, Anushka! (ये शीर्षक नहीं, डिसक्लेमर है)

हाल यह है कि हम पोस्ट-ट्रुथ के युग में जी रहे हैं, जहां लिखे हुए शब्दों पर ही भरोसा नहीं है। जिस वक्त कुछ भी लिखा या कहा जा रहा है, लोगों के दिमाग में यह बात आती है कि यह झूठ तो नहीं, फ़ेक तो नहीं?

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