ऐसी MSP योजना जो खेती का उद्धार करे

हमारे समाज में मौजूद गहरी विभाजक रेखाओं के बावजूद हाल के किसान आंदोलन के क्रम में बनी जबर्दस्त एकता ने घोर अहंकारी सरकार को भी हिला दिया। इस एकता को बनाए रखना जरूरी है। इसके लिए यह जरूरी है कि एमएसपी तय करने में छोटे किसानों और भूमिहीन मजदूरों की जरूरतों का खास तौर पर खयाल रखा जाए।

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पंजाब चुनाव में गायब होता कॉरपोरेट वर्चस्व का मुद्दा

आंदोलन का मुख्य जोर कॉर्पोरेट जगत को कृषि क्षेत्र पर नियंत्रण करने से रोकना था। उस समय लगभग सभी राजनीतिक दल इस बात पर सहमत थे कि इन तीन कृषि कानूनों के अंतर्गत कॉरपोरेट्स का कृषि पर पूर्ण अधिकार हो जायेगा। अपने पंजाब दौरे के दौरान राहुल गांधी को यह कहने के लिए मजबूर होना पड़ा कि मोदी सरकार कठपुतली सरकार थी और कॉरपोरेट्स के हितों की सेवा कर रही थी। दुख की बात है कि कृषि और अर्थव्यवस्था के अन्य क्षेत्रों में कॉर्पोरेट वर्चस्व को रोकने के मुद्दे का उल्लेख किसी भी राजनीतिक दल ने अपने चुनाव प्रचार या चुनावी घोषणापत्र में भी नहीं किया है।

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आम बजट: गांव और किसान की अनदेखी कर के सरकार ने क्या आंदोलन का बदला लिया है?

इस नीरस और निराशाजनक बजट की प्रशंसा के लिए एक अनूठा और हास्यास्पद तर्क गढ़ा गया- पांच राज्यों में होने जा रहे विधानसभा चुनावों के बाद भी सरकार ने आम लोगों को राहत पहुंचाकर उनका दिल जीतने की कोशिश नहीं की, कोई लोकलुभावन घोषणा इस बजट में नहीं की गई।

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किसान आंदोलन की मांगें WTO की उन शर्तों के विरोध में हैं जिन पर भारत सरकार पहले ही सहमति दे चुकी है!

जनता को अब यह मांग करनी ही पड़ेगी कि भारत सरकार विश्‍व व्‍यापार संगठन से अपने पांव वापस खींचे, उसके चंगुल से राष्‍ट्रीय अर्थव्‍यवस्‍था से जुड़े फैसलों को मुक्‍त करे और देश को बहुराष्‍ट्रीय साम्राज्‍यवादी कंपनियों के बजाय जनता की हित में चलाए।

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जयपुर में हुआ किसान संसद का आयोजन, गुजरात से पहुंचा किसान दस्ता गाजीपुर!

अधिकांश कृषि घराने सरकार द्वारा घोषित एमएसपी से अनजान थे, और एपीएमसी मंडियों में फसल बेचने में सक्षम नहीं होने के लिए बुनियादी ढांचे की कमी (यानी मंडियों या खरीदारों की अनुपलब्धता) को जिम्मेदार ठहराया — उल्लेखनीय यह है कि इन दो दौर के सर्वेक्षणों के बीच एमएसपी और मंडी प्रणाली की स्थिति खराब हो गई है। ये तथ्य कॉरपोरेट के पक्ष में सरकारी मंडियों के कमजोर किए जाने के बड़े आख्यान में फिट होते हैं, और तीन कृषि कानूनों के वास्तविक उद्देश्य को प्रत्यक्ष करते हैं।

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करनाल प्रशासन से वार्ता विफल, किसानों ने बढ़े MSP को बताया छल, मिनी सचिवालय का घेराव जारी

सरकार द्वारा घोषित एमएसपी अपर्याप्त, मुद्रास्फीति लागत से कम- अधिकांश रबी फसलों के लिए एमएसपी पिछले वर्ष की तुलना में वास्तविक रूप से 4% कम हुआ- एमएसपी व्यापक लागत पर आधारित नहीं है और कानूनी गारंटी के बिना व्यर्थ है: एसकेएम

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किसान आंदोलन ने पूरे किये 9 महीने, राष्ट्रीय अधिवेशन के पहले दिन 2500 से अधिक प्रतिनिधि हुए शामिल!

सम्मेलन की आयोजन समिति के संयोजक डॉ. आशीष मित्तल ने प्रतिनिधियों के सामने प्रस्तावों का मसौदा रखा, जिसमें लोगों से देश भर में चल रहे संघर्ष को तेज करने और विस्तार करने का आह्वान किया गया ताकि मोदी सरकार को 3 कृषि विरोधी कानूनों को निरस्त करने के लिए मजबूर किया जा सके, और एमएसपी की कानूनी गारंटी दें। आज के अधिवेशन में 3 सत्र थे – पहला सीधे तौर पर 3 काले कानूनों से संबंधित, दूसरा औद्योगिक श्रमिकों को समर्पित और तीसरा कृषि श्रमिकों, ग्रामीण गरीबों और आदिवासी मुद्दों से संबंधित था।

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किसान आंदोलन कल 9 महीने पूरा करेगा, सिंघू मोर्चा पर होगा SKM का अखिल भारतीय सम्मेलन!

भारत का ऐतिहासिक किसान आंदोलन – जो दुनिया का सबसे बड़ा, निरंतर, शांतिपूर्ण विरोध प्रदर्शन बन चुका है – कल 9 महीने पूरा करेगा – संयुक्त किसान मोर्चा का अखिल भारतीय सम्मेलन कल से सिंघू मोर्चा पर शुरू होगा.

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SKM का अखिल भारतीय अधिवेशन 26-27 अगस्त को, आंदोलन के विस्तार पर होगी चर्चा!

सम्मेलन 5 सत्रों में आयोजित होगा। 26 अगस्त को तीन सत्र होंगे, 10:00 से 1:00 तक, 2:00 से 3:30 बजे तक और 3.45 से 6 बजे तक होंगे। यह सत्र उद्घाटन सत्र, औद्योगिक मजदूरों पर और खेत मजदूरों, ग्रामीण मजदूरों का आदिवासी जनता पर किए जाएंगे। 27 अगस्त को 2 सत्र होंगे। पहला महिलाओं, छात्रों और युवाओं के हालात पर, सुबह 9:30 से 12:00 तक और अंतिम सत्र समापन सत्र, दोपहर 12:00 से 1:00 बजे तक। सभी सत्र में नेता इस आंदोलन के सवालों को संबोधित करते हुए अपने वर्ग के पर प्रभाव पर चर्चा करेंगे।

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किसान संसद में कृषि उपजों के लिए लाभकारी MSP कानून की मांग पर प्रस्ताव पारित

किसान संसद ने सभी किसानों और सभी कृषि उपजों के लिए लाभकारी एमएसपी की गारंटी के लिए, भारत सरकार को एक क़ानून पेश करने, और भारतीय संसद को पारित करने का निर्देश देते हुए, एक प्रस्ताव पारित किया – किसान संसद ने स्वामीनाथन आयोग की कई प्रगतिशील सिफारिशों को लागू करने के लिए कहा – किसान संसद में “सदन के अतिथियों” की भागीदारी दिखी।

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