हमारी समस्या है नागरिक आज्ञाकारिता ! ‘बुलडोजर न्याय’ के दौर में हावर्ड जिन की याद

आज जब हमारे मुल्क में बुलडोजर (अ)न्याय का सामान्यीकरण हो चला है और संवैधानिक संस्थाएं भी इस मामले में औपचारिक कार्रवाई के आगे कदम नहीं उठाती दिख रही हैं, ऐसे समय में जनमानस को जगाने के लिए, उन्हें प्रेरित करने के लिए वे सभी जो न्याय, अमन और प्रगति के हक़ में हैं, उन्हें नई जमीन तोड़ने की जरूरत है। 

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क्या नये भारत में राज्य की इच्छा ही न्याय है?

अंतरराष्ट्रीय संधियों की बाध्यता को आधार बनाकर अपनी सुविधानुसार सत्ता नागरिक अधिकारों में कटौती कर रही है जबकि अंतरराष्ट्रीय कानून के उन उदार अंशों को रद्दी की टोकरी में डाला जा रहा है जो शरणार्थियों एवं अल्पसंख्यकों के अधिकारों से संबंधित हैं। ऐसे समय में मानवाधिकारों की रक्षा के लिए सुप्रीम कोर्ट से उम्मीद लगाये आम आदमी की हताशा स्वाभाविक ही है।

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संविधान पर चल रहे विमर्श के निहितार्थ

क्या संविधान से हमें कुछ हासिल नहीं हुआ? जब हमारे साथ स्वतंत्र हुए देशों में लोकतंत्र असफल एवं अल्पस्थायी सिद्ध हुआ और हमारे लोकतंत्र ने सात दशकों की सफल यात्रा पूरी कर ली है तो इस कामयाबी के पीछे हमारे संविधान के उदार एवं समावेशी स्वरूप की भूमिका से इनकार नहीं किया जा सकता।

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जाति और रसूख के हिसाब से न्याय और मुआवजे का ‘राम राज्य’!

पहले जिन्हें थाने से न्याय नहीं मिलता था उसे एसपी कार्यालय से उम्मीद होती थी। ब्लॉक से न्याय नहीं मिल पाता था तो तहसील और जिला अधिकारी कार्यालय से उम्मीद रहती थी लेकिन अब पीड़ितों के सामने इस बात का भी संकट है कि ऐसे अधिकारियों के रहते वह न्याय पाने के लिए जाएं तो कहां जाएं?

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BDC मोहम्मद आलम के हत्या के दोषियों के खिलाफ सरकार करे सख्त कार्रवाई: रिहाई मंच

आलम जुमे को ध्यान में रखते हुए बाजार गए और वहां से जब वे अपनी एक्टिवा गाड़ी चार पहिया वाली जो विकलांगों के लिए होती है उससे लौट रहे थे तो रास्ते में कुछ लोगों ने उनकी गोली मारकर हत्या कर दी. वे बताते हैं कि बनकट बाजार से ही उनका पीछा वे लोग कर रहे थे.

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बात बोलेगी: भारतेन्दु की बकरी से बाबरी की मौत तक गहराता न्याय-प्रक्रिया का अंधेरा

‘गिल्ट बाइ एसोसिएशन’ जैसे आज के दौर की एक मुख्य बात हो गयी है। दिल्ली में हुई हिंसा हो या भीमा कोरेगांव की हिंसा, दोनों में न्याय प्रक्रिया उसी प्रविधि का इस्तेमाल कर रही है जो उस राज्य में प्रचलित थी, जिसकी कहानी हमें भारतेन्दु हरिश्चंद्र ने सुनायी थी।

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