क्या संविधान पढ़ने की सलाह देना भी देश में अब गुनाह हो गया है?

किसी धर्म या विचारधारा में विश्वास करना उसमें आस्था रखना या न रखना यह व्यक्ति का निजी मामला है। इसके लिए कोई दबाव या जबरदस्ती नहीं की जानी चाहिए। भावना आहत होने या धर्म का अपमान होने के नाम पर किसी व्यक्ति से उसकी नौकरी छीन लीजिए, उसकी अभिव्यक्ति की आजादी छीन लीजिए, उसके अधिकार छीन लीजिए, ये मनमानी है। आजकल कुछ लोग देश को ऐसी ही मनमानियों से चलाने की कोशिश कर रहे हैं।

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जाति और रसूख के हिसाब से न्याय और मुआवजे का ‘राम राज्य’!

पहले जिन्हें थाने से न्याय नहीं मिलता था उसे एसपी कार्यालय से उम्मीद होती थी। ब्लॉक से न्याय नहीं मिल पाता था तो तहसील और जिला अधिकारी कार्यालय से उम्मीद रहती थी लेकिन अब पीड़ितों के सामने इस बात का भी संकट है कि ऐसे अधिकारियों के रहते वह न्याय पाने के लिए जाएं तो कहां जाएं?

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यूपी में बाकी जातियों की नाराजगी पर क्यों नहीं सवाल कर रहा है मीडिया?

मीडिया जब जाति पर चर्चा करने ही लगा है तो उसे एक जाति-विशेष के बजाय उत्तर प्रदेश की तमाम जातियों की नाराजगी और राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं पर चर्चा करनी चाहिए।

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