भारत जोड़ो यात्रा की एक से बढ़ कर एक तस्वीर आ रही है। ये तस्वीरें कोई ईवेंट मैनेजर द्वारा प्रायोजित और पूर्व निर्धारित नहीं हैं। यात्रा में बिल्कुल परिस्थितिजन्य और अकस्मात घटित क्षणों को कैमरामैन की टीम कैद कर रही है। न तो कोई मोर लाया गया है और न ही एकदम साफ-शफ्फाक समुद्री तट पर पानी की बोतल रखी गयी हैं और न ही पॉलिश किया हुआ कचरे का ढेर। यात्रा के दौरान बारिश कोई प्रायोजित घटना तो थी नहीं! बारिश में भीगते हुए राहुल गांधी का भाषण न ही कोई फोटो फिनिश या पिन-अप इमेज वाली ईवेंट थी। बस एक जुनून था जो बारिश में भी थमा नहीं।
अनथक, अनवरत, बारिश की तेज बौछारों के बीच राहुल भाषण देते रहे और सबसे महत्वपूर्ण बात तो ये है कि लोग भी बारिश में खड़े उन्हें सुनते रहे। खास बात ये थी कि आमतौर पर राजनीतिक रैलियों में इस तरह से बारिश हो जाए तो भीड़ आसरा देखने लगती है, लेकिन यहां ऐसा नहीं हुआ। मैसूर में राहुल गांधी बारिश में भीगते हुए भाषण देते रहे और लोग उन्हें बारिश में खड़े सुनते रहे। कुछ लोगों ने अपने सिर को कुर्सी उल्टी करके ढंक लिया था लेकिन वे सभा छोड़कर नहीं गए। राहुल ने यहां भाषण देते बीजेपी और संघ को बड़ा ही कड़ा संदेश दिया था। राहुल ने कहा था कि गर्मी, तूफान, ठंड भी इस यात्रा को रोक नहीं सकती है। नदी जैसे ये यात्रा जारी रहेगी और इस नदी में आपको नफरत या हिंसा का कोई निशान नहीं मिलेगा।
इस यात्रा में राहुल गांधी की तस्वीरें चर्चा का विषय बन रही हैं। जब राहुल गांधी ‘भारत जोड़ो यात्रा’ की शुरुआत कर रहे थे, तब कोई नहीं जानता था कि सफर कैसे आगे बढ़ेगा। राहुल गांधी ने तमिलनाडु से यात्रा कर एक तरीके से सेफ रणनीतिक शुरुआत की थी क्योंकि वे वहां सत्ता में साझीदार हैं। राहुल ने भारत जोड़ो यात्रा में अभी तक 700 किलोमीटर का सफर पूरा कर लिया है। 3500 किलोमीटर की यह अनथक और अनवरत यात्रा आजाद भारत के इतिहास की सबसे कठिन और पीड़ादायक यात्रा है लेकिन उद्देश्य और लक्ष्य एकदम स्पष्ट है। भारतीयता की पुनर्स्थापना और भारत की मूल आत्मा की खोज़ ही इस यात्रा का पाथेय है और ध्येय। पिछले आठ साल में भारत की मूल आत्मा को नष्ट और छिन्न-भिन्न करने की जो फासीवादी और सांप्रदायिक साजिशें की गई हैं उससे हमारे भारत का ताना-बाना ही बिगड़ गया है। जैसे वीणा या सितार के किसी एक तार को अगर तोड़ दिया जाए तो वीणा या सितार से न तो सुमधुर संगीत बजेगा और न ही कोई साधक कोई सुर उस पर साध सकेगा।
राहुल भारतीयता की उसी गंगा-जमुनी सुर को साधने के लिए साधक बन कर वीणा और सितार के टूटे तार को जोड़ने यात्रा पर निकले हैं। यह एक तरह से नेहरू के तर्ज पर ‘भारत एक खोज’ ही है लेकिन नेहरू ने किताब लिखी थी और राहुल गांधी भारतीयों को सद्भाव और समरसता का संदेश देने कन्याकुमारी से कश्मीर की यात्रा पर निकल पड़े हैं। वे भी अपने तईं भारत को ख़ोज रहे हैं।
तस्वीरें तो यात्रा की कई वायरल हो रही हैं। कभी बारिश में भीगते हुए भाषण देने की तस्वीर तो कभी मां सोनिया गांधी के जूते के फीते बांधने वाली तस्वीर मगर एक तस्वीर जो इधर मेरी नजरों से गुजरी है वह तस्वीर भारत जोड़ो यात्रा की अब तक की सबसे संदेशात्मक और पावरफुल तस्वीर है। वह तस्वीर है गन्ना चूसते राहुल गांधी की तस्वीर। इस तस्वीर में राहुल गांधी गन्ने को सिर्फ चूस भर नहीं रहे हैं बल्कि एक शक्तिशाली राजनीतिक संदेश भी दे रहे हैं। अगर इस तस्वीर को डिकोड किया जाए तो यह जो गन्ना है वो दरअसल बीजेपी और संघ है जो काफी कठोर और सख्त है, जिसने भारतीयता के मीठे रस को फासिस्ट और सांप्रदायिकता के कठोर और सख्त छिलकों में आठ साल से कैद कर रखा है। जब तक इन सख्त छिलकों को छील कर बाहर नहीं फेंका जाएगा तब तक भारतीयता का मीठा रस बाहर नहीं निकल सकता है।
राहुल गांधी काफी मेहनत कर रहे हैं, लेकिन क्या वे गन्ने के सख्त छिलकों को छील पाएंगे? इन आठ वर्षों में जो नफरत और धार्मिक विद्वेष की धुंध पूरे देश में फैल गई है क्या उसे हटा कर भारतीयता का नया सवेरा राहुल गांधी उगा पाएंगे? यह कहना काफी कठिन है। कांग्रेस के वेटरन नेता दिग्विजय सिंह ने कहा कि इस यात्रा के बाद राहुल गांधी एक नए राजनेता बनकर सामने आएंगे। काफी हद तक ये सच है कि राहुल गांधी इस यात्रा के बाद एक ताकतवर राजनेता बनकर सामने आएंगे, लेकिन क्या बीजेपी और संघ को वे 2024 के चुनाव में परास्त कर पाएंगे? ये फिलवक्त राहुल के लिए टेढ़ी खीर ही है। चुनावी राजनीति को साधना उनके लिए दांतों चने चबाने के बराबर है। हां, भविष्य राहुल गांधी का ही मगर इसके लिए राहुल गांधी को एक लकीर खींचनी पड़ेगी। यह लकीर तब तक नहीं खींच सकते जब तक कांग्रेस के वेटरन चाटुकारों की सरपरस्ती से राहुल खुद को निकाल कर अपनी एक अलग इमेज नहीं बना लेते। यह भारत जोड़ो यात्रा दरअसल राहुल की इमेज बनाने की कवायद ही है। राहुल को रिलॉन्च करने के लिए भारत जोड़ो यात्रा एक लॉन्चपैड का काम कर रही है।
राहुल गांधी की सबसे बड़ी कमजोरी है कि वे पॉलिटिशियन नहीं बन पा रहे हैं। बोलचाल और आम समझदारी के आईने में राजनीति और पॉलिटिक्स दो अलग-अलग चीजे हैं। राहुल गांधी राजनेता तो हो सकते हैं लेकिन उन्हें पॉलिटिक्स करने का इल्म नहीं है। उनकी दादी इंदिरा गांधी इस देश की सबसे ताकतवर पॉलिटिशियन थीं। राहुल की इसी कमजोरी का फायदा सोशल मीडिया के ट्रोल्स और बीजेपी के आइटी सेल के भाड़े के सुपारी एजेंट उठा लेते हैं। विश्लेषकों को लगता है कि राहुल गांधी ने बहुत हद तक अपने आप को एक अगंभीर राजनेता के रूप में स्थापित कर लिया है। बीजेपी ने राहुल गांधी को एक कमजोर और मजाकिया नेता के तौर पर पेश करने की कोशिश की है। राहुल के चरित्र को कमजोर करने की एक योजना काम कर ही है। उन्हें सोशल मीडिया पर अगंभीर नेता के तौर पर पेश किया जाता रहा है। उनके लिए अपशब्द इस्तेमाल किए जाते रहे हैं।
भारत जोड़ो यात्रा को जब एक महीना हो चुका है तो अब इस तरह के शब्द उनके लिए सुनाई नहीं दे रहे हैं। राहुल गांधी ने बहुत हद तक इस छवि को तोड़ने की कोशिश की है, मगर अभी और तोड़ना है और एक गंभीर पॉलिटिशियन के रूप में उभरना शेष है। एक अहम बात ये भी है कि राहुल गांधी की इस यात्रा को राजनीतिक ड्रामे के रूप में नहीं देखा जा रहा है। यह जरूर है कि बहुत से लोग कह रहे हैं कि राहुल जो अब कर रहे हैं उन्हें बहुत पहले ही ये करना चाहिए था। उनकी आलोचना करने वाले कहते हैं कि राहुल गांधी मुद्दों को छूते हैं और निकल जाते हैं। उदाहरण के तौर पर, वे भट्टा पारसौल, चौकीदार चोर है और सूट-बूट की सरकार जैसे कैंपेन गिनाते हैं। भट्टा-पारसौल में राहुल ने किसानों के लिए जो आंदोलन छेड़ा था, जो राहुल गांधी को बतौर नेता लॉन्च करने का पहला लॉन्चपैड था, वह दरअसल राहुल के लिए ही नहीं बल्कि कांग्रेस के लिए भी ब्लंडर साबित हुआ। यह बहुत बड़ी चूक थी। पॉलिटिक्स के लिहाज से। इतना ही नहीं, राहुल अपनी ही सरकार के खिलाफ खड़े हो गए और अध्यादेश फाड़ दिया। इससे कांग्रेस ने बहुत कुछ खोया।
आज की राजनीति में बहुत कुछ ब्रांड इमेज पर निर्भर करता है। जैसे 2014 में नरेंद्र मोदी ब्रांड गुजरात लाए, 2019 में बीजेपी ने ब्रांड मोदी पर चुनाव जीता। आम आदमी पार्टी ने ब्रांड केजरीवाल से दोबारा दिल्ली जीती। अरविंद केजरीवाल ने ब्रांड दिल्ली से पंजाब जीता और अब गुजरात लेकर पहुंच गए हैं। इसी तरह शायद कांग्रेस भी समझ गई है कि एक ब्रांड जनता को देना होगा जो नरेंद्र मोदी के सामने मजबूती से खड़ा दिखे। लिहाजा कांग्रेस ने ब्रांड राहुल गांधी बनाने की एक नई मुहिम शुरू की है। अब कांग्रेस मोदी-विरोधी वोटर को यह समझाने की कोशिश कर रही है कि राहुल गांधी ही विकल्प हैं।
कोई राहुल गांधी का विरोधी हो या सपोर्टर, पर वह एक बात से सहमत है कि राहुल गांधी और कांग्रेस को इस यात्रा से फायदा ही होगा। कितना होगा ये आने वाला वक्त बताएगा। राहुल गांधी ने कई बार कहा है कि वे ये यात्रा अपनी बात कहने के लिए नहीं बल्कि लोगों को सुनने के लिए कर रहे हैं। कई लोग कह रहे हैं कि कुछ बदले या न बदले इस यात्रा से राहुल की छवि जरूर बदल जाएगी, जो एक महीने में होते हुए दिख रहा है।