भारत जोड़ो यात्रा: बौद्धिकों के समझने के लिए तीन जरूरी पहलू


कांग्रेस संचालित और देश भर के तमाम जागरूक नागरिक समाज द्वारा समर्थित भारत जोड़ो यात्रा एक मामूली प्रदर्शनमूलक परिघटना मात्र नहीं है बल्कि इसका ऐतिहासिक महत्त्व है। यह यात्रा वैचारिक रूप से भी एक बड़ा कदम है। इस पर तमाम बिंदुओं से विचार किया जा सकता है लेकिन कुछ बिंदु यहां पर बौद्धिक जगत के लिहाज से रखना समीचीन होगा।

1. आइडिया ऑफ इंडिया एक ऐसा phrase है जो विद्वानों में बहुत लोकप्रिय है लेकिन इस पर ठोस ढंग से कम बात हो पाती है। ज्यादातर या तो हाइ कल्चर के लिहाज से इसे पहचाना जाता है या फिर तमाम पहचान आधारित संस्कृतियों के आधार पर इसको समझा जाता है। संविधानवादी इसे भारतीय संविधान के प्रावधानों में देखते हैं, लेकिन भारत एक आधुनिक राष्ट्र के रूप में क्या मुकम्मल राष्ट्र बन सका है, इस पहलू पर ध्यान नहीं दिया जाता। ज्यादातर बुद्धिजीवी यह मानकर चलते हैं कि भारत एक आधुनिक राष्ट्र या राष्ट्र है और मामला सामाजिक न्याय और बराबरी स्थापित करने का है। यह सोच सही नहीं है। भारत अगर आधुनिक राष्ट्र 1947 में या उसके बाद भी बन चुका होता तो देश में साम्प्रदायिकता, जातिवाद, अलगाववाद की समस्याएं कब का खत्म हो चुकी होतीं। भारत अभी भी ऐतिहासिक रूप से आधुनिक राष्ट्र बनने की प्रक्रिया में है और इसलिए इस देश में राष्ट्रीय प्रश्न ‘न्याय’, अस्मिता विमर्श आदि से नहीं निकलेंगे। बल्कि राष्ट्रवाद ही इस देश में तमाम राष्ट्रीय प्रश्नों, प्रवृत्तियों की वैचारिक पृष्ठभूमि बनेगा और बना है। आज साम्प्रदायिकता जो बड़े संकट के रूप में देश के सामने है, वह वास्तव में इसलिए जनाधार बना सकी है क्योंकि वह राष्ट्रवाद के एक वीभत्स चेहरे से है। यदि हम एक सच्चा, सार्थक, सर्वकल्याणकारी राष्ट्रवाद विकसित व समर्थित कर सकें तो देश को खुशहाल समाज बनाने में सार्थक योगदान कर सकेंगे।

भारत जोड़ो यात्रा इस दिशा में एक महत्त्वपूर्ण प्रयास है, जो लंबे समय तक उपेक्षित रहा। कारण यह है कि धर्मनिरपेक्ष ताकतों ने साम्प्रदायिकता, जातिवाद आदि के विरुद्ध राष्ट्र्वादी परिप्रेक्ष्य से संघर्ष नहीं किया। भारत जोड़ो यात्रा वह जरूरी व ऐतिहासिक कार्य कर रही है।

2. भारत एक बहुत बड़ा देश है- न केवल भौगोलिक रूप से बल्कि अपने तमाम सांस्कृतिक रंगों के कारण भी। वास्तव में यह समग्र विश्व का एक संक्षिप्त संस्करण है। भारत की ओर सारी दुनिया आशा से इसलिए देखती रही है क्योंकि यहां पर तमाम अंतरों के बावजूद मिलजुल कर आपसी संवाद और भाईचारे से रहने का प्रत्यक्ष उदाहरण मौजूद है। भारत को विश्व का यह संदेश साम्प्रदायिकता के कारण बुरी तरह से प्रभावित हुआ है। यदि भारत साम्प्रदायिकता के खिलाफ हार जाता है तो भारत तो नष्ट होगा ही, साथ ही दुनिया भर में अच्छाई और इंसानियत की शक्तियों को धक्का लगेगा। प्रेम, सद्भाव, करुणा, इंसानियत ये सब केवल कोरे शब्द नही हैं बल्कि इस संसार के बने रहने के आवश्यक तत्व हैं। इन मानवीय अभिप्रेरणाओं को राजनीतिक, सांस्कृतिक व सामाजिक जीवन का अविभाज्य अंग बनाने का अनूठा प्रयास गांधी, नेहरू व अन्य नेताओं द्वारा संचालित भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन ने किया और इस विरासत को आजाद भारत में भी जीवित रखा गया।

भारत जोड़ो यात्रा इसी दिशा में एक बड़ा सकारात्मक कदम है।

3. राजनीति से परे कुछ नहीं है। यहां तक कि राजनीति से परे रहने की भी अपनी एक राजनीति होती है। चाहे बौद्धिक गतिविधि हो या आफिस में काम करना हो, चाहे चाय का ठेला लगाना हो, चाहे मजदूरी या किसानी करनी हो, चाहे कालेज यूनिवर्सिटी में पढ़ना-पढ़ाना हो, चाहे किसी मल्टीनेशनल कंपनी या कहीं अपना श्रम बेचना हो, चाहे कोई व्यवसाय करना हो- हर चीज, गतिविधि व विचार राजनीति की ही परिधि में होता है। राजनीति का कोई विकल्प नहीं है। इसलिए अगर राजनीति सही व कल्याणकारी दिशा में हो तो देश-समाज को शुभ रास्तों पर लाया जा सकता है। भारत जोड़ो यात्रा एक राजनीतिक यात्रा है और इससे देश में इंसानियत, भाईचारे, मानवीय एकता की प्रवृत्तियां उभर रही हैं और सार्वजनिक जीवन का हिस्सा बन रही हैं। यह यात्रा नफरत और बांटने के खिलाफ एक ठोस पहल व कदम है।

बौद्धिकों को कमियों आदि पर ध्यान देना चाहिए लेकिन समाज की सकारात्मकता को हतोत्साहित किए बगैर। बस हाय हाय करना, दुखद वर्णन को ही बौद्धिकता समझना समाज सेवा से अधिक हताशा का प्रचार-प्रसार है जो कि नकारात्मक व खराब शक्तियों को बल प्रदान करता है।

इस भारत जोड़ो यात्रा के लिए कांग्रेस और जागरूक नागरिक समाज व उसके प्रतिनिधि बधाई व सहयोग के पात्र हैं।


लेखक इतिहास के जानकार हैं


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