विजय का भाव मूलत: स्वयंस्फूर्त होता है। एक अहिंसक संघर्ष की विजय का महत्व अनूठा। भारत के किसान अन्दोलन ने जहां एक ओर पूरे विश्व को शांतिपूर्वक जनतंत्रिक अन्दोलन में अपने हकों के लिए कुर्बानी का एक नया दृष्टीकोण सौंपा है वहीं लोकतंत्र में बहुमत से सता की स्थापना व अहंकार की अवधारणा को ध्वस्त भी किया है।
भारत के शांतिपूर्वक व्यवस्थित किसान अन्दोलन ने धरती की अस्मिता व कृषक समाज की परंपराओं, संयम, बलिदान की क्षमता के साथ-साथ कृषि के अस्तित्व एवं महत्व को नीतियों और राजनीति के केंद्र में स्थापित कर दिया है।
पूंजीपति विचारधारा की पालक सत्ताओं के छद्म विकास व औद्योगीकरण के आर्थिक सिद्धांत के समांतर कृषि अर्थव्यवस्था के महत्व को सैद्धांतिक रूप से पुन: स्पष्ट किया है।
इस अन्दोलन का प्रभाव व्यापक रूप से विश्व के राजनीतिक क्षितिज तक पड़ना लाजमी है। इस अन्दोलन ने सामाजिक न्याय की अवधारणा को नया आयाम दिया है। भारत की राजनीति जो पिछले कुछ दशकों से वृहद सामूहिकता के सरोकारों से इतर धार्मिक आकांक्षाओं व वर्ग-प्रतिस्पर्धा पर आन टिकी थी ये उसके लिए भी परिवर्तन का बिन्दु है।
पंजाब में सियासी करवट की पूरी संभावना है। पंजाब किसान बहुल प्रदेश है। किसान जत्थेबन्दियां अन्दोलन के चलते बहुत सूझ-बूझ से मजबूत हो कर उभरी हैं। चालीसस विभिन्न जत्थेबन्दियों को जो समर्थन पंजाब की कृषि से ज़ुडी जनता ने दिया है वो विलक्षण है। इस अन्दोलन का प्रभाव आने वाले विधानसभा के चुनावों मे एक नयी भूमिका निभाएगा। जिस प्रकार किसानों ने केन्द्र की सत्ता की चूलें हिला दीं उसी प्रकार प्रदेश के राजनीतिक दलों को भी कठघरे मे खडा करने से वे चूकेंगे नहीं।
पूरे पंजाब में हर विधानसभा क्षेत्र में किसान अन्दोलन का प्रभाव गांव-गांव तक गहरा है। इस आन्दोलन ने समाज के सभी वर्गों व जातियों को जिस तरह से एक बार फिर से साथ ला दिया उसे राजनीतिक दल इन चुनावों में शायद ही बांट पाएं।
संयुक्त किसान मोर्चा एक बड़ी ताकत के रूप में उभरा है जिसका राजनीतिक दल अभी मूल्यांकन नहीं कर पा रहे हैं। किसान अन्दोलन ने जहां एक ओर जनता को उनकी ताकत का अहसास करवा दिया है तो दूसरी ओर सत्ता की जवाबदेही को भी सुनिश्चित कर दिया है।
पिछले कई दशकों से चली आ रही पारंपरिक राजनीति व वर्चस्ववादिता को अबकी बार विराम लगा कर नयी राजनीतिक भूमिका की परिभाषा धरातल पर आना तय है। इस अन्दोलन से पंजाब ने अपनी प्रगति व उत्थान के लिए राजनीतिक नेताओं को बाध्य कर दिया है कि कोरे आश्वासनों का समय व भविष्य अब राजनीति में नहीं चलने वाला। सरोकार की प्रतिबद्धता व परिणाम ही राजनीती की नयी इबारत है।
लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं