तस्वीरों में संविधान दिवस 2021: संवैधानिक मूल्यों की बहाली के लिए देश भर में लोगों ने ली शपथ


संविधान दिवस के अवसर पर शुक्रवार को देश भर में विविध किस्म के कार्यक्रम आयोजित किए गए। पूरब में उत्‍तर प्रदेश से लेकर ओडिशा वाया बिहार, झारखंड और पश्चिम में गुजरात तक संवैधानिक मूल्‍यों पर अलग-अलग स्‍तरों पर परिचर्चाओं का आयोजन किया और आम लोगों के बीच इन मूल्‍यों के शिक्षण की पहल की गयी। इतने व्यापक स्तर पर संविधान के प्रति जागरूकता कार्यक्रमों का होना अपने आप में अभूतपूर्व है।  

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संसदीय क्षेत्र बनारस में मनरेगा मजदूर यूनियन ने अपने कार्यकर्ताओं के लिए ‘जय भीम’ फिल्म का प्रदर्शन किया। उसके बाद संवैधानिक मूल्‍यों पर चर्चा रखी। यूनियन से सम्बद्ध सामाजिक कार्यकर्ता सुरेश राठौड़ ने यह जानकारी दी।

बनारस में मनरेगा मजदूर यूनियन ने अपने कार्यकर्ताओं के लिए ‘जय भीम’ फिल्म का प्रदर्शन किया

उत्तर प्रदेश के सीतापुर में संगतिन किसान मजदूर संगठन ने अपने अनूठे तरीके से संविधान दिवस मनाया। यहाँ के मिश्रिख, पिसावां, महोली, मछरेहटा, एलिया, खैराबाद, हरगांव के लोगों ने अपने-अपने गांवों में संविधान की शपथ ली। संविधान की प्रस्तावना में लिखे हर एक बिंदु पर लोगों ने चर्चा की।

संगतिन किसान मजदूर यूनियन की ऋचा सिंह की पोस्ट:

इसी तरह आज़मगढ़ में दाऊदपुर स्थित फरहत क्लासेज में संवैधानिक मूल्यों पर एक परिचर्चा आयोजित की गयी। परिचर्चा में उपस्थित रिहाई मंच के महासचिव राजीव यादव ने कहा:

”आज हमारे सामने कई तरह की चुनौतियां है। स्वतंत्रता आंदोलन से जुड़े नेताओं का मजाक उड़ाया का रहा है। संविधान की मर्यादा के विरूद्ध बहुत कुछ घटित हो रहा है। सामाजिक न्याय पर हमले बढ़े हैं और यह लड़ाई पीछे छूटती दिख रही है, लेकिन संघर्ष जारी है और संविधान हमें इसको जारी रखने के लिए प्रेरित करता है। संविधान को आधार बना कर ही संघर्ष को आगे बढ़ाया जा सकता है और विजय प्राप्त की जा सकती है।”

रिहाई मंच के राजीव यादव, आजमगढ़

इस मौके पर अनुवादक ओर सामाजिक कार्यकर्ता मसीहुद्दीन संजरी ने कहा कि बिना संवैधानिक मूल्यों को आत्मसात किए समतामूलक समाज की स्थापना नहीं हो सकती। इसकी शुरुआत हमें अपने घर और पड़ोस से करनी पड़ेगी।

उन्‍होंने कहा, ”संविधान की प्रस्तावना में स्वंत्रता, समानता, बंधुत्व और न्याय का उल्लेख उस समय तक कोई मायने नहीं रखता जब तक हम खुद इस कसौटी पर पूरा उतरने का प्रयास नहीं करते और साथ ही समाज के सबसे निचले स्तर तक उसे ले जाने में अपना योगदान नहीं देते। परिस्थितियां बहुत अनुकूल नहीं हैं लेकिन पीछे मुड़कर देखने की गुंजाइश भी नहीं है।”

अनुवादक ओर सामाजिक कार्यकर्ता मसीहुद्दीन संजरी

फरहत क्लासेज के संचालक उमैर अंजर ने कहा कि आमजन तक संवैधानिक मूल्यों को पहुंचाने के लिए ग्रामीण स्तर ऐसी चर्चाओं की बहुत जरूरत है। इस मामले में प्राइमरी स्कूलों और दूसरे छोटे शिक्षण संस्थानों की भूमिका बहुत महत्वपूर्ण और प्रभावी हो सकती है। अगर लिखित सामग्री उपलब्ध हो सके तो इसे दूसरों तक पहुंचाने में आसानी होगी।

इसी मौके पर किसान आंदोलन का एक वर्ष पूरे होने के उपलक्ष्‍य में संयुक्त किसान मोर्चा आजमगढ़ ने प्रतिरोध मार्च भी निकाला। प्रतिरोध मार्च कुंवर सिंह उद्यान गेट से कलेक्टरी कचहरी तक निकाला गया इसमें प्रमुख दुखरन राम, कॉमरेड विनोद सिंह, वेद प्रकाश उपाध्याय, डॉक्टर रविन्द्रनाथ राय, राम राज, रामजीत प्रजापति, रामकृष्ण यादव, दानबहादुर मौर्य, प्रशांत, संदीप, रामाश्रय यादव, सूबेदार यादव, राजीव यादव, बांकेलाल यादव, मुन्ना यादव आदि शामिल रहे।

झारखंड में रुम्‍बुल संस्‍था की ओर से रांची में एक बैठक रखी गयी जिसमें संविधान की उद्देश्‍यिका पर चर्चा हुई। बैठक में संवैधानिक मूल्यों पर चर्चा की गयी जो कि संविधान की प्रस्तावना में लिखित हैं। चर्चा के दौरान जो बुनियादी बातें निकल कर आयीं वे निम्‍न हैं-

• साधारण व्यक्ति के लिए संविधान को समझना कठिन है। संविधान को सरल भाषा में उनके बोलचाल के हिसाब से उन तक पहुँचाने की आवश्यकता है। जब तक लोग संवैधानिक मूल्यों के शब्दो को खुद से जोड़ नहीं पाएंगे तब तक वे इन मूल्यों को आत्मसात नहीं कर पाएंगे।

• हमें लोगों को संवैधानिक मूल्यों से जोड़ने के लिए उन्हें संविधान के इतिहास से जोड़ना होगा।

• संवैधानिक मूल्यों को परिभाषित करने की जरूरत है। लोगों को यह समझाने की जरूरत है कि संविधान में निहित मूल्य उनके जीवन शैली के मूल्यों से परे नहीं हैं।

• स्कूलों में संविधान की पढ़ाई होने की जरूरत है जिससे बच्चों को कम उम्र से ही संविधान की समझ होगी।

• संवैधानिक मूल्यों का हनन असमानता में बहुत बड़ा रोल अदा करता है। असमानता के कारण ही बाकी संवैधानिक मूल्यों का हनन होता है, जो है स्वतंत्रता, बंधुत्व और न्याय।

• संवैधानिक मूल्यों का हनन हमारे परिवार से शुरू होता है और पूरे समाज में उसका असर होता है।

रुम्‍बुल की ओर से दीपलक्ष्‍मी मुंडा ने बताया कि कार्यक्रम के अंत में तय किया गया कि इस तरह की बैठकें वे भविष्य में करते रहेंगे और संवैधानिक मूल्यों की समझ को बढ़ाने के लिए विचारों का आदान-प्रदान करेंगे।

यूपी के सोनभद्र ब्लाक नगवा के आदिवासी बहुल गांव सुअर सोत के एसबीएस में संविधान दिवस मनाया गया जिसमें बच्चों के साथ संविधान की उद्देश्यिका, हम भारत के लोग….. पर चर्चा की गयी और सामान्य ज्ञान प्रतियोगिता का भी आयोजन किया गया। फिर बच्चों को शिक्षा,  स्वास्थ्य के बारे में जानकारी दी गयी और बच्चों को नमकीन बिस्कुट का वितरण किया गया।

इस मौके उत्‍तर प्रदेश के बाराबंकी के जैदपुर क्षेत्र में किसानों के साथ किसानों के सवाल और संविधान पर लोगों से बातचीत की गयी। मौके से अधिवक्ता और सामाजिक कार्यकर्ता अमित अंबेडकर ने तस्वीरें भेजी हैं।

संविधान दिवस के ही दिन ओडिशा के प्रखर समाजवादी नेता और लोकसभा के पूर्व स्‍पीकर रबि रे की 96वीं जयंती मनायी गयी। इस मौके पर नालसार लॉ युनिवर्सिटी के कुलपति और संविधान विशेषज्ञ फैज़ान मुस्‍तफा ने भुवनेश्‍वर में संविधान के 70 वर्ष विषय पर रबि रे स्‍मृति व्‍याख्‍यान दिया।  

इस व्‍याख्‍यान के अंश नीचे सुने जा सकते हैं।

संविधान दिवस से एक दिन पहले ही लैंगिक हिंसा के विरुद्ध 16 दिनों का वैश्विक पखवाड़ा अंतर्राष्ट्रीय महिला हिंसा प्रतिरोध दिवस के मौके पर शुरू हुआ है जो 10 दिसंबर को मानवाधिकार दिवस तक जारी रहेगा। इस अभियान का उद्देश्य स्थानीय, राष्ट्रीय, क्षेत्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर लैंगिक हिंसा के बारे में एक मानवाधिकार मुद्दे के रूप में जागरूकता बढ़ाना है। इस अभियान की शुरुआत 1991 में प्रथम वीमेन्स ग्लोबल लीडरशिप इंस्टिट्यूट द्वारा की गयी थी।

झारखंड में गुरुवार को राँची के मोरहाबादी मैदान से इस अभियान की शुरुआत हुई है। इसी तरह लखनऊ में भी एक जन जागरूकता अभियान चलाया जा रहा है। शेड्स ऑफ रूरल इंडिया की पत्रकार नीतू सिंह इस अभियान को कई राज्‍यों में कवर कर रही हैं। इस मौके पर बिहार के मुजफ्फरपुर में कुछ लड़कियों से उन्‍होंने बात की है जिसे नीचे देखा जा सकता है।

संविधान दिवस पर गुजरात लोकसमिति द्वारा प्रकाशित और प्रो. हेमन्तकुमार शाह द्वारा लिखित पुस्तक ‘आमुख’ का अहमदाबाद में लोकार्पण किया गया। पुस्तक का लोकार्पण जाने-माने समाजशास्त्री श्री घनश्याम शाह और श्री अच्युत याज्ञीक द्वारा हुआ।

यह पुस्तक संविधान की प्रस्तावना में प्रस्तुत हरेक शब्द का न सिर्फ शब्दार्थ परंतु सिद्धान्त को भी समझाती है। आज संविधान पर सबसे ज्यादा हमला हो रहा है, ऐसे समय में यह पुस्तक संविधान के प्रति हमारी समज और संघर्ष को और मजबूत बनाती है।


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