ट्रम्प दम्पत्ति के कोरोना संक्रमण की चिंता से प्रधानजी अभी मुक्त भी नहीं हो पाए थे कि ग्लोबल हंगर इंडेक्स वालों से भुखमरी की रिपोर्ट जारी कर दिया!
ग्लोबल हंगर इंडेक्स 2020 की रिपोर्ट जारी हो गई है. इस बार 107 देशों की सूची में भारत 94वें स्थान पर आया है. भारत कई पड़ोसी देशों से पीछे चल रहा है. इन देशों में नेपाल, श्रीलंका, म्यामांर, पाकिस्तान, बांग्लादेश, इंडोनेशिया जैसे देश शामिल हैं. क्या कोई यह पूछ सकता है प्रधानमंत्री से कि यह राष्ट्रीय शर्म का विषय है या नहीं?
ग्लोबल हंगर इंडेक्स की रिपोर्ट के अनुसार 27.2 स्कोर के साथ भारत में भूख के मामले में स्थिति ‘गंभीर’ है. रिपोर्ट के अनुसार भारत की करीब 14 फीसदी जनसंख्या कुपोषण का शिकार है.
2020ग्लोबल हंगर इंडेक्स रिपोर्ट का कोई असर किसी फ़कीर के चित्त पर पड़ सकता है क्या? जिसने खुद अपने जीवनकाल में 35 वर्षों तक भीख मांग कर खाया हो वह किसी भुखमरी की बात को आसानी से स्वीकार करे, यह संभव नहीं लगता. याद कीजिए, भाजपा सांसद निशिकांत दुबे ने जीडीपी के बारे में क्या कहा था संसद में? जीडीपी कोई रामायण, महाभारत की तरह सत्य नहीं है. जब जीडीपी का जन्म नहीं हुआ था तब भी देश चलता था, व्यापार होता था, अर्थव्यवस्था होती थी.
योगी, संत फ़कीर आदि सब अपने में ही रमे रहते हैं, वे मोनोलॉग करते हैं यानी ‘मन की बात’. उन्हें कोई फ़र्क नहीं पड़ता दुनिया उनके बारे में कहा कहती है. लोग क्या सोचते हैं. अँधेरी गुफ़ा में तपस्या करना, फिर सुनसान सुरंग में अकेले हाथ हिलाना कोई सामान्य क्रिया नहीं है. ऐसी हरकतों के लिए तमाम सांसारिक हलचलों को त्यागना पड़ता है, खुद में लीन रहकर एकाग्रता में विलीन होने की कला में माहिर होना होता है.
सहजन की रेसिपी, खिचड़ी बनाने की विधि, कोई यूं ही नहीं सीख लेता एक दिन में. घोर तपस्या करनी पड़ती है.
राष्ट्रऋषि की पदवी मिलने के बाद किसी पर बाहरी निंदा, आलोचना का कोई असर नहीं पड़ता. दरअसल जब कोई जीव यह महसूस कर ले कि वह अंत में झोला उठाकर चल देगा तब यह पक्का हो जाता है कि वह उस मुकाम पर पहुंच चुका है जहां कोई हवा असर नहीं कर सकती. यह अलग बात है कि उसका वह झोला कितना बड़ा और भारी होगा.
हाथरस के बहाने विदेशी मदद से जो षड्यंत्र रचा गया है अभी उसकी पड़ताल चल ही रही थी कि कुछ और विदेशी ताकतों ने ग्लोबल हंगर इंडेक्स नामक संगठन बना कर एक अतिदुर्लभ व्यक्ति की छवि को धूमिल करने की साजिश रची है.
आर्टिकल 19: लोकतंत्र के शून्यकाल में…
एक अख़बार ने खुलासा किया कि प्रधानजी ने बीते 6 साल में संसद में सिर्फ 22 बार बोला है. ज्ञानी, समझदार लोग कम बोलते हैं. फिर भी उन्होंने 22 बार बोला है यह कम बड़ी बात नहीं. ज्यादा बोलना या सवाल करना अच्छी बात नहीं. यही कारण है कि अब संसद से प्रश्नकाल को ही हटा दिया है. इसे कहते हैं– काम बोलता है.
सैकड़ों बार जो मन की बात बोले उसे क्यों नहीं गिनते आप? आखिर जनता ने उन्हें भारी बहुमत दिया है! तो उनका जब मन होगा तभी बोलेंगे, जहां मन होगा वहां बोलेंगे.
ऐसा कौन फ़क़ीर हुआ आज से पहले जिसने किसी अमेरिकी राष्ट्रपति से तू तड़ाक से बात करने की हिम्मत की है? यह सब करने के लिए 56 इंच का सीना चाहिए. कोई मुल्क हमारी ज़मीन पर कब्ज़ा करे तो उसके बहुत एप्प बैन कर उसी से पीछे दरवाजे से करोड़ों का ऋण लेना मतलब दुश्मन को लाल आँखें दिखा कर पटकनी देना है.
कौन जानता था अब से पहले कि बादलों के पीछे से फाइटर प्लेन को राडार से बचा कर उड़ाया जा सकता है? 70 साल से किसी सरकार को पता नहीं चला कि नाले से निकलती गैस एक दिन चाय बनाने के लिए काम में लायी जा सकती है! पवन चक्की मने विंड टर्बाइन हवा से पानी निचोड़ कर पेय जल की आपूर्ति कर सकती है?
समकालीन राजनीतिक इतिहास पर हज़ार साल बाद एक क्लास में छात्र-रोबो संवाद
एक व्यक्ति जिसे इतिहास, विज्ञान, संपूर्ण राजनीति यानी एंटायर पोलिटिक्स का इतना ज्ञान है वही देवताओं के नेता होने की योग्यता रखता है. आचार्य विष्णुगुप्त उर्फ़ चाणक्य तक को नहीं पता था कि सिकंदर बिहार तक आये थे गंगा पार कर.
आपको यह सब बकवास लग सकता है, किन्तु आज से पहले इसरो के किसी वैज्ञानिक को इस तरह फफक कर रोते हुए किसी प्रधानमंत्री से लिपटते देखा आपने? वह वैज्ञानिक तक तक रोता रहा जब तक प्रधानजी की रगड़ाई से उनकी पीठ की गर्मी ने उनको शांत नहीं कर दिया.
नित्यानंद गायेन वरिष्ठ पत्रकार और कवि हैं। इनके सभी लेख पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें।