आर्टिकल 19: लोकतंत्र के शून्‍यकाल में…


अब्राहम लिंकन ने कहा था लोकतंत्र जनता का, जनता के लिए और जनता द्वारा शासन की प्रणाली है। इस प्रणाली में जनता की आकांक्षाओं का प्रतीक होती है संसद, जो सरकार को उन सवालों का जवाब देने के लिए बाध्य करती है जो जनता की उम्मीदों, उसके सपनों, उसकी दुश्वारियों से जुड़े होते हैं। भारत के संदर्भ में अब्राहम लिंकन की परिभाषा को मोदी सरकार ने बदल डाला है।

भारत की संसदीय व्यवस्था में लोकतंत्र का मतलब बीजेपी का, बीजेपी के लिए और बीजेपी के द्वारा हो चुका है। बीजेपी ही सवाल पूछ सकती है। बीजेपी को ही जवाब देना है और बीजेपी को ही सुनना है। इसीलिए 14 सितंबर से शुरू होने जा रहे संसद के सत्र में विपक्ष के सांसदों की जुबान पर ताला लगा दिया गया है। वे सवाल नहीं पूछ सकते। प्रश्न का काल होगा ही नहीं। भारत के संसदीय इतिहास में यह महान दिन मोदी जी की कृपा से आया है।

क्या टीवी के तमाम प्रचार के बावजूद अपनी लोकप्रियता के धराशायी हुए ग्राफ से मोदी तिलमिला उठे हैं? सिर्फ इसलिए कि उनके ‘मन की बात’ के चंद हजार लाइक की तुलना में डिसलाइक करने वालों की संख्या 10 लाख के पार चली गयी? और प्रधानमंत्री कार्यालय को घबराकर लाइक डिसलाइक का विकल्प बंद करना पड़ा?

प्रश्नकाल मतलब संसद की कार्यवाही का पहला घंटा, जिसमें पक्ष-विपक्ष का कोई भी सांसद कोई भी सवाल (जिसे पहले से सूचीबद्ध करवाना होता है) उठा सकता है और संबंधित मंत्री उसका जवाब देने के लिए बाध्य होते हैं। इसी प्रश्नकाल में सरकार को जनता की कसौटी पर परखा जाता है। मतलब प्रश्नकाल जनता के प्रति सरकार की जवाबदेही सुनिश्चित करने का सबसे लोकतांत्रिक तरीका है। इसकी व्यवस्था बाबासाहब अंबेडकर ने इसलिए की थी कि सरकारें अपने आपको सर्वशक्तिमान न समझने लगें। उन्हें अहसास रहे कि वे किसी भी सूरत में संपूर्ण संसद के प्रति उत्तरदायी हैं न कि सिर्फ अपनी पार्टी या समर्थकों के।

पहली बार यह व्यवस्था 1733 में इंग्लैंड में लागू हुई थी। इसे वेस्टमिंस्टर मॉडल कहते हैं। इसे सरकार को जवाबदेह बनाने के लिहाज से संसदीय प्रणाली की सबसे अच्छी व्यवस्था मानते हैं, लेकिन मोदी सरकार सवालों से ही भाग खड़ी हुई है। उसे किसी सवाल का कोई जवाब नहीं देना है। उसे अपनी मनमानियों पर कोई अंकुश, कोई लोकतांत्रिक हस्तक्षेप, कोई जनप्रतिरोध, कोई जवाबदेही नहीं चाहिए।

पिछले 22 साल में संसद के दो सत्रों के बीच अबकी सबसे लंबा फासला हुआ है- 174 दिनों का। संवैधानिक तौर पर दो सत्रों के बीच 180 दिन यानि छह महीने से ज्यादा का फासला नहीं हो सकता। वैसे, एक बात समझ में नहीं आती कि 6 महीने के बाद बुलाये गये इस सत्र में विपक्ष के सांसद करेंगे क्या? क्या वे महामहिम और मोदी जी का भाषण सुनने, मेजें थपथपाने या विधेयकों पर आइस-पाइस खेलने के लिए जाएंगे? 

दरअसल, मोदी जानते हैं कि जो सवाल उठेंगे उसके जवाब में उन्हें कुछ नये जुमले उछालने पड़ेंगे। जनता इससे त्रस्त हो चुकी है। उसके भीतर नये जुमलों को बर्दाश्त करने का जरा सा भी साहस बचा नहीं है। इस सवाल का क्या जवाब हो सकता है कि आप 18-18 घंटे काम करते रहे तो देश रसातल में कैसे चला गया? इस सवाल का क्या जवाब हो सकता है कि प्रधानमंत्री ने जब कह दिया कि चीन ने हमारी एक इंच जमीन पर भी कब्जा नहीं किया है तो गलवान घाटी में इस समय क्या चल रहा है? 

इस सवाल का क्या जवाब हो सकता है कि इस देश को बेरोजगारों के कारखाने में आपने क्यों तब्दील कर दिया? इस सवाल का क्या जवाब हो सकता है कि महामारी में आपने देश को मुर्दाघर में क्यों तब्दील कर दिया? इस सवाल का क्या जवाब हो सकता है इस देश के कारोबारी क्यों लुट गए? इस सवाल का क्या जवाब हो सकता है कि आप देश की शान कही जाने वाली रेल, तेल और जहाज कंपनियां धड़ाधड़ क्यों बेचते जा रहे हैं? बैंकों का भट्ठा क्यों बैठा हुआ है? इस सवाल का क्या जवाब हो सकता है कि इस देश के छात्रों से भविष्य छीनकर, इस देश के नौजवानों से नौकरी छीनकर, इस देश के कारोबारियों की पुकार को कुचलकर आप चैन से अपने बागीचे में मोर से कैसे खेल पाते हैं? उसे दाना कैसे चुगा पाते हैं? 

मोदी जानते हैं कि माइनस 23.9 फीसद की जीडीपी का दुर्दांत इतिहास रचने के लिए भी उनसे सवाल पूछा जाएगा। इसलिए देश को गर्त में धकेलकर प्रधानसेवक संसद सत्र में उठने वाले सारे सवालों से भाग खड़े हुए हैं। हमको, आपको, देश को, यहां तक कि संसद को भी सिर्फ उनके जुमले सुनने होंगे, वाह-वाह करना होगा, मेजें थपथपानी होंगी। वाह, मोदी जी वाह!

सरकार कह रही है कि शून्यकाल में सवाल कर सकते हैं, लेकिन उसका समय भी आधा घंटा कर दिया गया है। पहले दोनों मिलाकर ये समय दो घंटे का होता था, लेकिन शून्यकाल में विभागों के मंत्री जवाब देने के लिए बाध्य नहीं होते। विपक्ष के सांसद इसे लोकतंत्र का खात्मा बता रहे हैं, लेकिन सुन कौन रहा है? 

टीएमसी के सांसद डेरेक ओ ब्रायन ने कहा कि “विपक्ष अब सरकार से सवाल भी नहीं पूछ सकता। 1950 के बाद पहली बार ऐसा हो रहा है। वैसे तो संसद का सत्र जितने घंटे चलना चाहिए उतने ही घंटे चल रहा है, तो फिर प्रश्नकाल क्यों रद्द किया गया। संक्रमण के बहाने लोकतंत्र का गला घोंटा जा रहा है।” डेरेक ओ ब्रायन ने तो यहां तक कह दिया कि बीजेपी संसद को M&S यानि मोदी एंड शाह Private Limited में बदलना चाहती है। मोदी तिरुवनंतपुरम के सांसद शशि थरूर के मुरीद हैं और थरूर मोदी के। फिर थरूर को क्यों कहना पड़ा कि “ये सरकार संसद को एक नोटिस बोर्ड में तब्दील कर देना चाहती है। अपने बहुमत को वो एक रबर स्टैम्प की तरह इस्तेमाल करना चाहते हैं, ताकि जो बिल हो वो अपने हिसाब से पास करा सकें।“

सवाल है कि संसद की कार्यवाही से प्रश्नकाल को हटा देने का फैसला सरकार अकेले कैसे कर सकती है? उसने इस पर बाकी दलों से क्यों नहीं पूछा? सहमति बनाने की कोशिश क्यों नहीं की? आरजेडी सांसद मनोज झा ने ट्वीट किया है, “हे सरकार, संक्रमण आपके नियंत्रण में नहीं है। जीडीपी माइनस 23.9 फीसद पर! वो भी आपके नियंत्रण में नहीं। सरहद के हालात नियंत्रण में नहीं। लेकिन जन सरोकार के सवाल संसद में न पूछे जाएं इसलिए संसद के प्रश्नकाल को काल के गाल में समा दिया गया।” 

संसद केवल सरकार की नहीं होती। विपक्ष भी उसका उतना ही महत्त्वपूर्ण हिस्सा है। खुद पीएम मोदी ने कहा था कि वो सबको साथ लेकर चलेंगे। तो संसद में उठने वाले सवालों से वो भाग क्यों रहे हैं? देश भूख से बिलख रहा है। नौजवान नौकरी के लिए तरस रहे हैं। किसान दाम के लिए तरस रहा है और कारोबारी काम के लिए तरस रहा है, लेकिन पीएम मोदी को किसी पर तरस नहीं आता। हरी घास पर मोर के साथ फोटो शूट के सामने रंगहीन हो चुके देश के चेहरे पर बारह बजा हुआ है और संसद को अपना भाषण कक्ष बनाकर टीवी चैनलों के एंकरों का गढ़ा हुआ विश्वनेता सवालों से भाग रहा है। इस पलायन को देश देख रहा है। सब याद रखा जाएगा।



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