अयोध्‍या का गांधी, जिसने 1949 में ही कांग्रेस को हिटलरवाद से आगाह कर दिया था!

उनकी मृत्यु एक लंबी बीमारी के बाद 28 अप्रैल 2010 को लखनऊ के मेयो अस्पताल में हो गई। उनकी मृत्यु का दुख उनके कुछ थोड़े-से मित्रों और लंबे समय तक सहयोगी मीरा बहन ने ही महसूस किया। लखनऊ से बाहर चिनहट में अक्षय ब्रह्मचारी आश्रम है जो आज भी इस अयोध्या के गांधी का कार्य आगे बढ़ाने में लगा हुआ है।

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लॉन टेनिस खेलने वाले तीन दोस्‍तों के दिमाग से निकला था बाबरी पर कब्‍ज़े का विचार!

यह स्पष्ट है कि अयोध्या रणनीति का विचार यहीं पैदा हुआ। साथ ही इसमें एक उपहास का भाव भी मिला हुआ था कि योजना व्यावहारिक हो भी सकती है या नहीं?

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लॉकडाउन के तले सरकार ने मजदूरों को उनकी औकात दिखाने का काम किया है

पूर्ण रोजगार की एक नीति के सभी विचारों को नीतिगत चर्चा से दूर रखा जाता है और बेरोजगारी एवं विनाश को बढ़ने दिया जाता है. यह कदम मजदूरी को लेकर मोलभाव करने की मजदूरों की शक्ति को कमजोर करने की नीयत से सिर्फ मजदूरों की एक आरक्षित सेना नहीं बनाये रख रहा है, बल्कि मज़दूरों की उनकी औकात भी दिखाता है.

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भारत में आपराधिक अवमानना की प्रासंगिकता: संदर्भ प्रशांत भूषण

आपराधिक अवमानना पर एक कानून की आवश्‍यकता की समीक्षा करने से आगे बढ़कर अवमानना के पैमाने का भी मूल्‍यांकन किये जाने की ज़रूरत है। यदि ऐसा कोई पैमाना वास्‍तव में होना ही चाहिए, तो वो यह हो कि क्‍या सवालिया टिप्‍पणी कोर्ट को उसका काम करने से रोके दे रही है। इसके अतिरिक्‍त, संस्‍थान की कैसी भी आलोचना को रोकने का साधन इसे नहीं बनने देना चाहिए।

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“मुझे पता नहीं कि भारत देश कितने दिनों तक इस रास्ते पर चलेगा”: साईबाबा को अरुंधति रॉय का पत्र

अंग्रेजी की मशहूर लेखिका अरुंधति रॉय ने नागपुर जेल के अंडा सेल में बंद दिल्ली यूनिवर्सिटी के शिक्षक जी एन साईबाबा को एक चिट्ठी लिखी है। यह चिट्ठी स्क्रॉल पर सबसे पहले प्रकाशित हुई थी। इसे हम हिन्दी में वहां से साभार छाप रहे हैं। इसका अनुवाद जनपथ के स्‍तम्‍‍‍‍‍‍‍भकार और वरिष्ठ पत्रकार जितेन्द्र कुमार ने किया है।

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गुना: राष्ट्रवाद की छाती पर बज रहा जातिवादी बर्बरता का एक शोकगीत

ये कहानी है इस चमचमाते हुए देश में गांव के एक गरीब की। मरते हुए किसान की। सताए गए दलित की। बिलखते हुए बच्चों की।

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फर्जी मुठभेड़ों को सभी सियासी दलों की स्वीकृति का दो दशक पुराना इतिहास

आनंद स्वरूप वर्मा की एक टिप्पणी का अंश जो उनकी पुस्तक ‘पत्रकारिता का अंधा युग’ से लिया गया है।

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जाति-संघर्ष की ज़मीन पर जुर्म और सियासत के हमजोली ‘विकास’ का एक अधूरा सिलसिला…

उसने न सिर्फ अपने परिवार के सदस्यों को तीन गांवों की प्रधानी दिलवायी बल्कि खुद के लिए भी जिला पंचायत सदस्य का पद प्राप्त किया। इस पद पर वो 15 वर्षों तक काबिज़ रहा। विकास का प्रभाव क्षेत्र अब शिवली समेत मंधना, बिल्हौर, शिवराजपुर और कानपुर शहर तक फैल चुका था।

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भारत-चीन सीमा विवाद पर गांधीवादी स्वतंत्रता सेनानी पंडित सुन्दरलाल का यशस्वी लेख

पं. सुन्दरलाल महान देशभक्त और स्वतंत्रता सेनानी हैं तथा गांधीवादी के रूप में विख्यात हैं। ब्रिटिश शासन के जमाने में उन्होंने हलचल मचा देने वाली एक किताब लिखी थी ‘भारत में अंग्रेजीराज’, जिसे ब्रिटिश सरकार ने तुरंत जब्त कर लिया था। 1951 ई. में वे चीन जाने वाले भारतीय शिष्टमंडल के नेता थे। वहां से लौटकर उन्होंने चीन के संबंध में ‘आज का चीन’ प्रसिद्ध पुस्तक लिखी।

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नेपाल में ओली-प्रचंड संघर्ष के पीछे एमसीसी की क्रोनोलॉजी को समझिए

प्रचंड खेमा ओली के विरोध के पीछे समझौते के अलावा भी कई कारण गिनाता है. मिसाल के लिए, प्रचंड खेमे का आरोप है कि दो पार्टियों के बीच एकता के वक्त जो प्रतिबद्धताएं से ओली ने की थीं वह उनसे पीछे हट गए हैं. इन प्रतिबद्धताओं में से एक थी कि ओली और प्रचंड बारी-बारी से प्रधानमंत्री पद संभालेंगे.

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