सामाजिक न्याय और दलित भागीदारी की बात करने वाले दल क्या ब्राह्मण वोटों की लालसा त्याग पाएंगे?

अगर ब्राह्मणों को मुसलमानों से कोई समस्या होती तब मुसलमानों से दूरी बनाने के बाद अखिलेश यादव को ब्राह्मणों ने वोट दिया होता जबकि ऐसा कुछ नहीं हुआ। जाहिर सी बात है अखिलेश यादव ब्राह्मणों का मूड समझने में चूक गए। ब्राह्मण समुदाय को मुसलमान विरोधी साबित करने की एक असफल कोशिश अखिलेश यादव ने की है।

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चंद्रशेखर के साथ गठबंधन न करने की चूक क्या समाजवादी पार्टी को भारी पड़ी?

चुनावों में धारणा और उसके संकेतों का बहुत महत्व होता है। चंद्रशेखर रावण के इस भावुक अंदाज ने दलित मतदाताओं को एक संदेश देने का काम किया कि समाजवादी पार्टी को उनके नेता की परवाह नहीं है। इतना ही नहीं, अपने को अपमानित करने का आरोप लगाते हुए चंद्रशेखर रावण ने दलित समुदाय के मुद्दे पर अखिलेश यादव के रवैये को लेकर भी जो प्रश्न उठाए, उन सबने दलित वर्ग के एक तबके को समाजवादी पार्टी से अलग करने का काम किया।

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बात बोलेगी: तीन करोड़ की शपथ और अगले बुलडोजर का इंतज़ार

कल पंजाब की पूरी आबादी ने शपथ ली है, यह बात पूरे देश को एक साथ बतलायी गयी। ऐसा कौन सा लीडिंग अखबार नहीं है जिसके प्रथम पृष्ठ पर पूरे पेज का विज्ञापन न छपा हो और वो भी बेनामी। यह गोपनीयता की पारदर्शिता है जो लोकतंत्र के नये प्रतिमान रच रही है।

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‘वल्गर’ समाजवाद व आइडेंटिटी पॉलिटिक्स की वैचारिकी की भूलभुलैया और कांग्रेस का भविष्य

सवाल है कि उत्तर प्रदेश में इस चुनाव में कांग्रेस क्या हासिल करना चाहती थी और कैसे हासिल करना चाहती थी। प्रियंका और कांग्रेस इस ‘क्या’ के बिंदु पर क्लियर थी कि उसे उत्तर प्रदेश में निष्क्रिय पड़ी पार्टी को पुनर्जीवित करना है। ‘कैसे’ के बिंदु पर कांग्रेस के पास कोई बुनियादी कार्यक्रम नही था। संगठन मजबूत करना है, यह तो पता था पर कैसे करना है इसको लेकर समझ का अभाव था।

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विधानसभा चुनाव नतीजे: आर्थिक स्वतंत्रता के बिना क्या स्वतंत्र राजनीतिक निर्णय ले सकती है जनता?

संविधान निर्माताओं की आशंका और चेतवानी को ध्यान में रखते हुए देश के संसदीय चुनाव को इसी नजरिये से देखना चाहिए कि क्या आर्थिक रूप से विपन्न समाज राजनैतिक निर्णय लेने में स्वतंत्र है? या कुछ आर्थिक मदद करके उसकी राजनैतिक स्वतंत्रता को छीना अथवा प्रभावित किया जा सकता है?

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विपरीत परिस्थितियां ही क्रांति को जन्म देती हैं! विधानसभा चुनावों के नतीजों से निकलते सबक

रोचक बात यह है कि चुनाव प्रचार के दौरान नरेंद्र मोदी ने विपक्षियों को ही ‘सांप्रदायिक’ बता दिया। नेता और जनता के बीच शानदार ‘कनेक्टिविटी’ रखने वाले नरेंद्र मोदी का मतदाताओं पर असर दिखा भी जब मुझे कुछ मतदाताओं के द्वारा कहा गया कि जब मुसलमान समाजवादी पार्टी के पक्ष में एक हो सकते हैं, तो हम लोग बीजेपी के पक्ष में एक क्यों न हो?

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ये चुनाव परिणाम बतलाते हैं कि भारतीय राजनीति को नये सिरे से समझने की जरूरत है

कांग्रेस अपनी पार्टी के सबसे बड़े चेहरे प्रियंका के सहारे मैदान पर काफी मेहनत करती नजर आयी पर जमीनी स्तर पर संगठन के अभाव में एक्टि‍विज्‍म पॉलिटिक्स पार्टी को लाभ नहीं दिला पायी।

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UP चुनाव: अखबारों, प्रत्याशियों और प्रशासन ने मिल कर कैसे उड़ायी आदर्श आचार संहिता की धज्जियां

सोशलिस्ट पार्टी (इण्डिया) के बांगरमऊ, उन्नाव से प्रत्याशी अनिल कुमार मिश्र के मुताबिक हफीजाबाद में 22 फरवरी 2022 को चुनाव से पहले वाली शाम भाजपा के लोगों द्वारा पैसे बांटे गए। अनिल कुमार मिश्र ने उन्नाव जिले के चुनाव अधिकारी को रात सवा नौ बजे लिखित शिकायत भेजी।

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7 मार्च, 2022: विकास के ‘काशी मॉडल’ के खिलाफ बनारसी अस्मिता और पहचान के इम्तिहान का दिन!

धरोहर बचाने की लड़ाई में शामिल कुछ रणनीतिकार शहीद हो गए। इसमें पक्काप्पा के योद्धा पंडित केदारनाथ व्यास, जर्मनी की साध्वी गीता व मुन्ना मारवाड़ी का नाम प्रमुखता से लिया जा सकता है। कुछ लोग विस्थापन के सदमे व दर्द को झेल नहीं सके और उनकी हृदयगति थम गई।

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छह चरण बाद भाजपा के तरकश के तीर खतम होते नज़र आ रहे हैं!

भाजपा को 10 मार्च को एक सदमे के लिए तैयार रहना चाहिए। उसे एक ऐसा नेता परास्‍त करने वाला है जिसकी उम्र भाजपा के राज्य व केन्द्र के सभी महत्वपूर्ण नेताओं की औसत उम्र से कम है।

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