हिमाचल का भविष्य तो सामने है लेकिन मुनाफे की हवस का इलाज क्या है!

इससे पहले 1971, 1988 और 1995 में ब्यास ने सब कुछ तबाह कर दिया था, लेकिन लोग 2023 की बाढ़ को सबसे अधिक खतरनाक मान रहे हैं। इस बार जो नुकसान हुआ, बह कई गुना अधिक है। नदी का रुख मुड़ने से पानी रिहायशी इलाकों तक पहुंचा, जो तबाही का कारण बना। नदी का तटीयकरण न होने से भी पानी रिहायशी इलाकों तक पहुंच गया।

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जोशीमठ के आईने में हिमाचल का दर्दनाक भविष्य और विदेशी वित्तीय पूंजी का तांडव

हिमाचल के अंदर 2019 में हुई इनवेस्टर मीट के तहत जो 95 हजार करोड़ के मेमरोंडम ऑफ अंडरस्टेंडिग (एमओयू) हुए हैं अगर यह लागू हो जाए तो कितने जंगल का नाश होगा इसका अंदाजा नहीं लगाया जा सकता। इतना ही नहीं सरकार हाईड्रो प्रोजेक्ट, मंडी के बल्ह, नांज, तत्तापानी जैसे इलाकों की उपजाऊ भूमि को भी बड़ी परियोजानाओं के लिए दे रही है।

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लोकतंत्र में चीते की वापसी का राजसी उत्सव

मीडिया और सरकारी प्रचार तंत्र के बड़े-बड़े दावों से एकदम अलग प्रोजेक्ट चीता की कामयाबी के लिए निर्धारित मापदंड यह दर्शाते हैं कि सरकार स्वयं बहुत ज्यादा आशान्वित नहीं है। प्रोजेक्ट को सफल मानने के लिए निर्धारित लक्ष्यों में लाये गये चीतों में से 50 प्रतिशत का जीवित रहना, इन चीतों द्वारा कुनो-पालपुर को अपना घरेलू क्षेत्र बनाया जाना, इन चीतों का वन में प्रजनन करना, उत्पन्न शावकों का एक वर्ष से अधिक अवधि तक जीवित रहना तथा एफ1 पीढ़ी का कामयाबी से प्रजनन करना आदि सम्मिलित हैं।

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अडानी के पावर प्लांट सहित अन्य परियोजनाओं से पर्यावरण की रक्षा के लिए गोड्डा में सम्मेलन

गोड्डा पावर प्लांट में ऑस्ट्रेलिया से आयात किया हुआ कोयला जलाकर बिजली उत्पादन किया जाएगा जिसका निर्यात बांग्लादेश किया जाएगा। ऑस्ट्रेलिया की कोयला खदान और ऑस्ट्रेलिया व भारत में बंदरगाह जिसके ज़रिये कोयला आयात किया जाना है, तीनों अडानी कंपनी के ही हैं।

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पंचतत्व: 5G की तकनीक पीछे जाने का पुल खत्म कर देगी!

वैज्ञानिक अध्ययनों में साबित किया जा चुका है कि मानव निर्मित ईएमएफ के कारण जीवों पर प्रतिकूल जैविक प्रभाव पड़ते हैं। पिछले दशकों में तैनात वायरलेस तकनीकों ने हमारे पर्यावरण में ईएमएफ के स्तर को लगातार बढ़ाया है।

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वन संरक्षण कानून 1980 में प्रस्तावित संशोधन अलोकतांत्रिक: पर्यावरण कार्यकर्ता

पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय द्वारा वन संरक्षण अधिनियम 1980 में प्रस्तावित संशोधनों को लेकर प्रकाशित मसौदा दस्तावेज पर हिमाचल प्रदेश के विभिन्न पर्यावरणवादियों और सामाजिक संगठनों के प्रतिनिधियों ने अपनी आपत्तियां जाहिर की हैं।

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पंचतत्व: वन्यजीव और इंसानों का संघर्ष जैसा ‘कड़वी हवा’ में है, उसके मुकाबले ‘शेरनी’ झालमुड़ी है!

शेरनी ने एक अच्छे विषय के साथ वही कर दिया है जैसा पर्यावरण जैसे संवेदनशील मुद्दे पर हमारे अफसरान कर गुजरते हैं। मानव-जीव संघर्ष की गहराई को उकेरने के लिए हमें बेशक ‘कड़वी हवा’ जैसी फिल्म का रुख करना चाहिए, जो कई परतों में समस्या को उघाड़ती है।

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शेरनी: जंगल से निकाल कर जानवरों को म्यूज़ियम में कैद कर दिए जाने की कहानी

फ़िल्म की कहानी और इसके बीच स्थानीय राजनीति, अफ़सरशाही, प्रशासनिक नाकामी, पर्यावरण का दोहन और अवैध शिकार जैसे खलनायक शेरनी को बचाने का प्रयास करती फ़िल्म की ‘शेरनी’ विद्या बालन को बार-बार रोकते हैं और अंत में इसमें सफल भी हो जाते हैं।

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सामाजिक न्याय और पर्यावरण के लिए जो हितकारी नहीं, वह लक्षद्वीप का ‘विकास’ नहीं

लक्षद्वीप में जो नयी नीतियां सुझायी गयी हैं उनसे मूलत: बड़े उद्योग का ही लाभ होगा. ताज्जुब है कि सरकार क्यों उद्योग हित में जनता के हित को दरकिनार करने पर उतारू है? इन नीतियों से जलवायु परिवर्तन पर किये गये वादों पर भी भारत खरा नहीं उतरेगा, समुद्र का जल स्तर बढ़ेगा और जलवायु संकट गहराएगा.

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आखिर मिल ही गया बजट में पर्यावरण को एक मौका!

भारत पर वायु प्रदूषण का कहर जग ज़ाहिर है। इस समस्या से निपटने के लिए 10 लाख से अधिक जनसंख्या, वाले 42 शहरी केन्द्रों के लिए 2,217 करोड़ रुपये की राशि मुहैया कराने का फैसला लिया गया है। यही नहीं, सरकार ने गाड़ियों से होने वाले प्रदूषण से निपटने के लिए पुराने और अनुपयुक्त वाहनों को हटाने के लिए एक स्वैयच्छिक वाहन स्क्रैपिंग नीति की बात भी की है।

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