पंचतत्व: 5G की तकनीक पीछे जाने का पुल खत्म कर देगी!


कुछ दिन हुए जब अमेरिका में कुछ उड़ानों को लेकर खबरें आई थीं। अमेरिका में 5G इंटरनेट सेवा शुरू हुई तो इसका असर विमानों पर देखने को मिला। इस 5G के कारण एयर इंडिया ने भारत-अमेरिका मार्गों पर 14 उड़ानें रद्द कर दी थीं। विमानन कंपनियों के लिए अमेरिका में 5G सेवा का शुरू होना एक संकट की स्थिति पैदा कर रहा है। दरअसल, इस बात का अंदेशा जताया जा रहा है कि 5G से विमानों की लैंडिग में किसी तरह की दिक्कतें आ सकती हैं जिससे एक विमान का रनवे पर रुकना काफी मुश्किल हो जाएगा।

यह बेशक विमानों के लिए एक मुसीबत की तरह है जिसका निदान निकाल लिया जाएगा, लेकिन उड़ने वाली तमाम चीजें विमान नहीं होती हैं। उसके निदान के बारे में हम नहीं सोचते। क्या सरकारों ने कभी सोचा भी है कि इस 5G का जीवों और जैव-विविधता पर क्या असर होगा?

हर खगोलीय पिंड की तरह हमारी धरती का भी विद्युत-चुंबकीय क्षेत्र (ईएमएफ) है और इस धरती पर अरबों बरसों के दौरान जीवन ने इस ईएमएफ के साथ रहने के लिए सामंजस्य बिठा लिया है। हर सजीव पर इस ईएमएफ का प्रभाव पड़ता है। हम अपनी शरीर की कोशिकाओं के बीच भी संवाद के लिए ईएमएफ का इस्तेमाल करते हैं। जीवविज्ञान में विद्युत, चुंबकीय और विद्युत-चुंबकीय क्षेत्रों की भूमिकाओं पर खोजबीन अभी शुरुआती दौर में ही है।

वैज्ञानिक अध्ययनों में साबित किया जा चुका है कि मानव निर्मित ईएमएफ के कारण जीवों पर प्रतिकूल जैविक प्रभाव पड़ते हैं। पिछले दशकों में तैनात वायरलेस तकनीकों ने हमारे पर्यावरण में ईएमएफ के स्तर को लगातार बढ़ाया है। वायरलेस संचार तकनीकों जैसे डीईसीटी कॉर्डलेस फोन, वाई-फाई, ब्लूटूथ, 2G, 3G और 4G से आप परिचित ही होंगे। यह सारी तकनीक सभी फ्रीक्वेंसी के बीच उच्चतम ईएमएफ एक्सपोजर स्तर को कई गुना बढ़ा चुकी है। वायरलेस तकनीकों से पैदा होने वाला इलेक्ट्रोस्मॉग पहले से ही प्राकृतिक स्तर से 10 लाख खरब (आप गिन नहीं पाएंगे) गुना अधिक है। 5G इसमें रेडिएशन की एक और परत जोड़ देगा।

वायरलेस तकनीकों से पैदा होने वाला इलेक्ट्रोस्मॉग पहले से ही प्राकृतिक स्तर से 10 लाख खरब गुना अधिक है

5जी के शुरू होते ही विद्युत चुम्बकीय रेडिएशन काफी बढ़ जाएगी, हालांकि द काउंसिल ऑफ यूरोप सहित हजारों वैज्ञानिक और डॉक्टर दशकों से इस जोखिम के मद्देनजर अधिक बंदिशों की मांग करते रहे हैं।

आपके मन में एक सवाल पैदा हो सकता है कि कोरोना के बाद के समय में जब घर से काम करना अनिवार्य हो गया है और इंटरनेट हमारी जिंदगी का अहम हिस्सा बन गया है तो क्या हम 5जी का विरोध करके खुद को तनखैय्या नहीं बना लेंगे? हां. डर है इसका कि तकनीक की दौड़ में हम पीछे रह सकते हैं पर उसी इंटरनेट पर आप यह भी खोज डालिए कि मजबूत ईएमएफ का कीटों पर क्या असर पड़ा है? (क्योंकि यह शोध नेट पर उपलब्ध है)

यूरोप में अस्सी प्रतिशत जगहों पर मधुमक्खियों के छत्ते लगने बंद हो चुके हैं। मानव निर्मित ईएमएफ के संपर्क में आने वाले कीटों में प्रोटीन के उत्पादन, प्रजनन क्षमता में कमी, सुस्ती, उड़ान में परिवर्तन, भोजन खोजने में नाकामी में, रिएक्ट करने में समय अधिक लगना वगैरह जैसे बदलाव देखे गए। यही नहीं, इन कीटों की याद्दाश्त में भी कमी देखी गई।

एक अन्य शोध में कहा गया है कि अन्य बड़े जीवों और मनुष्यों में भी कुछ जैविक परिवर्तन हो सकते हैं और इस पर थोड़ी गहराई से रिसर्च की जरूरत है। ईएमएफ इंसानों में वोल्टेज नियंत्रित कैल्सियम चैनल्स पर प्रभाव डाल सकता है। असल में, किसी कैल्सियम चैनल के खुलने से कोशिका झिल्लियों (सेल मेंब्रेन) में कैल्सियम आयनों के जरिए एक प्रवाह पैदा होता है। जीवित कोशिकाओं में कैल्सियम की अधिक मात्रा से जैव-रसायन प्रतिक्रियाओं की शृंखला पैदा हो सकती हैः इससे फ्री रेडिकल्स पैदा होंगे। फ्री रेडिकल्स की मात्रा अधिक होने को आप संक्षेप में समय से पहले बूढ़ा होना (दिखना नहीं, होना) मान सकते हैं।

वैज्ञानिकों का मानना है कि 5जी से पैदा होने वाले मजबूत ईएमएफ से कीटों और परिंदों की उड़ान क्षमता पर असर पड़ेगा। कीटों की जनसंख्या कम होगी तो आपके खेतों में परागण कैसे होगा और इससे हर फसल की उत्पादकता प्रभावित होगी और पैदावार की मात्रा कम होगी।

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वैज्ञानिकों का अनुमान है कि विद्युत-चुंबकीय तरंगों का असर खाद्य श्रृंखला पर भी पड़ेगा और कृषि इससे बुरी तरह प्रभावित हो सकती है। साइंस डाइरेक्ट नामक वैज्ञानिक पत्रिका में प्रकाशित एक अध्ययन में अनुमान लगाया गया है कि 2005 में ही परागण पर दुनिया की अर्थव्यवस्था का 153 अरब डॉलर निर्भर था और यह दुनियाभर में मानवीय खाद्य उत्पादन 9.5 फीसद ही था।
5G की तकनीक में मिलीमीटर वेव्स का इस्तेमाल किया जाएगा जो असल में अधिक फ्रीक्वेंसी वाले वेव्स होंगे। इनका इस्तेमाल अभी तक किसी और तकनीक में नहीं किया गया है। इसकी रेंज 26 गीगाहर्ट्ज के रेंज में होगी। मिलीमीटर वेव्स को घनी आबादी वाले इलाकों में लगाया जाएगा जहां मोबाइल डाटा ट्रैफिक काफी अधिक होता है। ऑर्नो थीलेंस का एक अध्ययन बताता है कि मिलीमीटर वेव्स का असर थर्मल इफैक्ट के रूप में होगा। इससे कीटों, छोटी चिड़ियो, स्तनधारियों और उभयचरों के बर्ताव में बदलाव आ सकता है।

इंसानों पर असर की बात करें तो मिलीमीटर वेव्स के साथ एक्सपोजर से कोशिका की प्लाज्मा झिल्ली और कोशिका में मौजूद जीनोम पर असर पड़ सकता है। हो सकता है आप पर एंटीबायोटिक दवाएं काम करना बंद कर दें या फिर आने वाली संतानों के जीन में बदलाव हो जाए।

इंग्लैंड में एक रिपोर्ट में कहा गया है कि पेड़ों की अधिकता से मिलीमीटर वेव्स का प्रसार ठीक से नहीं हो पाता है। इसलिए यह भी हो सकता है कि पेड़ों की कटाई का काम मोबाइल सेवा प्रदाताओं के पक्ष में शुरू कर दिया जाए। पर अभी समय है- चुनना हमें और हमारे नीति नियंताओं को है कि तेज इंटरनेट ज्यादा जरूरी है या खाने के लिए अनाज, जैव विविधता और यह पर्यावरण!



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