सामाजिक न्याय और पर्यावरण के लिए जो हितकारी नहीं, वह लक्षद्वीप का ‘विकास’ नहीं


केरल की विधानसभा ने प्रस्ताव पारित किया है कि जो लक्षद्वीप के नये प्रशासक हैं उन्हें केंद्र सरकार वापस बुलाये और द्वीप के लोगों के जीवन और आजीविका के अधिकारों की रक्षा करे. अनेक ऐसी आवाजें उठ रही हैं जो लक्षद्वीप में सामाजिक न्याय और पर्यावरण के लिए, वहां के प्रशासक द्वारा सुझायी खतरनाक नीतियों का पुरजोर विरोध कर रही हैं. जन आंदोलनों के राष्ट्रीय समन्वय ने यह भी मांग उठायी है कि लक्षद्वीप की जनता के निर्णय लेने के लोकतांत्रिक अधिकार की रक्षा हो.

हाल ही में लक्षद्वीप के सरकारी प्रशासक प्रफुल खोडा पटेल ने ऐसे कानूनी बदलाव और नीतियां सुझायी हैं जो वहां के पर्यावरण के लिए तो खतरा हैं ही, बल्कि सामाजिक, सांस्कृतिक और आर्थिक व्यवस्था के लिए भी खतरा हैं. लक्षद्वीप में लगभग 65,000 लोग रहते हैं. अधिकांश लोग वहां मछुआरे हैं. जिस तरह की ‘विकास’ की नीतियां सुझायी गयी हैं, वह भले ही पर्यटक की दृष्टि से हितकारी हों परन्तु वहां के पर्यावरण, सामाजिक, सांस्कृतिक और आर्थिक व्यवस्था और संतुलन को हमेशा के लिए नष्ट कर सकती हैं.

जन आंदोलनों के राष्ट्रीय समन्वय ने इन नयी नीतियों का पुरजोर विरोध किया. इन नयी नीतियों में शामिल हैं, लक्षद्वीप विकास प्राधिकरण अधिनियम मसौदा 2021, असामाजिक गतिविधियों की रोकधाम के लिए अधिनियम आदि.

कितनी अजीब बात है कि लक्षद्वीप- जहां कहा जाता है कि कानून व्यवस्था बहुत अच्छी है, अपराध है ही नहीं, लोग घर-बार में ताला नहीं लगाते आदि और जेल खाली रहते हैं- जैसी जगह, गुंडा कानून जैसी नीतियों की क्या ज़रूरत है? सामाजिक न्याय आन्दोलन में सक्रिय मेधा पटकार और संदीप पाण्डेय सहित अनेक लोगों ने वक्तव्य में कहा है कि ज़बरन ऐसी नीतियां लागू करने से लक्षद्वीप में व्याप्त सामाजिक व्यवस्था, जनता का आपसी सौहार्द और आर्थिक संतुलन गड़बड़ा जाएगा, सांस्कृतिक धरोहर का नाश होगा और सामाजिक सद्भावना पर भी खतरा मंडराएगा.

लक्षद्वीप में जो नयी नीतियां सुझायी गयी हैं उनसे मूलत: बड़े उद्योग का ही लाभ होगा. ताज्जुब है कि सरकार क्यों उद्योग हित में जनता के हित को दरकिनार करने पर उतारू है? इन नीतियों से जलवायु परिवर्तन पर किये गये वादों पर भी भारत खरा नहीं उतरेगा, समुद्र का जल स्तर बढ़ेगा और जलवायु संकट गहराएगा. सोशलिस्ट पार्टी (इंडिया) के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष डॉ. संदीप पाण्डेय ने कहा कि लक्षद्वीप मुद्दे पर आयोजित ऑनलाइन खुले मंच पर अनेक लोगों ने सर्वसहमति से इन नीतियों के विरोध में भूमिका ली और केंद्र सरकार से वहां के प्रशासक को वापस बुलाने की मांग की. लक्षद्वीप में भारतीय प्रशानिक सेवा के सेवानिवृत्त अधिकारी ही प्रशासक के रूप में नियुक्त होते आये हैं और यह पहली मर्तबा है कि प्रशासनिक सेवा अधिकारी के बजाय एक राजनीतिज्ञ को वहां का प्रशासक बना दिया गया है. खुले मंच के प्रतिभागियों ने सर्वसम्मति से इस पर सवाल उठाया और लक्षद्वीप में ‘मालदीव्स’ जैसा ‘विकास’ करने की बात का पुरजोर विरोध किया.

लक्षद्वीप में शराब नहीं है परन्तु इन नयी नीतियों में शराब को द्वीप में लाने की बात है. कितनी विडंबना है कि शराब, जो अनेक जानलेवा रोगों और सामाजिक अभिशापों की जनक है और जिससे आर्थिक नुकसान उसके व्यापार से प्राप्त राजस्व से कहीं अधिक होता है, उसको ऐसी जगह लाने की ज़रूरत क्या है जहां उसका सेवन होता ही नहीं है? यदि शराब का राजस्व विकास के लिए ज़रूरी होता तो गुजरात में बिना शराब के राजस्व से कैसे विकास हो रहा है? सरकार का दायित्व तो यह है कि सारे देश को नशामुक्त करे और सभी लोगों के सतत विकास के लिए समर्पित रहे पर वह शराब उद्योग की कठपुतली बन रही है. लक्षद्वीप के लोग शराब नहीं चाहते परन्तु प्रशासन ज़बरदस्ती वहां शराब खोलने पर आमादा है.

शराब से होने वाले अनेक रोगों में वह रोग भी शामिल हैं जिनसे कोरोना वायरस रोग के गंभीर परिणाम (मृत्यु तक) होने का खतरा अत्याधिक बढ़ जाता है. कुछ महीने पहले तक लक्षद्वीप में कोरोना वायरस का एक भी रोगी था ही नहीं क्योंकि वहां जाने वाले सभी लोगों को कोचीन में 14 दिन के एकांतवास में अलग-थलग रखा जाता था और सभी संक्रमण नियंत्रण के कदम सख्ती से लागू किये गये थे, परन्तु नये प्रशासक ने इन प्रतिबंधों को हटाया जिसके नतीज़तन आज वहां लगभग 8,500 कोरोना वायरस से संक्रमित लोग हैं.

मैग्सायसाय पुरस्कार से 2002 में सम्मानित डॉ. संदीप पाण्डेय ने कहा कि भू-अधिकार सिर्फ वहां के स्थानीय लोगों का ही रहना चाहिए. पंचायत के लोकतांत्रिक और संवैधानिक अधिकार की रक्षा करना सरकार की जिम्मेदारी है.

लक्षद्वीप के लोगों ने ‘लक्षद्वीप बचाओ मंच’ के तहत व्यापक आन्दोलन छेड़ा है जिससे कि वहां के पर्यावरण, सामाजिक न्याय, सांस्कृतिक अधिकार, रोज़गार के अधिकार, आदि इन प्रस्तावित जनविरोधी नीतियों से सुरक्षित रहें. उनकी मांग है कि केरल की तरह अन्य प्रदेश सरकारें भी आगे आयें और लक्षद्वीप को बचाने के पक्ष में अपनी आवाज़ बुलंद करें.

लक्षद्वीप को बचाने के मुद्दे पर हुए ऑनलाइन खुले मंच में अनेक लोगों ने भाग लिया जिसमें पूर्व सांसद थंपन थॉमस, केरल उच्च न्यायालय के सेवानिवृत्त न्यायाधीश शमसुद्दीन, सोशलिस्ट पार्टी (इंडिया) के प्रवक्ता मनोज तमांग और राष्ट्रीय अध्यक्ष पन्नालाल सुराना, प्रख्यात पर्यवारणविद और सोशलिस्ट पार्टी की तेलंगाना महासचिव डॉ. लुबना सर्वथ, सामाजिक समागम से जुड़े और मध्य प्रदेश के पूर्व विधायक डॉ. सुनीलम, लक्षद्वीप बचाओ मंच के समन्वयक सादिक आदि प्रमुख रहे.


विश्व स्वास्थ्य संगठन महानिदेशक द्वारा पुरस्कृत बॉबी रमाकांत स्वास्थ्य अधिकार और न्याय पर लिखते रहे हैं और सीएनएस, आशा परिवार और सोशलिस्ट पार्टी (इंडिया) से जुड़े हैं.


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