हिमाचल का भविष्य तो सामने है लेकिन मुनाफे की हवस का इलाज क्या है!


जुलाई में अब तक हिमाचल प्रदेश में 27 जगह बादल फटने की घटनाएं हो चुकी हैं। 500 से अधिक जगह पर लैंड स्लाइड हुए हैं। प्रथमिक अनुमानों के आधार पर 8000 करोड़ रुपये का नुकसान हो चुका है। ये नुकसान बहुत बड़ा है क्योंकि पिछले आठ साल में जितना नुकसान मानसून के सीजन में हुआ था उतना मात्र कुछ दिनों में हो चुका है। 150 लोगों की मृत्यु हो चुकी है और 600 अधिक घर ढह चुके हैं। 4000 हजार घरों को नुकसान पहुंचा है, 1000 से अधिक पशुशालाएं तबाह हुई हैं। 1000 के करीब पशु मर चुके हैं। अब तक 1600 सड़कें क्षतिग्रस्त होने की खबर है। पेयजल व बिजली के ट्रांसफार्मर भी सैकड़ों की संख्या में बंद पड़े हैं। लगभग 90 प्रतिशत पेय जल योजनाएं ठप हो गई थीं। 1800 पेयजल योजनाओं के तो पंप तक पानी में बह चुके हैं।

प्रदेश के कई इलाकों में इस कदर बादल फटे हैं कि उसने 20-20 किलोमीटर तक क्षेत्र का भूगोल बदल दिया है। कुल्लू का सैंज बाजार अब शायद ही दोबारा उस जगह पर बस पाए। मनाली से कुल्लू तक बनाया गया हाइवे ऐसे दिखने लगा है जैसे यह नदी का ही हिस्सा हो।

इससे पहले 1971, 1988 और 1995 में ब्यास ने सब कुछ तबाह कर दिया था, लेकिन लोग 2023 की बाढ़ को सबसे अधिक खतरनाक मान रहे हैं। इस बार जो नुकसान हुआ, बह कई गुना अधिक है। नदी का रुख मुड़ने से पानी रिहायशी इलाकों तक पहुंचा, जो तबाही का कारण बना। नदी का तटीयकरण न होने से भी पानी रिहायशी इलाकों तक पहुंच गया।

कुछ लोग कह रहे हैं कि कुल्लू-मनाली कई साल पीछे चले गए हैं और आने वाले पांच साल तक इसकी भरपाई नहीं हो पाएगी। वह फिर वकालत कर रहे हैं कि सड़कें बनाई जाएं, बिजली प्रोजेक्ट ठीक किये जाएं, पर्यटन को फिर पटरी पर लाया जाए। लेकिन सही बात ये है कि जो इस साल हुआ वह हर साल होने वाला है। हिमाचल सहित तमाम हिमलयी क्षेत्रों का भविष्य यही होगा।

यह कहने के पीछे पर्याप्त आधार मौजूद है। ब्यास नदी में आई बाढ़ ने पिछले 50 साल के सारे रिकार्ड तोड़ दिये हैं। क्षेत्र के लोगों में पहले से कहानियां प्रचलित हैं कि ब्यास जब भी अपने रूप में आती है तो वह सब कुछ बहा कर ले जाती है। ब्यास सबसे खतरनाक और डरावनी नदी मानी जाती है। कुल्लू से लेकर मंडी तक यह बहुत संकरी है और दोनों किनारों पर सैकड़ों फुट ऊंचे पहाड़ खड़े हैं, लेकिन जितनी खूंखार ब्यास अब हुई है बुजुर्ग बताते हैं कि पहले इतनी खूंखार कभी नहीं थी। इसके पीछे स्पष्ट कारण है चंडीगढ़ से मनाली तक बना हाइवे, उसके अंदर निकाली गई पांच से अधिक सुरंगें, बनाए गये फलाईओवर, पुल, ब्यास पर बने हुए कई बांध, 27 के करीब जल विद्युत परियोजनाएं। और इनके बनाते समय बरती गई कोताही, ब्यास व इसकी सहायक नदियों, जैसे तीर्थन आदि में डंप किया गया करोड़ों टन मलबा। सुरंगें जितनी बनी हैं उतनी ही लगभग विफल भी हुई हैं। पहाड़ों को खोद कर मलबा नदियों के किनारे डंप कर दिया गया और तमाम रोड नदियों के किनारे उनकी ही जमीन में बनाए गये। नदियां संकरी होती गईं और उन पर पांच-पांच मंजिला होटल खड़े होते गये। नदियों के अंदर बड़े-बड़े आलीशान घर बना दिये गए। पर्यटकों को लुभाने के लिए नदियों को पाट दिया गया।

जिला कुल्लू में करीब 20 बिजली प्रोजेक्ट हैं। इनमें अधिकतर का निर्माण पूरा हो गया है। कुछ का निर्माण चल रहा है। जिले में बाह्य सराज आनी-निरमंड से लेकर मनाली तक हर नदी-नालों पर प्रोजेक्ट बने हैं। इसमें 10 के करीब बड़े प्रोजेक्ट हैं, जिनकी उत्पादन क्षमता 100 मेगावाट से अधिक है। इतने ही माइक्रो प्रोजेक्ट हैं। उसमें एक से पांच मेगावाट तक बिजली पैदा हो रही है। इन प्रोजेक्टों में दस से 12 सुरंगों को निर्माण किया गया है। हजारों के हिसाब से हरे भरे पेड़ों को काटा गया है। इसकी एवज में कुछ ही पेड़ों को लगाया जाता है। ब्यास में बाढ़ से हिमाचल प्रदेश पावर कॉर्पोरेशन लिमिटेड का लारजी में 126 मेगावाट का प्रोजेक्ट पूरी तरह क्षतिग्रस्त हो गया है। इसमें बिजली उत्पादन पूरी तरह से ठप है। 10 जुलाई को ब्यास, पार्वती, तीर्थन तथा सैंज नदी में आई बाढ़ से प्रोजेक्ट पूरी तरह तहस-नहस हो गया है। पावरहाउस में बाढ़ का पानी और मलबा घुसा है। प्रोजेक्ट को 658 करोड़ का नुकसान आंका गया है।

थुनाग का बाजार अवैध मलबे से तबाह हुआ है। सराज विधानसभा क्षेत्र के थुनाग बाजार में बर्बादी का मुख्य कारण सड़क निर्माण का फेंका मलबा और सड़क निर्माण के दौरान काटे पेड़ की अवैध डंपिंग है। बादल फटने के कारण थुनाग नाले के साथ मलबा और पेड़ कहर बनकर टूट पड़े। इससे पूरा बाजार तबाह हो गया। 2022 में रैनगलू हेलीपैड से तांदी गांव तक जब सड़क निर्माण किया तो उस समय कटिंग का मलबा हर कहीं नाले में फेंक दिया गया था। भारी बारिश के चलते जो सड़क निकाली थी, वह सड़क टूट गई और भूस्खलन हुआ। भूस्खलन अपने साथ कई पेड़ और डंपिंग की मिट्टी और लकड़ी को भी अपने साथ ले आया। इसके लिए वन विभाग और ठेकेदार जिम्मेदार हैं।

स्टेट डिजास्टर मैनेजमेंट अथॉरिटी के अनुसार प्रदेश में 4986 करोड़ रुपए से ज्यादा की सरकारी व निजी संपत्ति भारी बारिश से तबाह हो गई है। अकेले जल शक्ति विभाग की 1448.44 करोड़ रुपए, लोक निर्माण विभाग की 1621.65 करोड़ और बिजली बोर्ड की 1482.72 करोड़ रुपए की संपत्ति बर्बाद हुई। 2022 में करीब 2500 करोड़ रुपए की संपत्ति को नुकसान हुआ था, 2021 में 1118.02 करोड़ रुपए, 2020 में 853.61 करोड़, 2019 में 1170.56 करोड़ तथा 2018 में 1520.63 करोड़ रुपए की संपत्ति बारिश में तबाह हुई थी। बीते सालों में जितनी संपत्ति पूरे मानसून सीजन में तबाह हुई, उससे कहीं ज्यादा इस बार 8 से 11 जुलाई के बीच चार दिन की बारिश में तबाह हुई है। यह अनुमान अभी अधूरा है। मुख्यमंत्री का अनुमान 8000 करोड़ रुपये का है लेकिन आंकड़े इससे भी अधिक जाने वाले हैं। बहुत सारे क्षेत्र ऐसे हैं जहां पर अभी तक सरकारी विभाग की रिपोर्ट नहीं आई है। और सरकारी रिपोर्ट में सरकारी नुकसान को ही अधिक प्राथमिकता दी जा रही है क्योंकि निजी संपत्ति का मुआवजा भी सरकार को ही देना है।

सबसे अधिक तबाही उन नदियों के किनारे हुई है जहां पर हाइड्रो प्रोजेक्ट्स लगे थे और जहां पर नए-नए हाइवे बने थे। इस साल किरतपुर-मनाली हाइवे, कालका शिमला हाइवे और पठानकोट-कांगड़ा हाइवे लगभग हर रोज मौत की खबरें सुनाते रहे हैं। किरतपुर-मनाली हाइवे पर अमर उजाला लिखता है कि इस फोरलेन के निर्माण के लिए पहाड़ों का 90 डिग्री पर बेतरतीब कटान, खुली ब्लास्टिंग, अवैध डंपिंग, बेइंतहा माइनिंग ने पहाड़ों को तो खोखला किया ही, साथ ही नदी-नालों के रास्ते भी बंद कर दिए हैं। इस परियोजना के निर्माण के लिए लाखों टन मिट्टी पहाड़ों से निकाली गई, लेकिन उसे प्रदेश के बिलासपुर, मंडी, कुल्लू जिले के नदी-नालों और झील के किनारे डंप कर दिया। फोरलेन तो बनकर तैयार हो गया, लेकिन इन नदी-नालों को मक डंपिंग ने हमेशा के लिए बंद कर दिया।

कोर्ट के आदेशों के बाद अवैध डंपिंग को हटाने की कागजी कार्रवाई तो हुई, लेकिन जमीनी हकीकत इससे बहुत अलग है। किरतपुर से मनाली तक इस फोरलेन के लिए फोरलेन और टूलेन को मिलाकर कुल 21 टनल, 30 मेजर पुलों का निर्माण किया गया है। इनके निर्माण के लिए ब्लास्टिंग हुई, पहाड़ कटे और कहीं न कहीं कच्चे पहाड़ इनके निर्माण के बाद और कमजोर हो गए हैं।

आपदा में अवसर ढूंढने वाली केंद्र सरकार ने यहां भी अपना खेल खेला। हिमाचल एक कर्जदार राज्य है। विपक्ष की सरकार प्रदेश में होने के चलते केंद्र द्वारा कोई राहत पैकज जारी नहीं किया, कोई राष्ट्रीय आपदा घोषित नहीं की और प्रदेश सरकार द्वारा मांगी गई आर्थिक सहायता भी राजनीति की भेंट चढ़ती जा रही है। प्रदेश सरकार ने 2000 करोड़ रुपये का मामूली पैकेज मांगा था। प्रदेश में बीजेपी और कांग्रेस के बीच बयानबाजी का दौर खत्म हो चुका है, लेकिन प्रदेश की जनता अब तक मुआवजे की बाट देख रही है।

प्रदेश में विश्व बैंक, एशियन डेवलपमेंट बैंक, जर्मन कार्पोरेशन फंड, जापान कार्पोरेशन फंड, राष्ट्रीय ताप विद्युत लिमिटेड (एनटीपीसी, जोशीमठ के लिए जिम्मेदार बदनाम कंपनी), सतलुज विद्युत निगम लिमिटेड, नेशनल हाइवे अथॉरिटी, जिंदल कार्पोरेशन सहित बहुत सारी राष्ट्रीय, अंतर्राष्ट्रीय, बहुराष्ट्रीय कंपनियों का हजारों करोड़ रुपये विभिन्न बांध परियोजनाओं, विद्युत परियोजनाओं, सड़क निर्माण, सुरंग निर्माण, हवाई अड्डा, रेल निर्माण में लगा हुआ है। हिमाचल इन कंपनियों के लिए बहुत आसान शिकार बना हुआ है। जिस ब्यास में तबाही हुई उसी जगह से अब हाइवे के बाद बिलासपुर-मनाली रेल परियोजना पर भी काम शुरू हो चुका है। प्रदेश पर 80 हजार करोड़ रुपये कर्ज चढ़ चुका है। बहुत सारा कर्ज तो इन कंपनियों और बैंकों का ही है। जो विकास का मॉडल हिमाचल में इन कंपनियों के हित में लागू किया जा रहा है वह हिमचाल के बेहद नाजुक पारिस्थितिक, भौगोलिक तंत्र के लिए मुफीद नहीं है। यह यहां की जनता की आकंक्षाओं और जरूतों को पूरी करने के बजाय कंपनियों के मुनाफे के लिए खड़ा किया गया है।

2023 में जो हुआ है वह हिमाचल का भविष्य है। यह बाढ़ से हुआ है। मानसून की थोड़ी बहुत तैयारी रहती है, लेकिन जब यह दुर्घटना किसी दिन किसी बड़े भूकंप से होगी और ये बांध, सड़क, सुरंग, विद्युत परियोजनाएं जब पूरे उत्तर भारत के लिए खतरा बनेंगी तो संभलने का मौका तक नहीं मिलेगा।



About गगनदीप सिंह

View all posts by गगनदीप सिंह →

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *