ये जासूसी मामूली नहीं है! हमारे वजूद का अंतरंग अब चौराहे पर ला दिया गया है…

यह अपनी जेब में एक जासूस लिए फिरने से भी बड़ी बात है। यह मानो ऐसा है कि आपका सबसे प्रियतम– या उससे भी बदतर, आपका अपना दिमाग, अपने दुरूह कोनों तक में – आपकी खुफियागीरी कर रहा हो।

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स्टेन स्वामी की हत्‍या इस लोकतंत्र की हत्‍या का एक रूपक है!

जिन तमाम चीजों के भरोसे हम खुद को एक लोकतंत्र कहते हैं, वह सब कुछ खत्‍म किया जा रहा है। बेशक उतना धीरे-धीरे नहीं, जैसे फादर स्‍टेन स्‍वामी मारे गये। उनकी हत्‍या इस लोकतंत्र की हत्‍या का एक महीन रूपक है। हम पर नरपिशाचों का राज है। इस धरती पर उनका शाप फल रहा है।

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“स्वाभिमान को ताक पर रख के मैं हाथ जोड़ती हूं, आप कुर्सी से हट जाइए”!

अगर आप पद से नहीं हटते हैं तो हम में से लाखों लोग बिना किसी वजह के मारे जाएंगे। इसलिए अब आप जाइए। झोला उठा के। अपनी गरिमा का ध्यान रखते हुए। ध्यान करते हुए और एकांतवास में आप अपनी आगे की जिन्दगी सुकून से जी सकते हैं।

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एक लड़ाई मुहब्बत की: यलगार परिषद 2021 में अरुंधति रॉय का भाषण

हमें उन फंदों से सावधान रहना होगा, जो हमें सीमित करती हैं, हमें बने-बनाए स्टीरियोटाइप सांचों में घेरती हैं. हममें से कोई भी महज अपनी पहचानों का कुल जोड़ भर नहीं है. हम वह हैं, लेकिन उससे कहीं-कहीं ज्यादा हैं. जहां हम अपने दुश्मनों के खिलाफ कमर कस रहे हैं, वहीं हमें अपने दोस्तों की पहचान करने के काबिल भी होना होगा. हमें अपने साथियों की तलाश करनी ही होगी, क्योंकि हममें से कोई भी इस लड़ाई को अकेले नहीं लड़ सकता.

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लोकतंत्र की अंतिम क्रिया अभी बाकी है!

हम सभी एक सामूहिक, राष्ट्रव्यापी मदहोशी के शिकार हो गए थे. किस चीज़ का नशा कर रहे थे हम? हम तक एनसीबी का परवाना क्यों नहीं पहुंचा? सिर्फ बॉलीवुड के लोगों को ही क्यों बुलाया जा रहा है? कानून की नज़र में हम सभी बराबर हैं कि नहीं?

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हमारी फरियादों को सुनने वाला अब कोई नहीं है: अरुंधति रॉय

ये एक छोटा सा वीडियो है, दिल्ली से। यहां हम सभी, जो जमा हुए हैं, वे लोग हैं, जो आपको लगातार सुन रहे हैं। हम लोग यहां कुछ साधारण सी …

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