राग दरबारी: जिन्ना के बाद पहली बार भारत में नयी करवट लेती मुस्लिम सियासत

चूंकि हिन्दू नेतृत्व मुसलमानों की सुरक्षा करने में लगातार असफल हो रहा है इसलिए ओवैसी में भारतीय मुसलमान अपना भविष्य देखने लगा है। शायद ओवैसी भारत में एक अलग तरह की राजनीतिक शब्दावली और बिसात बिछाने की ओर अग्रसर हैं।

Read More

बात बोलेगी: जीत के सौ अभिभावक और हार का अनाथ हो जाना

क्या बिहार के चुनाव में उन मुद्दों का कोई मतलब नहीं था, जिनसे राष्ट्रीय राजनीति की दशा-दिशा बनती बिगड़ती है? इन मुद्दों को उठाने की कीमत कांग्रेस ने न केवल बिहार, बल्कि तमाम राज्यों में चुकायी है, लेकिन प्रादेशिक चुनाव को महज़ स्थानीय तो नहीं बनाया जा सकता है न?

Read More

अंतिम नतीजा चाहे जो हो, यह जनादेश सिर्फ और सिर्फ नीतीश के खिलाफ है!

तेजस्वी अगर इस चुनाव के एकल विजेता हैं, तो मुख्यमंत्री नीतीश कुमार हार के सर्वाधिक उचित व्यक्तित्व। वैसे तो राजनीति में नैतिकता और शर्म नामक शब्द होते नहीं, लेकिन नीतीश को नतीजे देखते हुए खुद ही अब संन्यास ले लेना चाहिए, केंद्र की राजनीति चाहें तो करते रहें।

Read More

बीते 15 साल में दफ़न तीन डिसमिल ज़मीन का एजेंडा क्या ज़िंदा कर पाएगा बिहार का नया नेतृत्व?

यहां लंबे समय से काम कर रहे सामाजिक कार्यकर्ताओं का कहना है कि 1950 के बाद यहां कोई लैंड सर्वे नहीं हुआ। कुछ जानकार यह भी बताते हैं कि अगर व्यापक जांच पड़ताल की जाए तो पूरा बिहार बहुत बड़े ज़मीन घोटाले का गढ़ साबित होगा।

Read More

बिहार: बनमनखी चीनी मिल के भव्य खंडहरों में छुपी है रोज़गार के चुनावी वादों की कड़वाहट

विडम्‍बना है कि जिस राज्‍य में कुछ दशक पहले तक सिर्फ चीनी से कई लाख लोगों को रोजगार मिलता था, आज वही रोजगार चुनावी वायदों और घोषणाओं में ढूंढा जा रहा है।

Read More

बिहार: एक पुल के इंतज़ार में 42 साल से यहां ढलती जा रही हैं पीढ़ियां

मुजफ्फरपुर और दरभंगा जिले की सीमा पर नेशनल हाइवे 57 से महज डेढ़ किलोमीटर दक्षिण की दिशा में बसा यह गांव अपने ही नागरिकों के प्रति सत्ता, सियासत और प्रशासनिक उपेक्षा का जीता-जागता एक मिसाल है। यह गांव इस बात का सबूत और गवाह है कि आखिर कैसे नेता, जनप्रतिनिधि और अधिकारी उसी जनता से अपना मुंह मोड़ लेते हैं जिसकी सेवा करने का संकल्प लेकर वे अपने पद और गोपनीयता की शपथ लेते हैं।

Read More

बदलाव के कगार पर बिहार: चुनाव के मुद्दे व संबंधित संदर्भ

आज के चुनावी परिदृश्य में एक तरफ जहां सुशासन बाबू अपने ही बनाये ताने-बाने में उलझे, अटके, फंसे पड़े दिख रहे हैं, वहीं दूसरी तरफ एक 31 साल का नौजवान नये जोश और उमंग से लबरेज पूरे वातावरण में ताजगी और बदलाव का समां बांध रहा है। एक से एक चुनावी रणकौशल के उस्ताद से लेकर तथाकथित चुनावी चाणक्य तक इस नौजवान की हुंकार के सामने बौने नज़र आ रहे हैं।

Read More

चुनावीबिहार-9: अफ़वाह पर टिकी उम्मीद और ज़मीन पर गायब चुनाव

पहली अफवाह यह है कि भाजपा और नीतीश कुमार में कट्टिस हो चुकी है और दोनों एक-दूसरे के साथ भितरघात कर रहे हैं। दूसरी अफवाह ये है कि तेजस्वी 10 लाख नौकरियां दे रहे हैं, बेरोजगारी मुद्दा है और इसी बात पर तेजस्वी बंपर बहुमत से जीत कर आ रहे हैं।

Read More

बिहार चुनाव: सामाजिक न्याय का घोषणापत्र

ब्राह्मणवादी सवर्ण पुनर्उत्थान के दौर में सामाजिक न्याय की पार्टियों ने पूर्णतः समर्पण कर दिया हो तो केवल ‘भाजपा हराओ’ के नारे के साथ भाजपा विरोधी गठबंधन के पीछे खड़ा नहीं हुआ जा सकता है बल्कि बहुजन आंदोलन का स्वतंत्र हस्तक्षेप जरूरी हो जाता है.

Read More

क्या लालू और उनकी पार्टी का राजनीतिक शुद्धिकरण कर रहे हैं तेजस्वी?

ऐसा पहली बार है जब बिहार के चुनाव में बात नौकरी और रोजी-रोटी की हो रही है और ये सब उस पार्टी से हो रही है जिसके सरकार पर बिहार में जंगलराज लाने का आरोप लगाया जाता रहा है. अचानक से चुनावी पोस्टर-बैनर और पर्चे से लालू का गायब हो जाना क्या सोची-समझी रणनीति का हिस्सा है या फिर राजद में लालू युग का ‘द एंड’ हो गया है?

Read More