बात बोलेगी: काया की कराह और निज़ामे मुल्क की आह के मद्देनज़र एक तक़रीर…

आपने या किसी ने भी कभी साँप के पैर देखने की कोई चेष्टा की? नहीं की होगी। आप कह देंगे कि पैर देखने जाएंगे तो वो डस लेगा। यानी आप इस डर से उसके पैर देखने की कोशिश नहीं करते हैं और बेसबब उसके बारे में बेवफाई के दर्द भरे नगमे गाने लगते हैं। अन्तर्मन से पूछिए कि क्या आपका ये रवैया ठीक है?

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क्या महामारी की आड़ में भारत के ‘कम जनतंत्र’ की ओर उन्मुख होने के रास्ते को सुगम किया जा रहा है?

क्या एक समुदाय विशेष को निशाना बनाने में उनकी कथित भूमिका को लेकर तथा उनके हाशियाकरण को लेकर कभी हुक्मरानों को या उनसे संबंधित तंजीमों को कभी जिम्मेदार ठहराया जा सकेगा? क्या वह अपने इन कारनामों को लेकर कभी जनता से माफी मांगेंगे?

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थाईलैंड: तानाशाही के खिलाफ़ महीनों से प्रदर्शन कर रहे युवाओं से घबरायी सरकार, इमरजेंसी लागू

तमाम खतरों के बावजूद पहली बार खुल कर राजा की भूमिका और जरूरत के बारे में वे बात कर रहे हैं। #WhyDoWeneedAKing जैसे अहम सवाल उठा रहे हैं और मांग कर रहे हैं कि नया संविधान बने और चुनाव हो ताकि एक जनतांत्रिक सरकार का गठन हो।

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आने वाली तानाशाही सत्ताओं की एक आहट थी 1965 में आधी रात डॉ. लोहिया की गिरफ्तारी

समाज जब-जब अपनी विभूतियों को भूलता है, तब-तब वह भटकाव का शिकार होता है। क्या इस डरावनी वैचारिक शून्यता में हम डॉ. राममनोहर लोहिया के विचारों को फिर से समझने की कोशिश करेंगे?

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देशान्‍तर: फ़िलिपींस में बढ़ता राष्ट्रवाद और बाहुबली राष्ट्रपति दुएर्ते की अजब दास्ताँ

इस कॉलम के माध्यम से भारत के बाहर चल रहे संघर्षों, मुद्दों, वहां की राजनैतिक परिस्थिति और दुनिया भर में बढ़ रही उदारवादी और दक्षिणपंथी ताक़तों को भारतीय मानस में …

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निरंकुशता के स्रोत, प्रतिरोध के संसाधन

निरंकुशता और जन-समर्थन विरोधाभासी लग सकते हैं; लेकिन आभास से वास्तविकता का निषेध नहीं हो जाता। बेशक यह समर्थन झूठ बोलकर हासिल किया जाता है।

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