बसु-रमण की धरती पर अंधश्रद्धा और वैज्ञानिक मिज़ाज पर कुछ बातें

पश्चिम के अकादमिक गढ़ों में बैठे उपनिवेशवाद के ये आलोचक और उत्तर-औपनिवेशिकता के ये सिद्धान्तकार निश्चित ही पश्चिमी समाजों को अधिक सभ्य, अधिक जनतांत्रिक और अधिक बहुसांस्कृतिक बनाने में योगदान कर रहे हैं, लेकिन पश्चिम के पास तो पहले से ही विज्ञान और आधुनिकता है, वह पहले ही आगे बढ़ चुका है। इस सब में हम पूरब वालों के लिए क्या है? गरीबी और अंधश्रद्धा के दलदल से हमें अपना रास्ता किस तरह निकालना है? अपने लिए हमें किस तरह के भविष्य की कल्पना करनी है?

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किसानों से शुरू होकर यह आन्दोलन सिर्फ़ किसानों का नहीं रह गया है!

यह आवश्यक है कि आन्दोलन लम्बे समय तक डटा रहे और चुनावों पर भी वांछित प्रभाव डाले. अपने तात्कालिक हितों और उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए भी आन्दोलन को राजनैतिक तौर पर कुशल और सचेत होना पड़ेगा. इसके लिए यह भी आवश्यक है कि फ़ासीवाद और सम्प्रदायवाद की विरोधी जनपक्षधर शक्तियाँ भी किसान आंदोलन से सीख लें और राजनैतिक सूझ-बूझ का परिचय दें.

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पेनरोज़ को मिला नोबल वाया आइन्स्टाइन और हॉकिंग: रवि सिन्हा का व्याख्यान

इस व्याख्यान में आइन्स्टाइन से पेनरोज़ और हॉकिंग तक की वह कहानी कही जायेगी जिसमें अन्य महारथियों का वर्णन भी होगा

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निरंकुशता के स्रोत, प्रतिरोध के संसाधन

निरंकुशता और जन-समर्थन विरोधाभासी लग सकते हैं; लेकिन आभास से वास्तविकता का निषेध नहीं हो जाता। बेशक यह समर्थन झूठ बोलकर हासिल किया जाता है।

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कोरोना, पूंजीवाद और सभ्यता: इस दौर के बाद पूछे जाने वाले कुछ सवाल

आखिर किस पर दोष मढ़ा जाय? कुछ वक्त तक तो निशाने पर चीन रहा, जब तक कि हिंदुस्तानियों का सबसे पसंदीदा शिकार परदे पर नमूदार नहीं हो गया- आप जानते …

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