क्यूबा ने कोरोना पर कैसे पायी विजय? क्यूबा के राजदूत के साथ एक संवाद


कोविड-19 के दौर में जिन देशों ने या जिन प्रदेशों ने वायरस पर काबू पाया है या उसके नुकसान के असर को सीमित किया है, उनमेंं क्यूबा और भारत के केरल राज्य का दुनिया में नाम बहुत ऊपर है। राजनीतिक कारणों से दुनिया का मीडिया इस सच को छिपाता है कि इन दोनों ही जगहों पर वायरस का मुक़ाबला बेहतर तरह से करने के पीछे इनकी सार्वजनिक स्वास्थ्य व्यवस्था ज़िम्मेदार है और ऐसी सुलभ सार्वजानिक स्वास्थ्य व्यवस्था बनाने के लिए इन जगहों के राजनीतिक नेतृत्व की इच्छाशक्ति ज़िम्मेदार है।

विनीत तिवारी द्वारा प्रस्तुत इस भूमिका के बाद 18 अगस्त, 2020 को अखिल भारतीय शांति एवं एकजुटता संगठन (एप्सो), जोशी-अधिकारी इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल स्टडीज़ (जे.ए.आई.एस.एस) तथा इंडियन डॉक्टर्स फॉर पीस एंड डेव्लपमेंट (आई.डी.पी.डी) द्वारा आयोजित वेबिनार में अपने वक्तव्य की शुरुआत भारत में क्यूबा के राजदूत ऑस्कर मार्टिनेज़ ने की। वेबिनार का विषय था क्यूबा की सार्वजानिक स्वास्थ्य व्यवस्था में फिदेल कास्त्रो तथा चे गुएवारा की भूमिका। वेबिनार के माध्यम से मौका था क्यूबा के क्रांतिकारी चिकित्सकों का आभार व्यक्त करने का, तथा उस प्रणाली के बारें में चर्चा करने का, जो आज भी अपनी विरासत को महफ़ूज़ कर अनवरत इस दुनिया में मानवता का सर्वोच्च दायित्व अदा कर रही है।

क्यूबा के राजदूत ऑस्कर मार्टिनेज़ ने क्यूबा की सार्वजानिक स्वास्थ्य व्यवस्था की स्थापना के बारे में बताते हुए फिदेल के उस उद्देश्य को याद किया जो एक न्यायपूर्ण और मानवतावादी समाज की बात करता है। इस सपने की नींव में चे गुएवारा के उस सफर का भी हिस्सा है जब वह लातीन अमरीका में एक चिकित्सा विद्यार्थी के रूप में, तथा दोबारा एक डॉक्टर के रूप में घूमे और स्थिति को समझा। इस सफर में ग़रीबी, भूख, विपत्ति तथा व्याधि में क़ैद लातीनी अमरीका की स्थिति ने चे को एक डॉक्टर से क्रांतिकारी में तब्दील किया। फिदेल, राउल कास्त्रो, केमीलो सीजनफ़्वोनस के साथ चे गुएवारा 26 जुलाई आंदोलन नाम के हरावल संगठन के हिस्से थे जो क्रान्ति के अगुवा थे। इस प्रणाली के निर्माण की शुरुआत फिदेल के क्रान्ति के दौरान आरंभ किए व्यापक स्वास्थ्य कार्यक्रम के साथ ही हुई। आज के चिकित्सकों ने मानवता, एकजुटता, नैतिकता के आदर्श तथा मरीज़ के साथ व्यक्तिगत संबंध स्थापित किए जाने के मानक वहीं से हासिल किए।

क्रान्ति के पूर्व क्यूबा की स्थिति को बताने के लिए ऑस्कर मार्टिनेज ने फिदेल के ऐतिहासिक भाषण “इतिहास मुझे सही साबित करेगा” से कुछ उद्धरण पैश किए। उन्होंने बताया कि आज क्यूबा में 97,000 के लगभग चिकित्सक मौजूद है और कुल मिला कर 4.8 लाख स्वास्थ्य कर्मचारी। मतलब हर 160 लोगों पर एक डॉक्टर, जो प्रति व्यक्ति तुलना में भारत से दस गूना ज़्यादा है। जीवन प्रत्याशा जो क्रांति के समय 60 बरस से कम थी वो अब पुरुषों में 78 तथा स्त्रियों में 81 हो गयी है। इसी के साथ देश में सौ फीसदी टीकाकरण मौजूद है।

यह स्थिति हासिल करना और उसे अब भी बरकरार रखने का सफर बेहद कठिन था। उन्होनें वह समय याद किया जब देश में पीने के लिए दूध मौजूद नहीं था और साथ ही साथ एक सशक्त समाज बनाने के लिए क्यूबा सक्रिय रूप से दवा और जीव विज्ञान के विकास, प्रोद्योगिकी एवं विकास संस्थान निर्माण तथा विज्ञान अभिनव में भाग ले रहा था। आज क्यूबा 60 प्रतिशत दवाओं का घरेलू उत्पादन करता है।

क्रान्ति के पश्चात क्यूबा में बेहद गरीबी होने के साथ-साथ बहुत कम संसाधन मौजूद थे। और विशालतम समस्या थी सभी को यह साधन मुहैया कराना। इंसान को केंद्र में रख क्यूबा ने प्रयास आरंभ किए। 21 दिसम्बर 2018 को, क्यूबा नेशनल असेंबली ने नव संशोधित संविधान को मंजूर किया। इसे 90.14% मतदाताओं द्वारा मंजूर किया गया। विचारणीय है कि नया संविधान एक साम्यवादी समाज की स्थापना के उद्देश्य को आगे रखते हुए समाजवाद के निर्माण की दिशा में काम करने की बात करता है जो एक साम्यवादी समाज के लिए पूर्व शर्त है।   

कार्यक्रम के दूसरे वक्ता, भारत में जन स्वास्थ्य अभियान के राष्ट्रीय सह समन्वयक डॉ. अभय शुक्ला ने कहा कि कोविड-19 के दौर में क्यूबा की सार्वजनिक स्वास्थ्य व्यवस्था और भी अधिक प्रासंगिक है। उन्होंने कहा कि इस वैश्विक महामारी में क्यूबा ने अपने सिर्फ 88 लोगों को खोया और इस स्थिति पर अब तक काबू पा रखा है। यही नहीं, क्यूबा के चिकित्सक विश्वभर में चिकित्सा सहायता पहुंचा रहे है। यह पहली आपदा नहीं, इससे पहले भी डेंगु तथा मेनिंजाइटस का सामना कर क्यूबा ने उसे टीका बनाकर खत्म किया था। क्यूबा पहला देश बना जिसने माँ से शिशु को प्राप्त एच.आई.वी संक्रमण खत्म किया। डेंगु के लिए इंटरफेरोन अल्फा तैयार किया। पहला देश जो मेनिंजाइटिस बी का टीका बनाने में सफल हुआ। क्यूबा के लिए स्वास्थ्य एक राजनीतिक मुद्दा है।  सन 1980 के दशक में क्यूबा में फेमिली डॉक्टर-एंड-नर्स प्रोग्राम की शुरुआत हुई। इस अभियान का उद्देश्य था प्रत्येक इलाके में प्राथमिक स्वास्थ्य सेवाओं को स्थापित करना।

सन 2009 के अपने क्यूबा तथा वेनेजुएला दौरे को याद करते हुए डॉ. अभय ने वेनेजुएला के सामाजिक कल्याणकारी कार्यक्रम मिशन बार्रिओ आदेन्त्रों का ज़िक्र किया, जिसका उद्देश्य था अविकसित झोपड़-पट्टी वाले क्षेत्र में जन स्वास्थ्य देखभाल प्रणाली को स्थापित करना। गौर करने की बात यह है कि उस झोपड़-पट्टी के निवासियों ने डॉक्टर के रूप में जिस इंसान को पहली बार देखा, वह क्यूबा के डॉक्टर थे। वे वहाँ उनके साथ रहे और इस योजना में वेनेजुएला की मदद की। उन्होंने संयुक्त राष्ट्र संघ के पूर्व महासचिव बॉन की मून की एक टिप्पणी को उद्धृत किया – ‘क्यूबा के डॉक्टर आपदा के स्थान पर सबसे पहले पहुँचने वाले और सबसे आखिरी में प्रस्थान करने वाले होते है’।

एप्सो की राष्ट्रीय महासचिव प्रोफ़ेसर सोनिया सुरभि गुप्ता ने अपनी बात को मुख्यतः इस प्रणाली के संभव होने के कारणों पर केन्द्रित रखा। उन्होनें फिदेल और चे, दोनों के आदर्श रहे महान क्यूबन क्रांतिकारी कवि होसे मार्ती को याद करते हुए बताया कि किस तरह उनके द्वारा बताई गयी मानव गौरव की अहमियत ने चे और फिदेल को प्रभावित किया। यह मानवता सही मायनों में समाजवाद और मार्क्सवाद से ही उपजती है और अपने स्वभाव में क्रन्तिकारी होती है। ऐसी क्राँतिकारी मानवता में गैर बराबरी के लिए कोई जगह नहीं होती और इसमें स्नेह का होना ही आपको इस तरह सेवा के लिए तत्पर कर सकता है।

क्यूबा और फिदेल की राजनीतिक दृष्टि और अर्थव्यवस्था की समझ मात्र एक तानाशाह को हटाने और अपने देश को आज़ाद करवाने तक की ही नहीं थी। अर्थशास्त्री डॉ. जया मेहता ने बताया कि उन्हें अंदाजा था कि उन्हें साम्राज्य्वादी शोषण और तानाशाही की व्यवस्था को ख़त्म करके समाजवाद बनाना था। फिदेल बेशक कम्युनिस्ट पार्टी के सदस्य नहीं थे लेकिन फिदेल के विद्यार्थी जीवन को याद करते हुए उन्होंने फिदेल के प्रारम्भिक समाजवादी दृष्टिकोण पर चर्चा की। किस तरह कम्यूनिस्ट मेनीफेस्टो पढ़ने के उपरांत फिदेल ने समाजवाद को काल्पनिक नहीं माना, बल्कि वैज्ञानिक दृष्टि और ठोस भौतिक परिस्थितियों से किस तरह एक नए समाज का निर्माण करना है, उसकी पहली सीढ़ी माना। जब क्रांति के पहले वे एक दफा गिरफ्तार हुए तब उनके पास से लेनिन की किताब निकली और उसके बारे में पूछे जाने पर उन्होंने कहा -‘जो लोग लेनिन से अनभिज्ञ है वह एक बेहतर दुनिया और सभ्यता हासिल नहीं कर सकते।’ उन्होंने आगे कहा कि पूँजीवादी समाज में मनुष्यों के श्रम से पैदा होने वाले अतिशेष (सरप्लस) मूल्य का इस्तेमाल बाजार तय करता है और समाजवादी व्यवस्था में इसका इस्तेमाल राजनीति तय करती है। क्रांति के बाद क्यूबा में सरप्लस के इस्तेमाल को फिदेल, चे गुएवारा और अन्य क्रन्तिकारी साथियों ने तय किया कि हम इस सरप्लस के 60 प्रतिशत का इस्तेमाल लोगों को शिक्षित, स्वस्थ बनाने और समाज कल्याण के अन्य कार्यों में लगायेंगे।

भारत देश में जहां 60-70% लोगों को पर्याप्त मात्रा में भोजन नहीं मिलता है, वहाँ उपयुक्त स्वास्थ्य देखभाल प्रणाली का ना होना एक संकेत है यह समझने के लिए कि इस देश की आर्थिक संरचना और राजनीतिक प्रणाली में कुछ दिक्कत है। वहीं क्यूबा प्रवास को याद करते हुए उन्होंने बताया कि क्यूबा अनेक मुश्किलों और अभूतपूर्व परिस्थितियों से गुज़रा है। चाहे वह तेल के संकट का दौर हो, समाजवादी व्यवस्था के प्रति उन्मुख पूर्वी खेमे (ईस्टर्न ब्लॉक) का ध्वस्त होना हो, सोवियत रूस का पतन तथा दुनिया से समाजवादी अर्थव्यवस्था का मिट जाना हो। चूंकि क्यूबा ने एक नए इंसान के निर्माण को महत्व दिया जिसमे इंसानियत की खूबियाँ हों और समाजवादी जीवन मूल्य हों। इसी कारण केवल क्यूबा की सरकार ही नहीं बल्कि तमाम क्यूबावासियों ने इन परिस्थितियों का एक साथ सामना किया। स्वाभाविक है कि सोवियत संघ या चीन जितना विस्तृत तथा प्राकृतिक संसाधनों से समृद्ध ना होने के कारण क्यूबा का समाजवादी मॉडल भिन्न रहा। क्यूबा को अपनी आर्थिक एवं अन्य वस्तुओं की ज़रूरतों के लिए अन्य देशों से मदद लेनी पड़ी। जब तक सोवियत संघ और अन्य समाजवादी देश थे तब परिस्थितियाँ इतनी मुश्किल नहीं थीं लेकिन अब क्यूबा के सामने बड़ी आर्थिक चुनौतियां हैं। हमें यक़ीन है कि क्यूबा की क्रन्तिकारी राजनीतिक चेतना के वारिस क्यूबा का मौजूदा नेतृत्व और फिदेल की विरासत को याद रखने वाली क्यूबा की जनता ज़रूर इन मुश्किलों से बाहर आएगी और क्यूबा जैसे देश केवल कैरेबियन में ही नहीं बल्कि अफ्रीका और एशिया में भी अनेक होंगे। उन्होंने ब्रिटिश अर्थशास्त्री जोन रॉबिंसन द्वारा क्यूबा के बारे में लिखे गए महत्त्वपूर्ण लेख क्यूबा – 65 का हवाला भी दिया।

कार्यक्रम में बीच में फिदेल कास्त्रो के स्वास्थ्य सम्बन्धी विचारों को दर्शाने वाले दो छोटे वीडियो भी दिखाए जिसमें फिदेल का मानवतावादी कथन आज भी हमारे लिए एक बेहतर दुनिया का स्वप्न कायम रखता है।

“हम वह देश नहीं जो अन्य देशों पर बमवर्षक विमान छोड़े, ना ही हमारे पास न्यूक्लियर बम है। हमारे पास लाखों चिकित्सक है जिन्हें इंसान का जीवन बचाने की शिक्षा मिली है”

आइ.डी.पी.डी. के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष डॉ. नारा सिंह मणिपुर से जुड़े थे। उन्होनें पूरे उत्तर-पूर्व भारत की तरफ से क्यूबा के लिए एकजुटता का संदेश दिया। अपनी क्यूबा यात्रा के संस्मरणों के साथ उन्होंने क्यूबा के ऑपरेशन मिरेकल के बारे में बताया कि 2004 में शुरू हुए इस अभियान का उद्देश्य दुनिया के तमाम नेत्रहीन व्यक्तियों के लिए निःशुल्क चिकित्सा व्यवस्था तथा ऑपरेशन सुविधा संभव करना है जो आज भी दुनिया के अनेक देशों में चल रहा है। साथ ही विश्व का सबसे बड़ा ओर्थपेडिक अस्पताल क्यूबा के हबाना में मौजूद है।

विज्ञान और विकास के गैर-मानवीय होने के बजाए मानवीय होने का एक रोचक उदाहरण देते हुए बताया, फिदेल ने क्यूबा वासियों से हर बच्चे के लिए एक लिटर दूध की आवश्यकता को पूर्ण करने का वादा किया था। दस साल के अंदर फिदेल ने यह वादा पूरा किया। कुल मिला कर 12 क़िस्म की गायों से उत्पादन हुआ। इनमें से एक गाय थी ‘उबरे ब्लांका’ जिसके नाम एक दिन में सबसे अधिक दूध देने का रेकॉर्ड दर्ज़ है, जो है 110 लिटर।

जिस दुनिया में मेडिकल प्रॉफ़ेशन या फिर एक डॉक्टर बनने की आकांक्षा को धन के मूल्य में आँका जाता है, जहां चिकित्सा एक व्यावसायिक गतिविधि है, उन्हीं विचारों के प्रभुत्व वाले अमेरिका के किसी विश्वविद्यालय में पढ़ते एकविद्यार्थी ने कार्यक्रम में आए क्यूबा के किसी डॉक्टर से पूछा था – एक क्यूबा के डॉक्टर की तनख्वाह कितनी होती है?

डॉक्टर का जवाब था – क्यूबा में डॉक्टर तनख्वाह के लिए नहीं, बल्कि इन्सानो के लिए काम करते है।    

वेबिनार में समापन वक्तव्य देते हुए एप्सो राष्ट्रीय महासचिव कॉमरेड पल्लब सेनगुप्ता ने क्यूबा-वासियों की बेमिसाल भूमिका का उल्लेख किया। उन्होनें उल्लेख किया उस नाम का जिससे क्यूबा के चिकित्सकों को संबोधित किया जाता है – सफ़ेद कपड़े ओढ़े सेना। ऐसी सेना जो अमन और शांति की दूत हो। और इसे याद करते हुए 2005 में पाकिस्तान में आए भूकंप का ज़िक्र किया। उन्होनें बताया कि उस भयानक स्थिति को देखते हुए क्यूबा ने पाकिस्तान से बिना कोई राजनीतिक संवाद या औपचारिक कार्यवाही करे बगैर अपने यहाँ से डॉक्टर की टीम रवाना की। कुल मिला कर 2400 चिकित्सक और पैरामेडिकल स्टाफ के साथ वहाँ पर 32 क्षेत्रीय अस्पताल और 2 राहत शिविरों की स्थापना की। वे तमाम दूरस्थ इलाकों तक पहुँचने में कामयाब रहे। अक्टूबर 2005 से 24 जनवरी 2006 तक क्यूबा की टीम ने कुल 6 लाख से अधिक परामर्श, 5925 सर्जरी कीं। भूकंप प्रभावित क्षेत्र के 44 विभिन्न स्थानों पर सेवाएं दीं। फिदेल कास्त्रो और चे गुएवारा को याद करते हुए उन्होंने बताया कि अपनी 9 बार की क्यूबा यात्राओं में वे 3 बार फिदेल कास्त्रो से मिले थे जो जीवन की बड़ी स्मृति है।            

इस ऑनलाइन कार्यक्रम में अमेरिका, ब्राज़ील, क्यूबा, फ़िनलैंड, नेपाल और दक्षिण कोरिया से लोग जुड़े तथा फेसबुक पर इसे 100 से अधिक लोगों ने साझा किया जिससे ये हज़ारों दर्शकों तक पहुँची। इस अंतरराष्ट्रीय वेबिनार का संयोजन इंदौर से किया था एप्सो के राष्ट्रीय सचिव अरविन्द पोरवाल, विनीत तिवारी, विवेक मेहता तथा सारिका श्रीवास्तव ने।


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