‘आपदा में अवसर’ को भांप लेने का तजुर्बा और मेघालय से आती एक आवाज़!


मूलरूप से समाजवाद की वैचारिक पृष्ठभूमि‍ से आये सत्यपाल मलिक ने पश्चिमी उत्‍तर प्रदेश से अपना राजनीतिक सफर शुरू किया था! साढ़े चार दशक में वे सत्ताधारी भारतीय जनता पार्टी के सौजन्य से राज्यपाल के संवैधानिक पद तक पहुँच गए, लेकिन अचानक उनके सुर आजकल बदले बदले नजर आते हैं। सत्यपाल मलिक के सियासी सफर पर नजर दौड़ाने से पता चलता है कि किसानों के समर्थन में आया उनका हालिया बयान ऐसे ही नहीं है, उसके पीछे उनका पुराना तजुर्बा और रिकार्ड काम कर रहा है।

1946 में बागपत के हिस्वाडा गांव में गरीब किसान परिवार में जन्मे सत्यपाल मलिक ने मेरठ विश्वविद्यालय से कानून की पढ़ाई की! मेरठ कॉलेज से छात्र राजनीति‍ में उतरे और अपना पहला चुनाव पश्चिमी उत्‍तर प्रदेश के बागपत से चौधरी चरण सिंह के भारतीय क्रांति‍ दल की ओर से 1974 में लड़ा। 1974 से 1977 तक वे उत्‍तर प्रदेश विधानसभा के विधायक रहे। समय के साथ पार्टी बदलते  रहे। 1984 में कांग्रेस पार्टी में शामिल हो गये और उतर प्रदेश से राज्यसभा सांसद बने। 1987 में बोफोर्स घोटाले के चलते कांग्रेस से इस्‍तीफा देकर वे 1988 में वीपी सिंह के दल में शामिल हो गये।  1989 में जनता दल के टिकट पर अलीगढ़ संसदीय क्षेत्र से सांसद बने।

1996 में फिर से समाजवादी पार्टी से अलीगढ़ संसदीय क्षेत्र से उन्‍होंने चुनाव लड़ा लेकिन हार गये। 2004 में वे भाजपा में शामिल हुए और पश्चिमी उत्‍तर प्रदेश को अपनी राजनीतिक कर्मभूमि‍ के तौर पर मानते हुए 2004 में लोकसभा चुनाव चौधरी चरण सिंह के बेटे अजीत सिंह के विरुद्ध लड़े और  हार गये।

2014 के चुनावों से पहले भाजपा ने सत्यपाल मलिक को पार्टी उपाध्यक्ष बना दिया और एकदम नये  चेहरे संजीव बालियान को टिकट दे कर चुनाव में उतार दिया। वर्तमान में मलिक मेघालय के राज्यपाल हैँ।

सत्यपाल मलिक अपने विवादस्पद बयानों के कारण चर्चा में आते रहे हैँ! जम्मू कश्मीर का राज्यपाल  रहते हुए उन्होंने करगिल में एक सभा में विवादित बयान दे दिया था।

“These boys who have picked up guns are killing their own people, they are killing PSOs (personal security officer) and SPOs (special police officers). Why are you killing them? Kill those who have looted the wealth of Kashmir. Have you killed any of them?” Malik had asked.
–  22 July 2019, ET

राज्यपाल के इस बयान पर जम्मू कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री रहे उमर अब्दुला व महबूबा मुफ्ती द्वारा बहुत सख्त एतराज जताया गया था। बाद में सत्यपाल मलिक ने स्पष्टीकरण देते हुए स्वीकार किया था कि मेरा यह वक्तव्य यहां व्याप्त अनियंत्रित भ्रष्टाचार से उत्पन्‍न गुस्से व खिन्नता के कारण हुआ। उन्होंने स्वीकार किया कि राज्य का संवैधानिक मुखिया होने के नाते उन्‍हें ऐसा नहीं बोलना  चाहिए था।

एक अन्य अवसर पर उन्होंने कश्मीर में रहते हुए बयान दे दिया था कि नई दिल्ली यहां पर पीपल्स  कॉन्‍फरेंस के नेता सज्जाद लोन को मुख्यमंत्री के रूप में देखना चाहती है।

2014 के लोकसभा चुनावों के लिए भाजपा के चुनाव घोषणापत्र में सम्मि‍लित ‘किसान नीति’ को सत्यपाल मलिक ने ही तैयार किया था। न्यूज एजेंसी रायटर से बात करते हुए सत्यपाल मलिक ने  11 मई 2014 को कहा था:

 “If elected, we will crack down on beef exports and we will also review the subsidy the government gives for beef or buffalo meat exports,”

अभी हाल ही में राज्यपाल सत्यपाल मलिक ने किसानों के पक्ष में बड़ा बयान दिया है। कृषि कानूनों के खिलाफ दिल्ली में चल रहे आंदोलन पर बात करते हुए उन्‍होंने कहा कि सरकार को किसानों की बात सुननी चाहिए, उन्हें खाली हाथ न लौटाएं। एमएसपी पर कानून बने। उन्होंने कहा कि किसानों पर बलप्रयोग करना उचित नहीं है, सिख कौम 300 साल तक किसी बात को नहीं भूलती। राज्यपाल ने कहा कि मैं भी किसान का बेटा हूं और किसानों का दर्द जानता हूं। यदि मेरी जरूरत पड़े तो मैं भी किसानों के साथ वार्ता करने के लिए तैयार हूं। मलिक ने यह भी कहा कि उन्होंने जब किसान नेता राकेश टिकैत की गिरफ्तारी की सुगबुगाहट सुनी तो फोन करके इसे रुकवाया!

उन्होंने कहा कि कृषि कानूनों को लेकर प्रधानमंत्री और गृहमंत्री को मैं पत्र लिख चुका हूं। पत्र में लिखा हुआ है कि किसानों को खाली हाथ मत लौटाना। यदि ऐसा हुआ तो नुकसान होगा। एमएसपी को मान्यता दे देनी चाहिए। कृषि कानून किसानों के पक्ष में नहीं हैं।

सत्यपाल मलिक ने यह भी कहा कि राज्यपाल का काम चुप रहना, हस्ताक्षर करना होता है, लेकिन मैं चुप नहीं रह सकता! इसलिए मेरी कब छुट्टी हो जाय पता नहीं!

राजनीतिक हलकों में सत्यपाल मलिक के इस बयान को कुछ विश्‍लेषक सरकार की किसान अन्दोलन के प्रति‍ उपेक्षा से जोड़ कर देखते हैँ जबकि‍ कुछ लोगों का मानना है कि सत्यपाल मलिक भविष्य के  लिए अपनी नयी राह खोजना चाहते हैं।

जाहिर है साल भर के भीतर उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव होने हैं और उसके मद्देनजर अवसर को भांप लेने के सत्यपाल मलिक के पुराने तजुर्बे को खारिज नहीं किया जा सकता।


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