क्या प्रधानमंत्री को पता है कि लोग उनके सम्बोधन से पहले किसी अनजान आशंका से भर जाते हैं!

प्रधानमंत्री को जनता की यह सच्चाई कभी बतायी ही नहीं गयी होगी। सम्भव यह भी है कि प्रधानमंत्री ने ऐसा कुछ पता करने की कोई इच्छा भी कभी यह समझते हुए नहीं ज़ाहिर की होगी कि जो लोग उनके इर्द-गिर्द बने रहते हैं वे सच्चाई बताने के लिए हैं ही नहीं।

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दो दूनी चार, 1600 से ज़्यादा की क़तार: मारे गए शिक्षकों के नाम बच्चों का एक सबक!

हर बार जब वह गिनती में लगे होते, तो खोई हुई आत्माओं की इस अंतहीन सूची में कुछ और नाम जुड़ चुके होते. उन्होंने सोचा कि अगर वह इन भटकती आत्माओं को पाताललोक में अपने ऑफ़िस के बाहर क़तार में खड़ा कर दें, तो यह लाइन सीधा प्रयागराज तक पहुंच जाती.

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क्या ‘लार्जर पॉलिटिक्स’ का गला घोंट रही है उत्तर प्रदेश की ‘न्यू कांग्रेस’?

इस बार उत्तर प्रदेश पंचायत चुनाव भाजपा के लिए भारी झटका सिद्ध हुए हैं. इस कठिन परीक्षा में कांग्रेस का फर्स्ट आना जरूरी नहीं था. उसका सेकंड या थर्ड आना भी बेहद उत्साहजनक हो सकता था, लेकिन जो कुछ ‘हो सकता था’, नहीं हुआ. पंचायत चुनाव के आंकड़ों में कई बार थोड़ा-बहुत अंतर रहता है, लेकिन लार्जर पिक्चर एकदम साफ़ दिखाई दे रही है.

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6 जून 2017 को हुए मंदसौर कांड में शहीद किसानों की नींव पर छह महीने से खड़ा है किसान आंदोलन

गत छह माह से अधिक समय से दिल्ली के बॉर्डरों पर तीन कृषि विरोधी कानूनों को रद्द कराने, सभी कृषि उत्पादों की लागत से डेढ़ गुना दाम पर खरीद की कानूनी गारंटी देने और बिजली संशोधन बिल 2020 को रद्द कराने के लिए चल रहे किसान आंदोलन के पीछे मंदसौर के शहीद किसानों की प्रेरणा काम कर रही है।

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ट्रम्प का मीडिया उद्यम और सूचना पर सत्ता व बाजार के संयुक्त नियंत्रण का भविष्य

महत्वाकांक्षी टेक कम्पनियाँ अगर तब के राष्ट्रपति ट्रम्प (बाइडन ने निर्वाचित हो जाने के बावजूद तब तक शपथ नहीं ली थी और ट्रम्प व्हाइट हाउस में ही थे) का अकाउंट बंद करने की हिम्मत दिखा सकती हैं तो उसके विपरीत यह आश्चर्य भी नहीं होना चाहिए कि अपने व्यावसायिक हितों के चलते सरकार के दबाव में वे हमारे यहां भी कुछ हज़ार या लाख लोगों के विचारों पर नियंत्रण के लिए समझौते कर लें।

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नरेंद्र मोदी के पैदा किये सवालों के जवाब राहुल गांधी के पास हैं, लेकिन वही उनकी चुनौती भी हैं!

राहुल गांधी के भाषण हों या पत्रकार वार्त्ताएं, देश की आर्थिकी के संबंध में वे खुल कर अपने विचार व्यक्त करते हैं और तब यह सोच कर ताज्जुब होता है कि मनमोहन सिंह के दस वर्षों के शासनकाल में उनकी ऐसी सोच कहां थी, जब वे संविधानेतर शक्ति के रूप में सत्ता पर बेहद प्रभावी थे।

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सात साल में भाजपा देवकान्त बरुआ के लाखों-करोड़ों क्लोन वाली इंदिरा काँग्रेस बन गयी है!

मोदी ने भाजपा को 1975 से 1984 के बीच की भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में बदल दिया है जिसमें देवकांत बरुआ जैसे चारणों ने इंडिया को इंदिरा और इंदिरा को इंडिया बना दिया था। पिछले सात साल में भाजपा में बरुआ के लाखों-करोड़ों क्लोन खड़े कर दिए गए हैं।

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इंदौर का एक चोर और उन लहरों का शोर, जिनका ‘पीक’ शायद कभी न आए!

जिन लहरों से हम अब मुख़ातिब होने वाले हैं उनका ‘पीक’ कभी भी शायद इसलिए नहीं आएगा कि वह नागरिक को नागरिक के ख़िलाफ़ खड़ा करने वाली साबित हो सकती है। जो नागरिक अभी व्यवस्था के ख़िलाफ़ खड़ा है वही महामारी का संकट ख़त्म हो जाने के बाद अपने आपको उन नागरिकों से लड़ता हुआ पा सकता है जिनके पास खोने के लिए अपने जिस्म के अलावा कुछ नहीं बचा है।

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राजपथ के रंगीन सपनों में खलल के बीच छवि बनाने का ‘संघठनात्‍मक’ अभियान

राजा और प्रजा के बीच उत्पन्न हुआ विश्वास का संकट उन रंगीन सपनों में ख़लल डाल सकता है जो नई दिल्ली में राष्ट्रपति भवन और इंडिया गेट के बीच राजपथ पर आकार ले रहे हैं। सारी परेशानी बस इसी बात की है।

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‘विफल स्टेट’ और ‘स्टेट की विफलता’ दो अलग बातें हैं, शातिर मीडिया का खेल समझिए!

मीडिया इतना शातिर बन गया है, यह इस दौर की सबसे बड़ी त्रासदी है क्योंकि वही है जो स्टेट के शीर्ष पर बैठे लोगों की विफलताओं को स्टेट की विफलता घोषित कर लोगों के आक्रोश की धार को मोड़ने की कोशिश कर रहा है। वह हमें बताना चाहता है कि हमने ऐसा ही स्टेट बनाया है तो आज इस भयंकर त्रासदी में तमाम विफलताओं के सबसे बड़े दोषी हम ही हैं।

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