बात बोलेगी: जीत के सौ अभिभावक और हार का अनाथ हो जाना

क्या बिहार के चुनाव में उन मुद्दों का कोई मतलब नहीं था, जिनसे राष्ट्रीय राजनीति की दशा-दिशा बनती बिगड़ती है? इन मुद्दों को उठाने की कीमत कांग्रेस ने न केवल बिहार, बल्कि तमाम राज्यों में चुकायी है, लेकिन प्रादेशिक चुनाव को महज़ स्थानीय तो नहीं बनाया जा सकता है न?

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तन मन जन: कोरोनाकाल में कैंसर के उपेक्षित रोगी

कोरोनाकाल में कैंसर रोगियों की उपेक्षा ने न केवल कैंसर बल्कि अन्य भयावह रोगों की गिरफ्त में फंसे असहाय लोगों के ज़ख्म पर नमक छिड़कने का काम किया है। साथ ही अमानवीयता के उदाहरण भी पेश किए हैं।

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दक्षिणावर्त: अपने ब्रह्म और आत्‍म से दूर होता हिंदू

सनातन संस्कार में समय का टुकड़ा, जिसे हम काल के नाम से जानते हैं, वह बहुत ही दूसरे अर्थों में इस्तेमाल किया जाता है, यदि इसे हम टाइम या समय के संदर्भ में देखें तो। यही वजह है कि आपको भारतवर्ष के शताब्दियों से गर्वोन्नत मंदिरों, स्थापत्य के चमत्कार गगनचुंबी धरोहरों के निर्माताओं का नाम कहीं नहीं मिलेगा।

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पंचतत्वः पुरुष नद, स्त्री नदियां और इनकी गोद में छुपा हमारा लोक-इतिहास

नदियों के नाम के साथ जुड़े किस्से बहुत दिलचस्प हैं. हर नाम के पीछे एक कहानी है और एक ही नाम की नदियां देश के अलग-अलग हिस्सों में मौजूद हैं.

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तिर्यक आसन: परिवार और सामुदायिकता में लगा परजीवी स्टेट का कीड़ा

अपने प्रतिनिधियों की सरकार और अपने आविष्कारों पर जनता की निर्भरता देख स्टेट चिंतामुक्त हो गया है। हमारी चेतना पर वो तमाम पट्टियाँ बाँध चुका है। एक पट्टी खुलती है, तब तक राजनीति और धर्म के प्रतिनिधियों के सहयोग से नई पट्टी बाँध देता है।

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बात बोलेगी: मैं दुनिया के मेयार पर खरा नहीं उतरा, दुनिया मेरे मेयार पर खरी नहीं उतरी…

अदालत थोड़ा मुहज्ज़िब लहज़े में मुनव्वर से पूछती है कि ज़रा अपनी पेशानी पर बल डालो और याद करो कि देश में इतने मासूमों की लिंचिंग के बाद भी कभी ज़ी न्यूज़ का कोई पत्रकार हिन्दी के किसी ऐसे कवि से उसकी प्रतिक्रिया लेने गया जो मोहब्बत के, श्रृंगार के गीत रचता है? क्या हिंदी के छपास कवियों से उसने कभी यह पूछा कि आपके धर्म के एक बंदे ने सरेआम एक गरीब मुसलमान को जला दिया है, आपको क्या कहना है?

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तन मन जन: चुनावी लहर के बीच उभर चुकी कोरोना की दूसरी लहर पर कब बात होगी?

चुनाव के दौरान नेताओं के लिए जनता का उमड़ना लाजिमी है। बिहार चुनाव में तो कोरोना कहीं लग ही नहीं रहा। आश्चर्य है। न कोई गाइडलाइन न कोई परहेज। मास्क की बात तो क्या करें लोगों को नंगे बदन बूथ पर वोट डालने के लिए घंटों कतार में लगे देख लें।

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दक्षिणावर्त: अदृश्य भय वाला सेकुलरिज्म बनाम फ़र्ज़ी डराने वाला इस्लामोफोबिया

मुद्दा क्या होना चाहिए था और क्या है? मुद्दा था कि इस्लाम के नाम पर फ्रांस में एक और हत्या हुई। यह तमाम हत्याओं की फेहरिस्‍त में एक और हत्या मात्र है और कम से कम अब इस्लाम के ऊपर बात होनी चाहिए। यह लेकिन मुद्दा नहीं बना। मसला इस बात को बनाया गया कि मैक्रां ने इस्लाम के ऊपर टिप्पणी की है और वह एक हत्यारे के बहाने ‘इस्लामोफोबिया’ को बढ़ावा दे रहे हैं।

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पंचतत्व: गोवा के दूधसागर का पानी कहीं गंदला लाल न हो जाए

गोवा की नदियों के पारितंत्र पर खनन गतिविधियों ने बुरा असर डाला है. मांडवी और जुआरी जैसी प्रमुख नदियों में लौह अयस्क की गाद जमा होने लगी है इसके इन नदियों की तली में जलीय जीवन पर खतरा पैदा हो गया है

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तिर्यक आसन: विश्वगुरु इंजीनियर्स का डीएनए टेस्टिंग लैब और ‘छोड़िए’ का दर्शन

हमने सदियों पहले ही दिमाग वाली मशीन बना ली है। हमारे यहाँ वो मशीनें आदम कही जाती हैं। आदम मशीनों के समूह में कोई आदम जाता है, तो मशीनें चिल्लाने लगती हैं- मारो, राक्षस आया। मशीन जाती है, तो स्वागत होता है- भाई आया। भाई आया।

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