पंचतत्वः पुरुष नद, स्त्री नदियां और इनकी गोद में छुपा हमारा लोक-इतिहास


पंचतत्व के पिछले कई स्तंभों में मैंने नदियों की जिंदगी पर उठते सवालों पर बात की थी. आदिगंगा, रामगंगा, मांडवी… इन सभी नदियों में प्रदूषण और नदियों से सारा पानी खींच लेने की हमारी प्रवृत्ति ने देश भऱ की नदियों के अस्तित्व पर गंभीर प्रश्न खड़े कर दिए हैं.

इसी तरह नर्मदा नदी की शोणभद्र और जुहिला से जुड़ी कहानी पर एक सामाजिक प्रश्न अभिषेक श्रीवास्तव ने खड़ा किया और जुहिला और शोण के प्रेम पर जातिगत विमर्श की ओर ध्यान दिलाया.

फिर एक सवाल कौन बनेगा करोड़पति में दिखा कि दक्षिण की गंगा किस नदी को कहते हैं? जाहिर है इसका उत्तर हम में से कई लोगों को मालूम होगा. पर इस सवाल के बरअक्स कई और सवाल खड़े होते हैं कि अगर गोदावरी दक्षिण की गंगा है तो पूर्व या पश्चिम की गंगाएं भी होनी चाहिए? या फिर कितनी नदियां हैं जिनके नाम गंगा से मिलते-जुलते हैं?

मैंने इस बारे में कुछ प्रामाणिक लेखन करने वाले विशषज्ञों और जानकारों का लिखा हुआ पढ़ा. तब मुझे लगा कि हमें प्रदूषण की बात तो करनी ही चाहिए, पर कुछ ऐसी दिलचस्प बातें भी आपके साथ बांटनी चाहिए जो कि नदियों की संस्कृति, उनके किनारे पली-बढ़ी सभ्यता और हमारी विरासत और इतिहास की झलक लेकर आए और उससे जुड़े आख्यानों को समेट सके.
अब इन्हीं सामग्रियों से मुझे पता चला कि देश की कई नदियां ऐसी हैं या कम से कम उनके नाम ऐसे हैं कि एकाधिक सूबे में उनकी मौजूदगी है.

मसलन, परिणीता दांडेकर लिखती हैं कि हम सभी धौलीगंगा नाम की एक ही नदी का अस्तित्व जानते हैं, पर सचाई यह है कि उत्तराखंड में ही दो धौलीगंगाएं हैं. पहली, जो महाकाली बेसिन में बहती है और दूसरी जो ऊपरी गंगा बेसिन में. दांडेकर लिखती हैं कि धौलीगंगा ही क्यों, काली, कोसी और रामगंगा की भी डुप्लिकेट नदियों के अस्तित्व हैं.

अगर हम नदियों के नामकरण के इतिहास में जाएं तो भाषा के संस्कारों के साथ इसमें आपको लुप्त और विस्मृत सभ्यताओं, इस इलाके के इतिहास और भूगोल के बारे में भी नई और अलहदा जानकारियां मिलेंगी, पर इन नदियों के बारे में खोजबीन करना उतना आसान भी नहीं है. इस पोस्ट में शायद मैं एकाध नदियों के नामों के बारे में कुछ जानकारियां साझा कर पाऊं.

छठी कक्षा के इतिहास की किताब में ही हमें यह पढ़ा दिया जाता है कि दुनिया की महान सभ्यताएं नदी घाटियों में विकसित हुई हैं. अपने हिंदुस्तान या भारत या इंडिया का नामकरण भी तो नदी के नाम पर ही हुआ है. इंडस को ही लें, यह पुराने ईरानी शब्द हिंदू से निकला है क्योंकि आर्य लोग वहां बहने वाली नदी को सिंधु (यानी सागर) कहते थे. यह शब्द संस्कृत का है और स का उच्चारण न कर पाने वाले शकद्वीप (ईरान) के लोगों ने इस नदी के परली तरफ रहने वालों को हिंदू कहना शुरू कर दिया. (इस प्रस्थापना पर अतीत में बहुत विवाद हुए हैं और अब तक कायम हैं: संपादक)

ऋग्वेद के नदीस्तुति सूक्त में सिंधु नदी का लिंग निर्धारण तो नहीं है, लेकिन बाकी की नदियां स्त्रीलिंग ही हैं. वैसे, फोन पर अभिषेक ने बताया कि भारत की कम से कम पांच नदियां मूलतः नद या पुल्लिंग रूप में हैं. इनमें ब्रह्मपुत्र और सोन के बारे में तो आपको पता ही होगा. दांडेकर लिखती हैं, पश्तो भाषा में सिंधु, अबासिन या पितृ नदी है जिसे लद्दाखी भाषा में सेंगे छू या शेर नदी भी कहते हैं. गजब यह कि तिब्बत में भी इस नदी को सेंगे जांग्बो ही कहते हैं. इसका मतलब भी शेर नदी ही होता है और दोनों ही शब्द पुल्लिंग हैं.

नदियों का लिंग निर्धारण का भी अजीब चमत्कार है. भारत की अधिकांश नदियां (आदिवासी नामों वाली नदियां भी) अधिकतर स्त्रीलिंग ही हैं. साथ ही, भारतीय संस्कृति में कुछ नदियों को पुल्लिंग भी माना गया है. इसकी बड़ी मिसाल तो, जैसा मैंने ऊपर बताया ही है, ब्रह्मपुत्र है. दांडेकर, धीमान दासगुप्ता के हवाले से लिखती हैं कि ब्रह्मपुत्र की मूल धारा यारलांग जांग्बो भी पुल्लिंग है. इसी तरह इसकी प्रमुख सहायक नदी लोहित भी पुल्लिंग है.

पश्चिम बंगाल में बहने वाली अधिकतर नदियां, मयूराक्षी को छोड़ दें तो पुरुष नाम वाली ही हैं. मसलन, दामोदर, रूपनारायण, बराकर, बराकेश्वर, अजय, पगला, जयपांडा, गदाधारी, भैरव और नवपात्र.

सवाल है कि इन नदियों के नाम अधिकतर पुरुषों के नाम पर ही क्यों रखे गए?

दांडेकर, दासगुप्ता के हवाले से लिखती हैं कि इन नदियों का स्वरूप अमूमन विध्वंसात्मक ही रहा है इसलिए उनको पुल्लिंग नाम दिए गए होंगे.

चलिए थोड़ा देश के उत्तरी इलाके की तरफ चलते हैं और सतलुज नदी की मिसाल लेते हैं. इसका वैदिक नाम शतद्रु है. शत मतलब सौ, द्रु मतलब रास्ते यानी सैकड़ों रास्तों से बहने वाली नदी. एक सेमिनार में कभी साहित्यकार काका साहेब कालेलकर ने इन नदियों को मुक्तवेणी या युक्तवेणी (बालों की चोटी से संदर्भ) कहा था. बालों की चर्चा चली है तो महाराष्ट्र के पश्चिमी घाट में बहने वाली नदी हिरण्यकेशी का नाम याद आता है. हिरण्य मतलब सोना होता है. समझिए कि सूरज की किरणों में इस नदी का पानी कैसी सुनहरी आभा से दमकता होगा.

आदिवासी परंपराओं में भी अमूमन नदियों के नाम पुल्लिंग ही मिलते हैं. सिक्किम में शादियों में रंगीत (पुरुष) नदी और रागेन्यू (स्त्री, प्रचलित नाम तीस्ता) नदियों के प्रेम के गीत गाए जाते हैं. कहानी है कि ये दो प्रेमी नदियां माउंट खानचेंगद्जोंगा (कंचनजंघा) का आशीर्वाद लेने पहाड़ों से नीचे उतरी थीं. रंगीत को रास्ता दिखाने के लिए एक चिड़िया आगे-आगे उड़ रही थी और जबकि रांगन्यू को रास्ता दिखा रहा था एक सांप. रांगन्यू ने सांप का आड़ा-तिरछा सर्पीला रास्ता पकड़ा और मैदानों में पहले पहुंचकर रंगीत (तीस्ता) की राह देखने लगी.

भूतिया चिड़िया ने रंगीत को रास्ता भटका दिया जो ऊपर-नीचे रास्ते में भटक गया. उसे आऩे में देर हो गई. सिक्किमी लोककथा के मुताबिक, पुरुष होने के नाते रंगीत ने रांगन्यू को पहले पहुंचकर इंतजार करते देखा तो उसे बहुत बुरा लगा. इसके बाद, रांगन्यू ने रंगीत को बहुत मनाया-दुलराया कि देर से आऩा उसकी गलती नहीं थी. तब जाकर रंगीत माना.

ऐसी ही एक कहानी चंद्र और भागा की भी है, जो मिलकर चंद्रभागा नदी बनाते हैं. यही चंद्रभागा एक तरफ चिनाब भी कही जाती है, पर यह कहानी हिमाचल प्रदेश के लाहौल स्पीति घाटी की है. लोककथा के मुताबिक, चांद की बेटी चंद्रा, जिसका उद्गम चंद्रताल से है, भागा नामक नद से प्रेम करती थी. भागा भगवान सूर्य का बेटा था. वह सूरजताल से निकलता है. इन दोनों ने फैसला किया कि वे बारालाछला दर्रे तक जाएंगे और विपरीत दिशाओं से होकर वापस आएंगे, फिर टंडी में मिलकर विवाह कर लेंगे. चंद्रा बल खाती हुई टंडी तक पहुंच गई जबकि भागा का रास्ता उतना आसान नहीं था. भागा को नहीं पाकर चंद्रा चिंतित हो गई और वह उसे खोजने के लिए वापस फिर केलांग तक चली गई. चंद्रा ने देखा, भागा एक गहरी खाई के बीच से अपनी राह बनाने की कोशिशों में जुटा था. आखिरकार वे टंडी में मिले और उससे आगे नदी का नाम चंद्रभागा पड़ गया.

दिलचस्प यह है कि पश्चिम बंगाल में भी बीरभूम जिले में एक चंद्रभागा बहती है. दिलचस्प यह है कि एक अन्य चंद्रभागा गुजरात में अहमदाबाद के पास बहती है. पुरी के पास कोणार्क मंदिर के पास से बहने वाली नदी का नाम भी चंद्रभागा है. विट्ठल मंदिर के पास पंढरपुर में बहने वाली नदी तो चंद्रभागा है ही. वैसे एक चंद्रभागा बिहार में भी है, जिसे चानन नदी कहा जाता है.

नदियों के नाम के किस्से लोककथाओँ और लोक विश्वासों में पैबस्त हैं. इन्हें पढ़ना बहुत दिलचस्प है और मेरी कोशिश रहेगी कि अगली दफा पंचतत्व में कुछ और दिलचस्प किस्से सुना पाऊं.


(कवर फोटो: सिंधु और जंस्कर का संगम, लेह; अभिषेक श्रीवास्तव)


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