पंचतत्व: ये खलनायक हरियाली, जो हमारे जंगलों को चट कर रही है…

आखिर एक झाड़ी से डरने की जरूरत क्या है. जरूरत इसलिए है क्योंकि तेजी से पांव पसार रहे लैंटाना के चलते पारिस्थितिकी तंत्र के लिए अनुकूल घास खत्म होती जा रही है. इसका सीधा असर वन्यजीवों के भोजन चक्र और प्रवास पर पड़ रहा है.

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आर्टिकल 19: प्रधानमंत्री के डेढ़ घंटे तक चले भाषण को समझने के 10 सूत्र

इतने लंबे भाषण के जरिये वो साबित क्या करना चाहते थे? मोटे तौर पर दस सूत्रों में इसे समझना आसान होगा। इसको ठीक से समझना पड़ेगा क्योंकि उन्होंने बहुत सारी बातें सुलझाने के बजाय उलझा दी हैं।

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बात बोलेगी: जाते-जाते वो मुझे अच्छी निशानी दे गया…

एक साँचे में ढले, एक जैसा आइक्यू, एक जैसे ब्यौपारी, दोनों की देशों की जनता का एक जैसे चौंकना, एक जैसे चुनाव अभियान, एक जैसी शोहरत,एक जैसी नफ़रत, एक जैसे अनंत झूठ- क्या ही ज़ुदा करता है दोनों को?

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राग दरबारी: किसान आंदोलन के बीच ‘अचानक’ हुई एक यात्रा का व्याकरण

प्रधानमंत्री मोदी की यह यात्रा किसी भी रूप में सिर्फ गुरु तेग बहादुर को श्रद्धांजलि अर्पित करने के लिए नहीं थी, बल्कि यह सामान्य हिन्दुओं के मन में आंदोलन कर रहे पंजाब के किसानों के प्रति घृणा फैलाने के लिए थी।

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तन मन जन: स्वास्थ्य मौलिक अधिकार है, सरकार को बार-बार यह याद क्यों दिलाना पड़ता है?

सर्वोच्च न्यायालय ने कोरोना काल में इलाज के नाम पर लूट और मौत बांटते निजी अस्पतालों की मनमानी तथा राज्य सरकारों की लापरवाही आदि के मद्देनजर फिर से अनुच्छेद 21 का हवाला देकर स्पष्ट किया कि स्वास्थ्य का अधिकार नागरिकों का मौलिक अधिकार और सरकारों की यह संवैधानिक जिम्मेवारी है।

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पंचतत्व: कानून एक तरफ, लेकिन हरित क्रांति का बोया धान पंजाब-हरियाणा को बहुत महंगा पड़ा है!

भूजल स्तर में गिरावट की मौजूदा दर जारी रही तो पूरे पंजाब का पूरा उप-सतही जल दो दशकों में खाली हो जाएगा. सचाई यह है हमने कुओं और तालाबों की बजाय ट्यूबवेल पर भरोसा करना शुरू कर दिया.

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दक्षिणावर्त: प्रधान सेवक के हाथ से क्या चीज़ें फिसल रही हैं?

भाजपा को सत्ता से 25 वर्षों तक दूर रखना है, तो 5 वर्ष के लिए सत्ता में ला दो। यह यूं ही नहीं कहा जाता।

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आर्टिकल 19: जनता पहले अपना मीडिया बदलेगी, फिर बारी आएगी सियासत की! क्रोनोलॉजी समझिए…

तीन कानूनों की वापसी के लिए शुरू हुआ आंदोलन इनकी वापसी पर खत्म होने वाला नहीं है। ये नई राजनीति की सिर्फ शुरुआत है। इस पर किसी को भ्रम नहीं होना चाहिए।

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बात बोलेगी: अब मामला उघाड़ने और मनवाने से नाथ घालने तक आ चुका है!

रिलायंस जियो के बहिष्कार के बाद शायद निकट इतिहास में यह पहला मौका है जब अंबानीज़ इस तरह बौखलाए हुए हैं, हालांकि यह बौखलाहट अच्छी है। सर्फ एक्सल कहता है कि दाग बुरे नहीं हैं। कोरोना की तरह किसान आंदोलन को इस ‘उजागर करो अभियान’ का भरपूर श्रेय दिया जाना चाहिए।

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दक्षिणावर्त: लोकतंत्र अगर “टू मच” है तो उसका अर्थ कहां है?

सहस्राब्दि‍ के दूसरे दशक के शुरुआती वर्षों में मुद्दा आधारित विमर्श और आंदोलन को मध्‍यवर्ग का उत्‍सव बनाने का काम अन्ना हजारे-केजरीवाल की युति ने किया था, जब दिल्‍ली का खाया पीया अघाया सर्विस क्‍लास भ्रष्‍टाचार का वीकेंड विरोध आइसक्रीम खाते हुए करता था।

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