प्रेस की स्वतंत्रता के सवाल से ज्यादा बड़ा है पत्रकारिता के वजूद का संकट!

प्रेस की स्वतंत्रता पर गहराते संकट की चर्चा तो हो रही है किंतु प्रेस के अस्तित्व पर जो संकट है उसे हम अनदेखा कर रहे हैं। अपनी बात लोगों तक पहुंचाने के मुद्रण आधारित या इलेक्ट्रॉनिक साधनों का उपयोग करने वाले हर व्यक्ति या संस्थान को प्रेस की आदर्श परिभाषा में समाहित करना घोर अनुचित है विशेषकर तब जब वह पत्रकारिता की ओट में अपने व्यावसायिक, आर्थिक, राजनीतिक, धार्मिक और साम्प्रदायिक एजेंडे को आगे बढ़ा रहा हो।

Read More

सिख इतिहास की जटिलताओं को नजरअंदाज करता प्रधानमंत्री का उद्बोधन

प्रतीकवाद की राजनीति में निपुण प्रधानमंत्री किसान आंदोलन के बाद पंजाब में अपनी और भाजपा की अलोकप्रियता से अवश्य चिंतित होंगे और एक शासक के रूप में अपने अनिवार्य कर्त्तव्यों को सिख समुदाय के प्रति अनुपम सौगातों के रूप में प्रस्तुत करना उनकी विवशता रही होगी।

Read More

प्रशांत किशोर के बॉक्स ऑफिस फॉर्मूले बनाम लोकतंत्र में स्वस्थ-सशक्त विपक्ष का प्रश्न

प्रशांत किशोर का रणनीतिक जादू मार्केटिंग और इवेंट मैनेजमेंट के उन घातक प्रयोगों में छिपा है जो ग्राहक को किसी अनावश्यक, कमतर और औसत प्रोडक्ट को बेहतर मानकर चुनने के लिए मानसिक रूप से तैयार करते हैं। हमने नरेन्द्र मोदी को गुजरात के विवादित मुख्यमंत्री से सर्वशक्तिमान, सर्वगुणसम्पन्न, महाबली मोदी में कायांतरित होते देखा है।

Read More

अबकी तलवार लहराती और आग लगाती भीड़ को देखकर मेरे राम निश्चित ही आहत हुए होंगे!

लगभग हर प्रदेश में- और आश्चर्यजनक रूप से कांग्रेस तथा अन्य विपक्षी दलों द्वारा शासित प्रदेशों में भी- इन शोभायात्राओं का स्वरूप एक जैसा था- उकसाने, भड़काने और डराने वाला। इन शोभायात्राओं को मुस्लिम-बहुल इलाकों तथा मुस्लिम धर्मस्थलों के निकट से गुजरने की इजाजत निरपवाद रूप से लगभग हर जिले में दी गई।

Read More

आर्थिक असमानता को बढ़ा रहा है भूजल का अंधाधुंध दोहन, भयावह है आने वाला समय!

यूनिसेफ द्वारा 18 मार्च 2021 को जारी रिपोर्ट के अनुसार भारत में 9.14 करोड़ बच्चे गंभीर जल संकट का सामना कर रहे हैं। बच्चों के जल संकट के लिए अतिसंवेदनशील माने जाने वाले 37 देशों में से एक भारत भी है। यूनिसेफ की रिपोर्ट कहती है कि वर्ष 2050 तक भारत में वर्तमान में मौजूद जल का 40 प्रतिशत समाप्त हो चुका होगा।

Read More

उपभोक्ता अधिकार दिवस: डिजिटल लेनदेन में पारदर्शिता की राह अभी लंबी है

फाइनेंस का डिजिटलीकरण बड़ी सरलता से यह स्थिति उत्पन्न कर सकता है कि आम आदमी का उसकी अपनी जमा पूंजी पर नियंत्रण समाप्त हो जाए। कैशलेस होना चॉइसलेस होना भी है, जमापूंजी के डिजिटल स्वरूप पर आम आदमी की तुलना में सरकार और बाजार का अधिक नियंत्रण होगा।

Read More

महिला दिवस: नवउदारवादी व्यवस्था में स्त्री की आर्थिक मुक्ति का उलझा सवाल

एक भ्रम यह भी फैलाया जाता है कि नवउदारवादी अर्थव्यवस्था महिलाओं की आर्थिक मुक्ति का कारण बनेगी जबकि सच्चाई यह है कि इसके कारण संगठित क्षेत्र सिकुड़ा है और असंगठित क्षेत्र की शोषणमूलक प्रवृत्तियां खुलकर अपनाई जा रही हैं। ठेका पद्धति और संविदा नियुक्ति की परिपाटी बढ़ी है और महिलाएं इनका आसान शिकार बनी हैं क्योंकि निरीह, असंगठित महिलाओं से कम वेतन पर मनमाना काम लिया जा सकता है और जब चाहे इन्हें नौकरी से हटाया जा सकता है।

Read More

प्रधानमंत्रियों के चुनावी भाषण और चुनाव प्रचार की गिरती गरिमा

आकाशवाणी के आर्काइव में तलाश करते हुए जो सबसे पहली ऑडियो रिकॉर्डिंग हाथ लगी वह 1951 के आम चुनावों से पहले तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू द्वारा राष्ट्र के नाम संदेश के रूप में थी। सुनकर ऐसा लगा कि लोकतंत्र को जीने वाला कोई मनीषी और जननेता देश के नागरिकों को पहले आम चुनावों से पूर्व प्रशिक्षण दे रहा हो।

Read More

बिना नतीजे आए ही बहुत कुछ कह गया है उत्तर प्रदेश का चुनाव

भाजपा की उग्र हिंदुत्ववादी सोच ने मुसलमानों को संगठित होने के लिए मजबूर किया है किंतु इसका प्रस्तुतिकरण इस प्रकार से किया जा रहा है कि संगठित मुसलमान भारी मतदान द्वारा सत्ता पर काबिज होना चाहते हैं और हिन्दू यदि उनके षड्यंत्र को न समझे तो बहुसंख्यक होने के बावजूद मुसलमानों की अधीनता उन्हें स्वीकार करनी होगी।

Read More

क्या यह हमारे देश का ही शिक्षा बजट है?

वित्त वर्ष 2020-21 के मूल बजटीय आवंटन में शिक्षा मंत्रालय को 99,311.52 करोड़ रुपये आवंटित किए गए थे। वित्त वर्ष 2021-22 में शिक्षा मंत्रालय का मूल बजटीय आवंटन घटाकर 93,224.31 करोड़ रुपये कर दिया गया था। इस वर्ष शिक्षा के लिए मूल बजटीय आवंटन 1 लाख 4 हजार 277 करोड़ रुपये है। यदि 2020-21 से तुलना करें तो यह वृद्धि अधिक नहीं है।

Read More