जनादेश: 2024 की भाजपा-विरोधी पटकथा और ‘निजी महत्त्वाकांक्षाओं’ का सियासी रोड़ा

कहा जा रहा है कि ममता बनर्जी आने वाले दिनों में स्टालिन, चंद्रबाबू नायडू, तेजस्वी यादव, तेलंगाना के टीआरएस, नवीन पटनायक और उत्तर प्रदेश के अखिलेश यादव के साथ मिलकर एक मोर्चा बना सकती हैं ताकि भारतीय जनता पार्टी को लोकसभा चुनाव में टक्कर दी जा सके। अभी कई तरह की पटकथा लिखी जानी बाकी है क्योंकि मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस लगातार कमजोर होती जा रही है और इस चुनाव परिणाम ने उसे और कमजोर कर दिया है। सभी दलों के एक साथ आने में सबसे बड़ा रोड़ा उनकी अपनी “निजी महत्वाकांक्षा” है।

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महामारी में चुनाव आयोग की सवालिया भूमिका और टी. एन. सेशन की याद

मान लेते हैं कि स्वास्थ्य व्यवस्था में सुधार एक लंबी प्रक्रिया हो सकती है, लेकिन चुनाव प्रक्रिया में सुधार के लिए तो महज चुनाव आयोग ही काफी है. और जब देश में सभी परीक्षाएं स्थगित हैं, योजनाएं स्थगित हैं, तो फिर चुनाव स्थगित करने में किसी का क्या बिगड़ रहा है?

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चुनावों में हस्तक्षेप का निर्णय कर के किसान नेताओं ने कहीं कोई खतरा तो नहीं मोल लिया है?

कहीं किसान नेता अपने आंदोलन को परिणाममूलक बनाने की हड़बड़ी में किसान आंदोलन के अब तक के हासिल (जो किसी भी तरह छोटा या कम नहीं है) को दांव पर लगाने का खतरा तो मोल नहीं ले रहे हैं? क्या किसान नेता संबंधित प्रान्तों के किसानों को उन पर मंडरा रहे आसन्न संकट की बात पर्याप्त शिद्दत और ताकत के साथ बता पाएंगे?

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गृहिणियों को पगार देने का चुनावी वादा और सार्वजनिक दायरे में बराबरी के अवसर का सवाल

चुनावी वादे कितने पूरे होते हैं यह तो हम सभी जानते हैं इसलिए इस पर बात ना करें तो कोई दिक्कत नहीं है, लेकिन इन घोषणाओं तथा समझदारियों से हम स्त्री के मुद्दे पर समझ के बारे में चर्चा जरूर कर सकते हैं।

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