मणिपुर डायरी: हेड हंटर की वापसी और पूर्वोत्तर में औरतों की आजादी का मिथ

दूसरी जनजाति से प्रेमसंबंध और विवाह को हतोत्साहित किया जाता है, लेकिन अगर किसी ने प्रेम किया है और उसे जाहिर करता है तो उसे कतई रोका नहीं जाता है। अत: जनजातीय विवाह खूब होते हैं और कोई जनजाति इन्हें प्रतिबंधित नहीं करती। मैतेइ और कुकियों के बीच भी ऐसे विवाह काफी हुए हैं, लेकिन इतिहास बताता है कि इन आजादियों का उस समय कोई मूल्य नहीं रह जाता, जब इनके बीच आपसी संघर्ष होता है।

Read More

मणिपुर डायरी: परतों के भीतर कितनी परतें होती हैं?

2004 में उनके द्वारा किए गए अतुल्य साहस के बारे में अखबारों में पढ़ा था और उनके लिए मेरे मन में नायिकाओं जैसा सम्मान रहा है। यह मैं क्या देख रहा हूं? समुदाय मनुष्य के विकास में जितना मददगार होता है, उससे अधिक उसके पतन में उसकी भूमिका होती है?

Read More

संक्रमण काल: बिग-टेक के रहमो-करम पर देशों की संप्रभुता और स्वतंत्र पत्रकारिता

एक ओर जहां बड़ी टेक-कंपनियां दुनिया की किसी भी सरकार से अधिक ताकतवर हो गई हैं, जिनका मुकाबला करना किसी संप्रभु राष्ट्र के लिए भी मुश्किल हो गया है। वहीं दूसरी ओर जो कानून बनते हैं, उनके पीछे किसी निहित स्वार्थ वाले समूह की लॉबिंग काम कर रही होती है। लोकतंत्र के जिस चौथे खंभे को मजबूत करने के नाम पर इस तरह के कानून बनाए जाते हैं, उनका मकसद कुछ बड़े मीडिया संस्थानों को लाभ पहुंचाना होता है, चाहे वे कैसी भी पत्रकारिता कर रहे हों।

Read More

संक्रमण काल: डेढ़ दशक पहले निकली एक लघु-पत्रिका में प्रासंगिक तत्वों की तलाश का उद्यम

यह अनायास ही नहीं कहा जा रहा कि मशीनें जिस तेज गति से चिकित्सा विज्ञान में नई-नई खोजें करने में सफल हो रही हैं, उससे संभावना है कि अगर नोबल देने का मौजूदा पैमाना बरकरार रहा तो वर्ष 2036 तक नोबेल पुरस्कार किसी मशीन को देना होगा।

Read More

संक्रमण काल: इस देश में मौत की भी जाति होती है!

इस शोध से सामने आए तथ्यों से भारत में मौजूद भयावह सामाजिक असमानता उजागर होती है तथा हमें सोचने पर मजबूर करती है कि क्या हमारे विकास की दिशा ठीक है। क्या सामाजिक रूप से कमजोर तबकों के कथित कल्याण के लिए राज्य द्वारा उठाए गए कदम पर्याप्त हैं?

Read More

संक्रमण काल: साहित्य का नया रास्ता

वर्चुअल दुनिया से संबंधित इन कविताओं और अक्कड़-बक्कड़ जैसे पॉडकास्टों व साहित्य और तकनीक के सम्मिश्रण के लिए जारी अनेकानेक कोशिशों से गुजरते हुए आशा बनती है कि पुराने मिजाज का हिंदी साहित्य भी देर-सबेर साहित्य के नए रास्तों को स्वीकार करेगा।

Read More

संक्रमण काल: उत्तर-मानववाद की आहट

आज हम उत्तर सत्य और उत्तर मानववाद (Post Truth & Post Humanism) के ज़माने में हैं। समाज में जो हाशिए के लोग हैं, मेहनतक़श लोग हैं, उन्हें ख़त्म कर देने की कोशिशें हो रही हैं। इसलिए आवश्यक है कि हम अपनी रणनीति को नए विचारों और सन्दर्भों में निरंतर मांजते रहें।

Read More

संक्रमण काल: महामारी के दौर में डॉक्टरों की भूमिका, सीमाएं और प्रोटोकॉल के कुछ सवाल

कोविड जानलेवा नहीं है। अधिकांश मामलों में हमारा शरीर उससे लड़ सकता है और परास्त कर सकता है। मानवजनित अफरातफरी, जिसके सुनियोजित होने की पूरी आशंका है, ने उसे जानलेवा बना दिया है।

Read More

संक्रमण काल: बदलती हुई दुनिया और उभरते हुए सामाजिक-सांस्कृतिक परिदृश्य पर जिरह

हिंदी में अपने तरह के इस अनूठे कॉलम में यह बात देखने की रहेगी कि भविष्य की दुनिया किन तकनीकी और आर्थिक प्रक्रियाओं के बीच निर्मित हो रही है और किस प्रकार का एक नया सामाजिक, राजनीतिक (और साहित्यिक-सांस्कृतिक भी) परिदृश्य इस बीच आकार ले रहा है।

Read More