स्वास्थ्य बजट: कोरोना के भयानक दौर को क्या भूल गई सरकार?

अनेक विशेषज्ञों का आकलन है कि स्वास्थ्य सेवाओं के लिए वर्ष 2021-22 का वास्तविक स्वास्थ्य बजट जीडीपी का 0.34 प्रतिशत था जो 2022-23 में 0.06 प्रतिशत की मामूली वृद्धि के बाद 0.40 प्रतिशत हो गया है। विगत वर्ष बजट में स्वास्थ्य की हिस्सेदारी 2.35 प्रतिशत थी जो अब घटकर 2.26 प्रतिशत रह गई है।

Read More

जब HIV पॉज़िटिव लोग सामान्य ज़िंदगी जी सकते हैं तो 2020 में 6.8 लाख लोग एड्स से क्यों मरे?

वैज्ञानिक शोध की देन है कि अनेक एचआइवी संक्रमण से बचाव के तरीक़े भी हमारे पास हैं फिर 2020 में 15 लाख लोग कैसे नए एचआइवी से संक्रमित हो गए? यदि हम एचआइवी नियंत्रण और प्रबंधन में कार्यसाधकता बढ़ाएंगे नहीं तो 2030 तक कैसे दुनिया को एड्स मुक्त करेंगे?

Read More

बीते एक साल में 91 फीसद बढ़ गयी गंभीर रूप से कुपोषित बच्चों की तादाद, बिहार और गुजरात अव्वल

कुपोषण पर ताजा सरकारी आंकड़े दिखा रहे हैं कि भारत में कुपोषण का संकट और गहरा गया है। इन आंकड़ों के मुताबिक भारत में इस समय 33 लाख से अधिक बच्चे कुपोषित हैं। इनमें से आधे से ज्यादा यानी कि 17.7 लाख बच्चे गंभीर रूप से कुपोषित हैं। गंभीर रूप से कुपोषित बच्चे सबसे ज्यादा महाराष्ट्र, बिहार और गुजरात में हैं।

Read More

कुपोषण से भुखमरी की ओर बढ़ता ‘न्यू इंडिया’!

वर्ल्ड इकॉनॉमिक फोरम ने जून 2021 में कहा है कि भारत में कोविड-19 के कारण भूख और गरीबी का संकट भयावह रूप ले रहा है। वर्ल्ड इकॉनॉमिक फोरम का सुझाव है कि तात्कालिक खाद्य आवश्यकता की पूर्ति और जीवनयापन के अवसर उपलब्ध कराना दोनों ही समान रूप से महत्वपूर्ण हैं।

Read More

तन मन जन: भारत में जनस्वास्थ्य और बच्चों की मौत

इसमें कोई शक नहीं कि विगत तीन दशकों में शिशु और मातृ मृत्यु दर में अपेक्षाकृत कमी आयी है, लेकिन स्वास्थ्य सेवाओं की गुणवत्ता अब भी उतनी नहीं सुधर पायी है जितना दावा किया गया है। यह बात ध्यान देने की है कि नवजात शिशुओं के जीवन का पहला एक महीना माँ और बच्चे दोनों के लिए महत्वपूर्ण होता है। इसलिए देश की सेहत के लिए यह जरूरी है कि मातृ व शिशु स्वास्थ्य पर ईमानदारी से जिम्मेवारी तय कर ध्यान दिया जाए।

Read More

तन मन जन: कोरोनाकाल में आम लोगों की जान बचाती होमियोपैथी एवं आयुष पद्धतियां

भारत जैसे गरीब व विकासशील देश में सस्ती, सुलभ एवं सरल वैज्ञानिक चिकित्सा पद्धति की मान्यता को लेकर सरकार व अधिकारियों आदि के नकारात्मक रवैये के पीछे मैं उनके एलोपैथिक माइन्डसेट को जिम्मेवार मानता हूं। मेरा अनुभव तो ऐसा भी है कि सरकार के स्वास्थ्य मंत्रालय में एक बड़े अधिकारी जिनकी पत्नी और बेटा स्वयं होमियोपैथ हैं, वे भी होमियोपैथी को आगे बढ़ता नहीं देखना चाहते। कारण होमियोपैथी के प्रति एलोपैथी का पूर्वाग्रह ही लगता है।

Read More

तन मन जन: निजीकरण की विफलता के बाद क्या हम क्यूबा के स्वास्थ्य मॉडल से सबक लेंगे?

क्यूबा के इस बहुचर्चित स्वास्थ्य मॉडल के बहाने मैं देश के नागरिकों से अपील करना चाहता हूं कि वे संविधान में वर्णित अपने मौलिक नागरिक अधिकारों के तहत सरकार को मुफ्त गुणवत्ता वाली स्वास्थ्य सुविधाएं प्रदान करने के लिए बाध्य करें।

Read More

तन मन जन: कोरोना ने प्राइवेट बनाम सरकारी व्यवस्था का अंतर तो समझा दिया है, पर आगे?

स्वास्थ्य और उपचार का सवाल जीवन से जुड़ा है और यह हर नागरिक का मौलिक अधिकार है। स्वास्थ्य सेवाओं को निजीकरण के जाल से बाहर निकाले बगैर आप स्वस्थ मानवीय जीवन की कल्पना भी नहीं कर सकते। अभी भी वक्त है। जागिए और सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवाओं की गारन्टी के लिए आवाज बुलंद कीजिए।

Read More

तन मन जन: पब्लिक हेल्थ और जनसंख्या नियंत्रण की विभाजक राजनीति

चुनाव से पहले भारत में जहां भी आबादी नियंत्रण की बात उठती है तो साफ तौर पर समझा जा सकता है कि उनकी चिंता के पीछे जनसंख्या से ज्यादा धर्म, नस्लवाद, जेनोफोबिया या कट्टरता है। उनकी नजर में केवल कोई एक सम्प्रदाय है जिसकी आबादी को नियंत्रित करने की जरूरत है।

Read More

जुलाई तक कैसे पूरी हो पाएगी 25 करोड़ आबादी के टीकाकरण की योजना

कोरोना की दूसरी लहर में जहां सबसे बुरे हालात गांव में बने वही हालात फिर से टीकाकरण के दौरान बन रहे हैं। इसके पीछे सरकार की वो प्रक्रिया है, जिस पर चलते हुए टीकाकरण केन्द्र तक पहुंचा जा सकता है। यह प्रक्रिया ही इतनी जटिल है कि आम आदमी टीका लगवाने के बजाय घर में दुबके बैठे रहने को ही एकमात्र रास्ता समझ रहा है।

Read More