तन मन जन: कोरोनाकाल में आम लोगों की जान बचाती होमियोपैथी एवं आयुष पद्धतियां


भारत में जनस्वास्थ्य की समस्या पहले से भी ज्यादा जटिल और बड़ी हो गयी है। जो रोग या महामारी अब से दो-तीन दशक पहले तक इतने ज्यादा घातक और पेचीदा नहीं थे वे अब बेहद खतरनाक रूप में सामने आ रहे हैं। वैश्वीकरण और निजीकरण के दौर में व्यक्तिगत स्वास्थ्य पर ज्यादा ध्यान दिया गया, मसलन अनेक व्यक्तिगत रोग सेहत के बाजार के बेहतरीन प्रोडक्ट सिद्ध हुए। हृदय रोग, मस्तिष्क रोग, किडनी रोग, लीवर व पेट के रोग, कैंसर, मधुमेह, प्लास्टिक सर्जरी, मोटापा घटाने की सर्जरी, कृत्रिम बच्चा पैदा करने की तकनीक आदि चिकित्सा के सबसे ज्यादा कमाऊ विभाग सिद्ध हुए। महामारी या बीमारी में अचानक बिगड़ी तबियत के इलाज के नाम पर अस्पताल पहुंचे लोग कंगाल होने लगे। कोरोनाकाल में लगभग सभी लोगों ने महसूस किया कि वैश्विक महामारी के बावजूद लोगों को अपनी जेब से लाखों रुपये निजी तौर पर खर्च करने पड़े। कहीं-कहीं तो एक व्यक्ति के इलाज का खर्च 15-20 लाख रुपये तक चला गया, फिर भी जान नहीं बची। सरकारी अस्पताल पहले से ही मुर्दाघर में तब्दील हैं। निजी क्षेत्र के पांचसितारा अस्पताल भी मौत की महंगी दुकान ही सिद्ध हुए।

कोरोना संक्रमण ने न केवल सामान्य व गम्भीर रोगों के नियमित उपचार को बाधित किया बल्कि पूरे चिकित्सा तंत्र को ही नाकारा सिद्ध कर दिया। ऐसे में अपने पारम्परिक हुनर के साथ होमियोपैथ एवं आयुष पद्धति के चिकित्सकों ने लोगों की जान बचाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभायी, मगर उन्हें न तो सरकार की हौसला अफजाई मिली और न ही समुचित इज्जत और शोहरत। कोरोनाकाल में जब एलोपैथी की सीमाएं लोग समझ रहे थे, तब अनेक लोग अपनी चिकित्सा के लिए अपने पारिवारिक होमियोपैथिक या आयुष चिकित्सक के परामर्श के अनुसार उपचार ले रहे थे। कोरोना संक्रमण के कई गम्भीर मामलों में भी देश के कई अनुभवी एवं ज्ञानवान वरिष्ठ होमियोपैथिक चिकित्सक लोगों का उपचार कर उनके जीवन की रक्षा कर रहे थे। कोरोना संक्रमण के गम्भीर कहे जो वाले रोगियों का भी होम आइसोलेशन में सफल उपचार हो रहा था और होमियोपैथ तथा आयुर्वेद या अन्य प्रामाणिक देशी चिकित्सा पद्धतियां अच्छा लाभ दे रही थीं। मैंने स्वयं अपने क्लिनिक से लगभग 700 कोरोना संक्रमित रोगियों का उपचार किया जिसमें लगभग 150 तो बेहद गम्भीर स्थिति में थे।

कोरोना संक्रमित लोगों को होम आइसोलेशन की सुविधा मिलते ही होमियोपैथिक दवाओं से कोरोना पॉजिटिव रोगियों का इलाज ज्यादा सफल सिद्ध हुआ। मेरे अनुभव में कोरोना संक्रमण की गम्भीर स्थितियां भी होमियोपैथिक दवा के उपचार से काफी हद तक सुधरीं जिसे भुक्तभोगियों ने अच्छी तरह से महसूस किया। मेरे निजी अनुभव में कोरोना के गम्भीर रोगियों की आकस्मिक स्थितियां भी होमियोपैथिक दवाओं के असर से सुधरीं, जिसका लाभ दिल्ली व अन्य शहरों के अतिविशिष्ट लोगों ने भी लिया। पटना, लखनऊ, मुम्बई, इन्दौर, नागपुर जैसे शहरों के कई महत्त्वपूर्ण व्यक्तियों ने कोरोना संक्रमण की गम्भीर स्थितियों में होमियोपैथिक उपचार के लिए मुझसे सम्पर्क किया और दवाएं लीं। 95 फीसद से भी ज्यादा लोगों को लाभ मिला। होमियोपैथी और आयुष प्रणाली के लिए इससे ज्यादा गर्व की बात और क्या हो सकती है? यहां मैं यह भी रेखांकित करना चाहूंगा कि इस दौरान कई बड़े देशों ने होमियोपैथी की मदद से अपने नागरिकों की सेहत की रक्षा की।

तन मन जन: कोरोना ने प्राइवेट बनाम सरकारी व्यवस्था का अंतर तो समझा दिया है, पर आगे?

वर्ष 2020 के मार्च में जब देश में कोरोना वायरस संक्रमण के रोगी बढ़ने लगे तब सरकार ने सभी चिकित्सा पद्धतियों के विशेषज्ञों का आह्वान किया कि वे कोरोना संक्रमण से बचाव के लिए अपनी-अपनी पद्धति के उपचार के साथ आगे आएं। होमियोपैथी की ओर से केन्द्रीय होमियोपैथिक अनुसंधान परिषद ने एक होमियोपैथिक दवा आर्सेनिकम अल्बम 30 को कोरोना से बचाव की दवा के रूप में घोषित किया। यह दवा पूरे देश में होमियोपैथिक चिकित्सा प्रेमियों ने आजमायीं और काफी लोगों को लाभ मिला, लेकिन होमियोपैथी की इस दवा को लेकर कई राज्यों में विभिन्न संस्थाओं ने जाहिर किया कि यह दवा कोरोना संक्रमण से बचाने में सक्षम नहीं है। इसी दौरान मुम्बई के जाने-माने होमियोपैथिक विशेषज्ञ डॉ. राजन शंकरन ने अपने शोध और अध्ययन के आधार पर कोरोना वायरस संक्रमण से बचाव के लिए होमियोपैथिक दवा कैम्फोरा 1000 का सुझाव दिया। डॉ. शंकरन का यह सुझाव एक औपचारिक बहुराष्ट्रीय शोध पर आधारित था। उन्होंने मुझसे अपेक्षा की कि मैं दिल्ली में होमियापैथिक दवा कैम्फोरा 1000 की प्रभावशीलता का अध्ययन करूं। मैंने दिल्ली के स्वास्थ्य मंत्री श्री सत्येन्द्र जैन जी की मदद से कोरोना अस्पताल में जाकर कोरोना संक्रमण से ग्रस्त मरीजों पर उनकी सहमति से होमियोपैथी की दवा का प्रयोग कर देखा कि उन्हें कोरोना संक्रमण की जटिलता से जल्द मुक्ति मिल रही है। मैंने संक्रमित मरीजों के आंकड़े इकट्ठे किये और पाया कि अन्य होमियोपैथिक दवाओं की तुलना में कोरोना संक्रमित व्यक्ति में कैम्फोरा 1000 नामक होमियोपैथिक दवा बेहतर लाभ दे रही है। इस अनुभव ने मुझे और गम्भीर अध्ययन के लिए प्रेरित किया।

मैंने दिल्ली के स्वास्थ्य मंत्री श्री सत्येन्द्र जैन से होमियोपैथिक दवा के कोरोना संक्रमण से बचाव एवं उपचार के लिए प्रयोग करने की विधिवत अनुमति मांगी। हमारी मांग पर दिल्ली सरकार ने पांच विशेषज्ञ होमियोपैथ की एक वैज्ञानिक सलाहकार समिति बना दी और एक महीने में रिपोर्ट देने को कहा। दिल्ली सरकार के आयुष विभाग के निदेशक डॉ. राजकुमार मनचन्दा की पहल पर हम लोगों ने यह अध्ययन किया और सरकार को रिपोर्ट सौंप दी कि होमियोपैथिक दवा कैम्फोरा 1000 तथा कोरोना संक्रमण से बचाव व इसके उपचार में जिन दवाओं का दावा किया जा रहा है, उसकी क्लिनिकल जांच करा ली जाए। वैज्ञानिक सलाहकार समिति की सिफारिशों के आधार पर दिल्ली सरकार ने कोरोना संक्रमण से बचाव में होमियोपैथिक दवा के प्रयोग के क्लिनिकल जांच के आदेश दिये और सभी वैज्ञानिक प्रक्रिया पूरी कर क्लिनिकल ट्रायल शुरू कर दिये गए। मैं चूंकि वैज्ञानिक सलाहकार समिति और इस क्लिनिकल क्लस्टर ट्रायल प्रक्रिया से स्वयं जुड़ा हूं, इसलिए भरोसे के साथ कह सकता हूं कि इस अध्ययन ने मेरे मन में होमियोपैथिक दवाओं की प्रभावशीलता को लेकर और ज्यादा विश्वास बढ़ा दिया। लगभग आठ महीने चले इस शोध अध्ययन ने कोरोना वायरस संक्रमण जैसी गम्भीर जानलेवा महामारी में भी होमियोपैथिक दवाओं की प्रभावशीलता को और प्रामाणिकता से रेखांकित किया। यह मेरे लिए तथा समस्त होमियोपैथिक जगत के लिए एक शानदार और रोमांचकारी अनुभव था।

इस दौरान मैंने महसूस किया कि कोरोना वायरस संक्रमण से बचाव और इसके उपचार की स्पष्टता के अभाव में अनेक अनावश्यक एलोपैथिक दवाओं के दुरुपयोग और मरीजों से उपचार के नाम पर निजी अस्पतालों द्वारा लाखों रुपये की लूट के इतने मामले सामने थे कि दिल दहल जाता था। कोरोना संक्रमण के उपचार के नाम पर एक एक मरीज से निजी अस्पतालों ने 15-20 लाख रुपये वसूले। सरकारों की नाक के नीचे मजबूर कोरोनाग्रस्त मरीज लुटते-मरते रहे लेकिन उन्हें बचाने वाला कोई नहीं था।

कोरोना संक्रमण की दूसरी लहर मार्च-अप्रैल 2021 में आयी तो देश भर में लाशों से हर इलाका पटा पड़ा था। गंगा किनारे लावारिस हजारों लाशों की तस्वीर दिल दहला देती थी। मैंने इसी कोरोना लहर में अपने पांच बेहतरीन युवा होमियोपैथिक चिकित्सक मित्रों को खोया। उनके इलाज से लेकर श्‍मशान तक मैं लगभग टूट चुका था, लेकिन जीवन के हौसले ने हिम्मत दी और मौत से डरे बगैर मैं कोरोना संक्रमण के आरम्भ से अभी तक उपचार और सेवा में डटा हूं। कोरोना संक्रमण से बचाव और इसके उपचार में होमियोपैथी की भूमिका का इससे अच्छा उदाहरण मैं और क्या दूं। मुझसे परिचित मेरे सभी मित्र और अन्य लोग जो कोरोना संक्रमण की स्थिति में मुझसे परामर्श और उपचार ले चुके हैं वे मुझसे ज्यादा बेहतर बताएंगे। देश की कई जानी-मानी हस्तियां, ब्यूरोक्रेट, वरिष्ठ पुलिस अधिकारी, राजनेता, मंत्री आदि कई लोगों ने कोरोना संक्रमण में होमियोपैथी को अपनाया और अपेक्षित लाभ लिया। मुझे फख्र है कि लगभग 700 सक्रिय कोरोना मरीजों के इलाज में मैंने कोई 150 अतिगम्भीर कोरोना रोगियों का होमियोपैथिक दवा से सफल इलाज किया और लगभग सभी अब स्वस्थ और निरापद जीवन जी रहे हैं।

आंकड़ों की बात करें तो मैंने व्यक्तिगत स्तर पर एक रिसर्च संस्था हेल्थ एजुकेशन आर्ट लाइफ फाउन्डेशन (हील) के माध्यम से पश्चिमी दिल्ली के लगभग पांच लाख लोगों को होमियोपैथिक प्रिवेंटिव दवा देकर कोरोना संक्रमण से बचाया। ये सभी आंकड़े अब वैज्ञानिक अध्ययन एवं विश्लेषण के लिए सुरक्षित हैं। कोरोना वायरस संक्रमण के मामले जब देश में गम्भीर रूप से फैलने लगे (अप्रैल 2020) तब से एलोपैथिक दवा लॉबी ने इस महामारी के संक्रमण, फैलाव और उपचार पर अपना एकाधिकार जमाना शुरू कर दिया। अप्रैल-मई 2020 में जब हम लोग होमियोपैथिक उपचार के लिए सरकार से अनुमति चाह रहे थे तब विश्व स्वास्थ्य संगठन, भारतीय आर्युविज्ञान अनुसंधान संस्थान (आइसीएमआर) व अन्य संस्थाओं की तरफ से होमियोपैथी एवं आयुष चिकित्सा पद्यतियों के प्रति नकारात्मक एवं अपेक्षापूर्ण रवैया था। होमियोपैथी की केन्द्रीय होमियोपैथिक अनुसंधान परिषद (सीसीआरएच) भी हमारी ज्यादा खुलकर मदद नहीं कर पा रही थी। देश में महामारी अधिनियम 1897 तथा आपदा प्रबन्धन कानून 2005 लागू था जिसके तहत बगेर अनुमति के होमियोपैथी या आयुष चिकित्सकों द्वारा कोरोना संक्रमित मरीजों को देखना मुश्किल था। किसी तरह जब एलोपैथिक उपचार व संदिग्ध दवाओं के महंगे प्रयोग के बावजूद कोरोना से मौतों का सिलसिला थमता नजर नहीं आया, तब केन्द्र सरकार ने होमियोपैथी तथा आयुष चिकित्सकों को उपचार की अनुमति दी।

CCRH-Revised-Guidelines-for-Homoeopathy-Practitioners-for-Prophylaxis-and-Symptomatic-Management-of-COVID-19-Patients-in-Home-Isolation

हम लोगों ने होम आइसोलेशन के अनेक गम्भीर रोगियों को तब देखना शुरू किया और आशा से ज्यादा बेहतर परिणाम पाए। यह मेरे लिए वाकई रोमांचकारी अनुभव था। कोरोना संक्रमण में बचाव एवं उपचार में होमियोपैथिक दवाओं के प्रयोग का खर्च यदि देखें तो यह पूरे उपचार पर भी 5-7 हजार रुपये प्रति व्यक्ति से ज्यादा नहीं जाएगा जबकि ऐसे रोगी के एलोपैथिक उपचार का खर्च 10-15 लाख रुपये प्रति व्यक्ति तक आया। मैंने जब होमियोपैथिक दवाओं को कोरोना संक्रमण से बचाव के लिए प्रयोग करने की सरकार की सहमति पर चर्चा के लिए नीति आयोग, केन्द्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय, आइसीएमआर आदि संस्थाओं के अधिकारियों व वैज्ञानिकों से सम्पर्क व संवाद किया तो बहुत उत्साहजनक प्रतिक्रिया नहीं मिली। भारत जैसे गरीब व विकासशील देश में सस्ती, सुलभ एवं सरल वैज्ञानिक चिकित्सा पद्धति की मान्यता को लेकर सरकार व अधिकारियों आदि के नकारात्मक रवैये के पीछे मैं उनके एलोपैथिक माइन्डसेट को जिम्मेवार मानता हूं। मेरा अनुभव तो ऐसा भी है कि सरकार के स्वास्थ्य मंत्रालय में एक बड़े अधिकारी जिनकी पत्नी और बेटा स्वयं होमियोपैथ हैं, वे भी होमियोपैथी को आगे बढ़ता नहीं देखना चाहते। कारण होमियोपैथी के प्रति एलोपैथी का पूर्वाग्रह ही लगता है।

कोरोनाकाल में हम लोगों ने एक बात तो महसूस किया ही है कि अब आगे आने वाला समय और भी जटिल रोगों, नये वायरसों और गम्भीर महामारियों का है। यह भी लोगों ने देखा और महसूस किया कि करोड़ों रुपये खर्च कर निजी अस्पतालों और महंगे चिकित्सकों की सेवाओं के बावजूद केवल एलोपैथी के बलबूते महामारियों पर नियंत्रण सम्भव नहीं है। आम लोगों ने यह भी महसूस किया कि सरकारी अस्पतालों में बेहतर सुविधाओं और मुफ्त इलाज के दावे के बावजूद महामारी एवं रोगों के संक्रमण की स्थिति में जान बचाना सम्भव नहीं। कुल मिलाकर यदि हम देखें तो न तो निजी अस्पताल और न ही सरकारी स्वास्थ्य व्यवस्था लोगों के संक्रमण को कम कर पा रहे थे। एलोपैथी की महंगी और हानिकारक दवाओं ने बीमारी से ज्यादा लोगों की जान ले ली। देश ने इस दौरान हजारों बेहतरीन प्रतिभाओं को खोया। एलोपैथी की विफलता के बावजूद एलोपैथी की शोहरत कम नहीं हुई लेकिन कई कारणों से होमियोपैथी एवं आयुष पद्यतियां सरकार व योजनाओं की नजर में प्रतिष्ठा नहीं पा सकीं। यह विडम्बना देश में आम लोगों के स्वास्थ्य की गारन्टी को फलीभूत नहीं होने देगी।

हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि विगत 250 वर्षों से भी ज्यादा समय से होमियोपैथी भारत ही नहीं दुनिया भर में महामारी और जटिल बीमारियों के इलाज में केवल अपने ही दम खम पर टिक कर काम कर रही है। महज दवाओं के सूक्ष्मतम खुराक के इस्तेमाल से गंभीर से गंभीर रोगों का सफल इलाज करने वाली चिकित्सा पद्धति यदि उपेक्षित है, तो यह देश की अस्सी फीसद मेहनतकश गरीब समझे जाने वाली जनता का उपहास है। यदि वास्तव में हम अपने देश के प्रत्येक नागरिक को सेहत की सौगात देना चाहते हैं तो होमियोपैथी व आयुष पद्धतियों को यथोचित सम्मान देना ही होगा। समय की यही मांग है कि सरकार और योजनाकार इस पर शीघ्र निर्णय लें।


लेखक जन स्वास्थ्य वैज्ञानिक एवं राष्ट्रीय पुरस्कार प्राप्त होमियोपैथिक चिकित्सक हैं।

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