जब HIV पॉज़िटिव लोग सामान्य ज़िंदगी जी सकते हैं तो 2020 में 6.8 लाख लोग एड्स से क्यों मरे?


जब वैज्ञानिक उपलब्धियों के कारण और सामुदायिक अनुभव से हम यह जानते हैं कि एचआइवी के साथ जीवित व्यक्ति कैसे सामान्य ज़िंदगी जी सकता है तो 2020 में 6.8 लाख लोग एड्स सम्बंधित रोगों से कैसे मृत हुए? कौन ज़िम्मेदार हैं इन मृत्यु का? वैज्ञानिक शोध की देन है कि अनेक एचआइवी संक्रमण से बचाव के तरीक़े भी हमारे पास हैं फिर 2020 में 15 लाख लोग कैसे नए एचआइवी से संक्रमित हो गए? यदि हम एचआइवी नियंत्रण और प्रबंधन में कार्यसाधकता बढ़ाएंगे नहीं तो 2030 तक कैसे दुनिया को एड्स मुक्त करेंगे?

ऐसा कहना है लून गांगटे का, जो दिल्ली नेटवर्क ऑफ़ पॉज़िटिव पीपल के सह-संस्थापक हैं।

34वां विश्व एड्स दिवस 1 दिसम्बर 2021 को मनाया गया जिससे यह मूल्यांकन हो सके कि एड्स मुक्त दुनिया के वादे को पूरा करने में हम फ़िलहाल कितना ट्रैक पर हैं। विश्व एड्स दिवस कोई प्रतीकात्मक दिन नहीं है बल्कि एड्स उन्मूलन की ओर हम कितनी कार्यसाधकता के साथ बढ़ पा रहे हैं इसकी विवेचना ज़रूरी है। संयुक्त राष्ट्र सतत विकास लक्ष्य को पारित कर के भारत समेत दुनिया के 194 देशों ने 2030 तक एड्स-मुक्त दुनिया का वादा किया है। भारत की राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति 2017 में भी यह वादा दोहराया गया है।

जब 35 साल पहले भारत में सबसे पहले एचआइवी पॉज़िटिव व्यक्ति की पुष्टि हुई थी, तो देश में सर्वप्रथम एचआइवी का चिकित्सकीय प्रबंधन शुरू करने वाले थे डॉ. ईश्वर गिलाडा। वर्तमान में डॉ. ईश्वर गिलाडा, भारत के एचआइवी के चिकित्सकीय प्रबंधन में लगे अनेक विशेषज्ञों और वैज्ञानिकों के संगठन, एड्स सोसाइटी ऑफ़ इंडिया के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं और अंतरराष्ट्रीय एड्स सोसाइटी के अध्यक्षीय मंडल में भी निर्वाचित हुए हैं।

डॉ. ईश्वर गिलाडा ने कहा, “लगभग दो साल से भारत एवं अन्य देशों की सारी स्वास्थ्य प्रणाली कोविड नियंत्रण और प्रबंधन में लगी थी पर अन्य रोगों के नियंत्रण कार्यक्रम पर दुष्प्रभाव पड़ा जिनमें एचआइवी, टीबी, एवं अन्य संक्रामक रोग शामिल हैं। इसीलिए 2020 तक के 90:90:90 लक्ष्यों को हम पूरा नहीं कर पाए जिनके अनुसार, हमें 90% एचआइवी पोज़िटिव लोगों तक पक्की जाँच पहुँचानी थी कि इन्हें अपने संक्रमण के बारे में जानकारी हो, इनमें से 90% को जीवनरक्षक एंटीरेट्रोवाइरल दवा मिल रही हो और इनमें से 90% का वाइरल लोड नगण्य हो।”

डॉ. गिलाडा ने सीएनएस (सिटिज़न न्यूज़ सर्विस) को बताया, “शुक्र है वैज्ञानिक उपलब्धियों का जिसके कारण आज वर्तमान में हमारे पास एचआइवी संक्रमण को रोकने के अनेक साधन और तरीक़े हैं, जीवनरक्षक एंटीरेट्रोवाइरल दवाएं हैं, ठोस वैज्ञानिक प्रमाण है कि एचआइवी प्रबंधन कैसे किया जाए जिससे एचआइवी पॉज़िटिव व्यक्ति सामान्य ज़िंदगी जी सके, एचआइवी सह-संक्रमण और सह-रोग के चिकित्सकीय प्रबंधन का ज्ञान है और प्रभावकारी कार्यक्रम सक्रिय हैं, आदि। परंतु हम सफलतापूर्वक इन वैज्ञानिक उपलब्धियों और ज्ञान-अनुभव को जन स्वास्थ्य उपलब्धियों में परिवर्तित नहीं कर पाए हैं, इसीलिए 2020 में विश्व में 15 लाख लोग नए एचआइवी संक्रमित हो गए और 6.8 लाख लोग एड्स सम्बंधित कारणों से मृत हुए।”

चूँकि अधिकांश देश 2020 वाले एचआइवी सम्बंधित लक्ष्य पूरा नहीं कर पाए इसीलिए अब देशों ने तय किया कि 2030 तक 95% लोगों को अपने एचआइवी संक्रमण की जानकारी होगी, 95% लोग एंटीरेट्रोवाइरल दवा ले रहे होंगे और 95% का वाइरल लोड नगण्य होगा।

आज एचआइवी संक्रमण को फैलने से रोकने का ज्ञान और साधन हैं, एचआइवी पॉज़िटिव लोगों को स्वस्थ रखने के लिए एंटीरेट्रोवाइरल दवा और चिकित्सकीय प्रबंधन आदि सब हैं, पर दुनिया एड्स मुक्त नहीं है क्योंकि हम लोग समाज में व्याप्त अनेक प्रकार की असमानता और कुंठित व्यवस्था को सबके लिए एक-समान और न्यायपूर्ण नहीं बना पा रहे हैं।

डॉ. गिलाडा ने कहा कि आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक और क़ानूनी असमानताएं, जटिलताएं और अड़चनें अक्सर लोगों के लिए एचआइवी का ख़तरा बढ़ा देती हैं और एचआइवी सम्बंधित सेवाओं से वंचित कर देती हैं। यदि एड्स-मुक्त दुनिया का सपना पूरा करना है तो यह सुनिश्चित करना होगा कि एचआइवी सेवाओं के साथ-साथ पूरे तालमेल में वह कार्यक्रम भी सक्रिय रहें जो सामाजिक, आर्थिक, सांस्कृतिक और क़ानूनी बाधाओं को समाप्त कर रहे हों। यदि हम हर इंसान के मानवाधिकारों और मौलिक ज़रूरतों को सम्मानपूर्वक इंसानियत से पूरा करेंगे तो न केवल एचआइवी सेवाएँ सब तक पहुँचेंगी और एड्स-मुक्ति का स्वप्न पूरा होगा बल्कि अन्य सतत विकास लक्ष्य की ओर भी हम लोग बेहतर प्रगति कर सकेंगे।

7 अप्रैल 2004 से भारत सरकार ने नि:शुल्क जीवनरक्षक एंटीरेट्रोवाइरल दवा देनी शुरू की थी। तब से इन बीते सालों में भारत ने दो-तिहाई एचआइवी पोज़िटिव लोगों को यह दवा मुहैया करवायी है पर अब भी एक तिहाई लोग रह गए हैं।

डॉ. ईश्वर गिलाडा, जो पीपल्स हेल्थ ऑर्गनायज़ेशन और एड्स सोसाइटी ओफ़ इंडिया की ओर से एक लम्बे अरसे से एचआइवी-सम्बंधित हर प्रकार का भेदभाव और शोषण ख़त्म करने की मुहिम जारी रखे हुए हैं, ने बताया, “भारत समेत सभी देशों ने 2020 तक शून्य भेदभाव का लक्ष्य पूरा करना का वादा किया था पर इसमें हम असफल रहे। अब 2030 तक शून्य भेदभाव का लक्ष्य रखा गया है पर इसमें एक वाक्य जोड़ दिया गया है कि ‘2030 तक एचआइवी सम्बंधित भेदभाव और शोषण 10% से अधिक नहीं रहेगा’।

एचआइवी सम्बंधित भेदभाव और शोषण तो आज समाप्त होना चाहिए उसके लिए 2030 तक रुकने का क्या आशय है? जब तक भेदभाव और शोषण रहेगा तब तक एचआइवी सम्बंधित सेवाएं सभी जरूरतमंदों तक कैसे पहुँचेंगी? भारत सरकार ने इसी आशय से कि एचआइवी सम्बंधित भेदभाव-शोषण समाप्त हो, एचआइवी/ एड़्स अधिनियम 2017 पारित किया जिसकी माँग एड्स सोसाइटी ऑफ़ इंडिया एक लम्बे अरसे से कर रही थी। अब एड्स सोसाइटी ओफ़ इंडिया की मांग है कि इस क़ानून को पूरी तरह से लागू किया जाए जिससे कि यह असरदार हो।

चार साल हो रहे हैं इस क़ानून को आए और अभी तक राज्य स्तर पर इसका लोकपाल भी नियुक्त नहीं हुआ है। एक भी कार्रवाई इस क़ानून के तहत नहीं हुई है जबकि एड्स सम्बंधित भेदभाव और शोषण व्याप्त है। यह भी सुनिश्चित करने की आवश्यकता है कि एचआइवी पॉज़िटिव लोग बीमा कम्पनी द्वारा कोई शोषण भेदभाव न झेलें। अनेक पॉलिसी में यदि कोई एचआइवी पॉज़िटिव है तो उसको वह पॉलिसी नहीं मिलती या 10 रुपये लाख से अधिक नहीं मिलती। इस सम्बंध में एड्स सोसाइटी ओफ़ इंडिया, इरडा के अधिकारियों से आश्वासन मिला, पर वांछित कारवाई नहीं हुई है अभी तक।” जब तक असमानताओं के ख़िलाफ़ मज़बूती से कार्रवाई नहीं होगी तब तक भारत समेत अन्य देश भी एड्स लक्ष्यों से पीछे रहेंगे।


विश्व स्वास्थ्य संगठन महानिदेशक से सम्मानित बॉबी रमाकांत सीएनएस (सिटिज़न न्यूज़ सर्विस) और आशा परिवार से जुड़े हैं।


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