हैदराबाद: भोईगुड़ा अग्निकांड में मारे गए 11 प्रवासी मजदूरों की जिम्मेदारी कौन लेगा?

मुख्यमंत्री के. चंद्रशेखर राव और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मृतक के परिवारों को मुआवज़े देने की घोषणा कर दी है। परिवारों को क्रमश: 5 लाख और 2 लाख रुपये की अनुग्रह राशि दी जाएगी। बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने भी 2 लाख रुपये की घोषणा की है और इस घटना पर दुख जताया है।

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बाल विवाह की जड़ें वंचित जातियों की बदहाल जीवन स्थितियों में है, शादी की कानूनी आयुसीमा में नहीं!

आज बाल विवाह का कारण कन्यादान का फल मिलना नहीं है, बल्कि ऐसी जातियां जो प्रवासी मजदूर के रूप में अपनी आजीविका कमाती हैं उनके बीच बेटियों की सुरक्षा एक अहम मुद्दा है।

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पढ़ने-खेलने की उम्र में मजदूरी करने को अभिशप्त हैं कोरोना-काल की लाखों अभागी संतानें!

पिछले दो दशक में पहली बार इतनी बड़ी संख्या में बाल मजदूरों की संख्या में बढ़ोतरी हुई है। दुनिया भर में बाल मजदूरों की संख्या 152 मिलियन से 160 मिलियन पर पहुँच चुकी है।

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‘दुनिया के मजदूरों एक हो’, लेकिन कैसे? भारत में श्रम के परिदृश्य पर एक नज़र

कोरोना से बचाव की हमारी यह कोशिशें हमारी आर्थिक गतिविधियों के स्वरूप में व्यापक और कई क्षेत्रों में तो आमूलचूल परिवर्तन ला रही हैं। नयी कार्य संस्कृति तकनीकी के प्रयोग द्वारा एक ऐसी व्यवस्था बनाने की वकालत करती है जिसमें ह्यूमन इंटरफेस न्यूनतम हो। ऐसे में तकनीकी का प्रयोग धीरे-धीरे मनुष्य की भूमिका को नगण्य और गौण बना देगा।

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आम की डाल पर बैठकर बोलने वाली घुघुती और मजदूर दिवस

रोजगार की तलाश में शहरों की ओर गये मजदूर महामारी के डर से, लॉकडाउन से, शहरों की कठिनाइयों से वापस अपने घरों की ओर लौटने को मजबूर हो रहे हैं। यह दुख ऐसा है कि शायद हमारे लोकगीतों में भी न समा पाये।

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बीते 15 साल में दफ़न तीन डिसमिल ज़मीन का एजेंडा क्या ज़िंदा कर पाएगा बिहार का नया नेतृत्व?

यहां लंबे समय से काम कर रहे सामाजिक कार्यकर्ताओं का कहना है कि 1950 के बाद यहां कोई लैंड सर्वे नहीं हुआ। कुछ जानकार यह भी बताते हैं कि अगर व्यापक जांच पड़ताल की जाए तो पूरा बिहार बहुत बड़े ज़मीन घोटाले का गढ़ साबित होगा।

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राग दरबारी: 28 लाख बिहारी मजदूरों की पीड़ा को जाति के खांचे में डाल के आप खारिज कर देंगे?

अधिकांश राजनीतिक टिप्पणीकार एनडीए व महागठबंधन में मौजूद घटक दलों, किस मजबूत जाति का नेता किस गठबंधन के साथ है और किसका वोट परंपरागत रूप से किसे पड़ता रहा है, या फिर मोदी जी कितने चमत्कारिक रह गये हैं- के आधार पर बातों का विश्लेषण कर रहे हैं जबकि पिछले 15 वर्षों में बिहार कितना बसा और कितने बिहारी उजड़े- यह कहीं भी विश्लेषण में दिखायी नहीं पड़ता है।

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बात बोलेगी: झूठ की कोई इंतिहा नहीं…

भारत के संसदीय इतिहास में यह पहला संसदीय सत्र है जहां प्रश्नकाल नहीं है। यानी मौखिक रूप से कोई प्रश्न और बहस नहीं होगी। आप चाहें तो लिखित में दिये गये जवाबों से सच और झूठ का विच्छेदन करते रहिए, पर उससे कुछ हासिल नहीं होगा।

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बात बोलेगी: महापलायन की ‘चांदसी’ तक़रीरों के बीच फिर से खाली होते गाँव

लॉकडाउन की लंबी अवधि को पार करते हुए, अनलॉक की भी एक लंबी अवधि पूरी करने के बाद, आज सच्चाई ये है कि गाँव लौटे 100 में से 95 लोग शहरों और महानगरों की ओर लौट चुके हैं। उन्हें कोई मलाल नहीं है कि शहरों और महानगरों ने कैसी बेरुखी दिखलायी।

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गांव और शहर के बीच झूलती जिंदगी में देखिए बेनकाब वर्ग विभाजन का अक्स

लॉकडाउन के दौरान शहरों में रोजगार पूरी तरह से ठप हो जाने के बाद मजदूरों को अपना गांव दिखायी पड़ा था जहां से वे शहर की तरफ पलायन करके आये थे ताकि वे अपने और अपने परिवार के लिए दो जून की रोटी का इंतजाम कर सकें. अब, जब हम लॉकडाउन से अनलॉक की तरफ बढ़ रहे हैं तो एक बार फिर वे रोजगार की तलाश में उसी शहर की तरफ निकलने लगे हैं.

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