धर्मानुग्रही न्यायप्रणाली के दुष्प्रभाव

कुछ सीधे आपराधिक मामलों को छोड़ दें तो न्याय और अन्याय की पहचान का मामला बड़ा जटिल है। कई बार तो उलझन खड़ी हो जाती है। जो बात किसी खास संदर्भ में न्याय लगती है, संदर्भ बदलते ही वह अन्याय प्रतीत होने लगती है।

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गाहे-बगाहे: कुछ नहीं है तो अदावत ही सही!

महाभारत अनेक झूठी बातों का पुलिंदा ही है, बेशक इस झूठ में पुरुष-श्रेष्ठता के कई महान और घृणित प्रयास निहित हैं और स्त्रियां सबसे कमजोर जीव हैं। उन्होंने आँखों पर पट्टी बांधने, सती होने, यौन-शेयरिंग करने और मुसलसल गुलामी व बलात्कार झेलने के अलावा किया ही क्या है?

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कलियुग से दुखी जनता को सतयुग और त्रेता में वापस खींच ले जाने के सरकारी नुस्खे

पुरानी अफ़ीम नई पैकेजिंग में निगलने को दे दी गयी है। वन टाइम टास्क को अब फुल टाइम कर दिया गया है।

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