हिंदुत्व के खतरे में होने का विश्वास कहां से आया है?

। चूंकि धर्मनिरपेक्ष आधुनिकता के द्वारा उत्पन्न तनाव समाज में शिद्दत से महसूस किया जा रहा है, ज्यादा और ज्यादा हिंदू बुद्धिजीवी यह विश्वास करने लगे हैं कि उनका धर्म और जीवनशैली खतरे में है, वे इसके स्थायित्व, लचीलेपन और अनुकूलनीयता को देखते हुए इस बारे में जितना उन्हें होना चाहिए उससे कम आत्मविश्वासी हैं।

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तालिबान : भू-राजनीतिक परदे के पीछे

तालिबान के सत्तारोहण को भी एक आभासी फ्रेमवर्क में रख कर अफगानिस्तान में उसके आने को नए-नए मायने दिए जा रहे हैं लेकिन इन सब के सार में एक ही बात है कि तालिबान के आने से अफगानिस्तान पीछे चला गया है.

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धर्मांतरण विधेयक: पितृसत्ता के इस्लामिक मर्ज़ के खिलाफ़ पितृसत्ता का हिंदुत्ववादी पहरा

कुरान के नियम केवल यह बताते हैं कि कोई धार्मिक-नैतिक सिद्धांत पैगंबर मोहम्मद साहब के जीवनकाल में सातवीं शताब्दी के अरब की तत्कालीन परिस्थितियों में किस प्रकार क्रियान्वित किया गया था। आज जब परिस्थितियां और संदर्भ पूरी तरह बदल चुके हैं तब उस समय बनाए गए नियम कानून उस मूल सिद्धांत को अभिव्यक्त नहीं कर सकते जिस पर ये आधारित हैं।

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दक्षिणावर्त: अदृश्य भय वाला सेकुलरिज्म बनाम फ़र्ज़ी डराने वाला इस्लामोफोबिया

मुद्दा क्या होना चाहिए था और क्या है? मुद्दा था कि इस्लाम के नाम पर फ्रांस में एक और हत्या हुई। यह तमाम हत्याओं की फेहरिस्‍त में एक और हत्या मात्र है और कम से कम अब इस्लाम के ऊपर बात होनी चाहिए। यह लेकिन मुद्दा नहीं बना। मसला इस बात को बनाया गया कि मैक्रां ने इस्लाम के ऊपर टिप्पणी की है और वह एक हत्यारे के बहाने ‘इस्लामोफोबिया’ को बढ़ावा दे रहे हैं।

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दक्षिणावर्त: आज़ादी के 73 वर्ष, कुछ मील के पत्थर और…

इस्लाम को भारतीयता के अनुकूल न ढालकर फिलहाल हमारे समय की दो बड़ी विचारधाराएं एक ही गलती कर रही हैं। यह गलती भारत को भारी पड़ने वाली है।

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