पंजाब के किसानों का संघर्ष और संभावनाएं: इतिहास के आईने में एक दृष्टि

उस समय इस संधि को लेकर देश में खासतौर से पंजाब में गंभीर बहस हुई थी। कप्तान अमरिन्दर सिंह ने उस समय इस संधि का खुलकर समर्थन किया था। विश्व व्यापार संगठन का समर्थन करते हुए उन्होंने पंजाब ट्रिब्यूनल में एक लेख लिखा था। अब कांग्रेस पार्टी इस तरह का दिखावा कर रही है कि वह इन जनविरोधी कानूनों के खिलाफ है।

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किसानों का दुख देखा न गया तो बाबा राम सिंह ने मोर्चे पर ही अपनी जान दे दी

मोदी कैबिनेट की पूर्व मंत्री और अकाली दल की नेता हरसिमरत कौर ने ट्वीट कर लिखा है कि केंद्र सरकार की जिद और किसानों की हालत को नजरअंदाज करने के कारण सिंघरा वाले बाबा राम सिंह जी ने ख़ुदकुशी कर ली।

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बात बोलेगी: अब मामला उघाड़ने और मनवाने से नाथ घालने तक आ चुका है!

रिलायंस जियो के बहिष्कार के बाद शायद निकट इतिहास में यह पहला मौका है जब अंबानीज़ इस तरह बौखलाए हुए हैं, हालांकि यह बौखलाहट अच्छी है। सर्फ एक्सल कहता है कि दाग बुरे नहीं हैं। कोरोना की तरह किसान आंदोलन को इस ‘उजागर करो अभियान’ का भरपूर श्रेय दिया जाना चाहिए।

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कृषि पर कॉर्पोरेट कब्ज़ा संवैधानिक अधिकारों और लोकतंत्र के निगमीकरण की शुरुआत है

अगर आपने मुख्यधारा की मीडिया में होने वाली विशेषज्ञ चर्चाओं और वहां परोसे जाने वाले दृश्यों को अपनी सारी बुद्धि पहले से ही गिरवी नहीं रखी है, तो आप परी कथा की तरह सवाल पूछ सकते हैं: “आईना, दीवार पर आईना, मुझे दिखाओ कि इन सबके पीछे कौन है”। और फिर, आईना सत्तारूढ़ पार्टी के दो सबसे शक्तिशाली राजनेताओं (दोनों गुजरात से) को नहीं दिखाएगा, बल्कि दो अन्य चेहरे, देश के दो सबसे अमीर कारोबारी (दोनों ही गुजरात से) को दिखाएगा।

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किसान आंदोलन: दूसरा अध्याय समाप्त, चौतरफा षड्यंत्रों के बीच अगली बाज़ी का इंतज़ार

किसान आंदोलन का पहला अध्याय वार्ताओं का रहा। वार्ता विफल होने के बाद दूसरा अध्याय प्रदर्शनों का था। सोमवार को यह चरण भी अनशन के साथ समाप्त हो गया। इस बीच सरकार ने चारों तरफ से आंदोलन को घेर लिया है और किसानों का दिल्ली घेरने का कार्यक्रम विफल हो चुका है। आगे क्या होगा, कोई नहीं जानता…

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किसान आंदोलन: वीएम सिंह की मनमानी के चलते AIKSCC ने संयोजक का पद किया खत्म, पढ़ें बयान

की भावना को जागृत करने के लिए पंजाब के किसानों ने हाईवे के डिवाइडर पर धनिया, गाजर, मूली बोनी शुरु की

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किसान आंदोलन की पृष्ठभूमि में तीन नए कृषि कानूनों का एक विश्लेषण

ये तीनों सुधार मौजूदा कृषि उत्पादों के बाजार की संरचना पर से सरकार का नियंत्रण हटाने के मकसद से किये गए हैं। जब कोविड और लॉकडाउन की वजह से खेती में पहले से चले आ रहे संकट में और भी इज़ाफ़ा हो गया, और जब वंचितों और हाशिये पर मौजूद परिवारों को राज्य की सहायता की जरूरत थी ताकि निर्दयी और निरंकुश बाजार की अनिश्चितताओं और क्रूरताओं से राज्य उनकी रक्षा करे तब मोदी सरकार ने बाजार को और अधिक खोलकर और अपना नियंत्रण हटाकर समाज के कमजोर तबकों को बाजार के सामने पूरी तरह असहाय छोड़ दिया। वास्तव में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का देश की जनता को आत्मनिर्भर बनाने का एजेंडा यही था।

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आर्टिकल 19: लड़ते-खपते किसान पर क्यों चुप हैं अपने-अपने मोहल्लों के भगवान?

इस देश के बौद्धिक और अभिजात्य तबकों की ढपोरशंखी को किसानों ने बेनकाब कर दिया है। उसकी उम्मीदों को सरकार, सत्ता, विपक्ष, लेखक, कलाकार, अध्यापक, चिंतक सबने मिलकर मारा है। इसलिए अब उसे न तो किसी से उम्मीद है और न ही किसी का इंतजार।

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अगर आपको अब भी लगता है कि किसान आंदोलन सिर्फ पंजाब का है, तो ये आवाज़ें सुनें!

मोबाइलवाणी के मंच पर देश के कोने-कोने से किसानों ने अपनी बात रिकॉर्ड की है. बिहार का छोटा सा गांव हो या झारखंड का कोई ब्लॉक, महाराष्ट्र, मध्यप्रदेश, उत्तर प्रदेश से 400 से भी ज्यादा किसानों ने इस मंच के जरिये साफ तौर पर कहा है कि वे इस कानून को नहीं मानते. वे नहीं मानते कि सरकार उनका भला चाहती है!

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‘मुर्गी बैठे रही, अंडा नहीं दिया’: अब सरकार के प्रस्‍ताव पर कल होगी अगली बातचीत, आज वाली रद्द

कायदे से छठे दौर की बैठक का दिन आज तय था, लेकिन जाने किस जल्‍दबाज़ी और उम्‍मीद में गृहमंत्री ने बैठक एक दिन पहले बुलवा ली। बेनतीजा रहने के बाद उन्‍होंने पहले से तय आज की बैठक को रद्द करते हुए कहा कि किसान संगठनों को सरकार एक प्रस्‍ताव लिखित में भेजेगी। उसके बाद उक्‍त प्रस्‍ताव पर बैठक गुरुवार को होगी।

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