एनकाउंटर और न्यायेतर हत्याएं: उत्तर प्रदेश पर YHRD की रिपोर्ट

इन मौतों और घटनाक्रमों पर संयुक्त राष्ट्र संघ ने भी संज्ञान लिया है। इनकी समीक्षा संयुक्त राष्ट्र के पांच विशेष दूतों (रेपोर्तार) ने की है। इन हत्याओं की निष्पक्ष जांच की मांग करने वाली कई याचिकाएं सुप्रीम कोर्ट और राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (एनएचआरसी) में लंबित हैं।

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जाति और रसूख के हिसाब से न्याय और मुआवजे का ‘राम राज्य’!

पहले जिन्हें थाने से न्याय नहीं मिलता था उसे एसपी कार्यालय से उम्मीद होती थी। ब्लॉक से न्याय नहीं मिल पाता था तो तहसील और जिला अधिकारी कार्यालय से उम्मीद रहती थी लेकिन अब पीड़ितों के सामने इस बात का भी संकट है कि ऐसे अधिकारियों के रहते वह न्याय पाने के लिए जाएं तो कहां जाएं?

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एक घटना को छुपाने के लिए दूसरी को अंजाम देने का उदाहरण है गिरधारी एनकाउंटर: रिहाई मंच

बलिया के सिकंदरपुर थाने में दलित युवक की बेरहमी से पिटाई, कासगंज में अपराधियों द्वारा पुलिस को बंधक बनाकर हत्या-घायल करना, आज़मगढ़ में बीडीसी आलम की दिन दहाड़े हत्या, जौनपुर में कृष्णा यादव की हिरासत में मौत के बाद राजधानी में गिरधारी का एनकाउंटर यूपी में ध्वस्त हो चुकी कानून व्यवस्था का उदाहरण है.

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बुनियादी मुद्दों के एनकाउंटर का दौर

बुनियादी मुद्दों पर चर्चा से बचने के लिए व्यक्तियों को लार्जर दैन लाइफ नायकों और खलनायकों में बदला जा रहा है। विकास दुबे प्रकरण कोई अपवाद नहीं है।

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आर्टिकल 19: आकाश में दो उल्का पिंड टकराए और सब धुआँ धुआँ हो गया…

कानपुर में जो उस दिन हुआ और जो इस दिन हुआ, यह ब्रह्मांड में घटित ऐसी ही मामूली घटनाओं की तरह है। व्यवस्था के उल्का पिंडों के टकराव की तरह। इसमें जनता के हिस्से में केवल राख होना आया था। लेकिन उसे ये नहीं पता था कि एक दिन सब धुआं-धुआं हो जाएगा।

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मिनटों में न्याय, न्याय व्यवस्था की हत्या है इसलिए अगला नंबर किसी का भी हो सकता है!

उत्तर प्रदेश की बीजेपी सरकार ने तो उसकी हत्या की ही है, यहां के सामान्य लोगों में हत्या को लेकर कोई सवाल नहीं है बल्कि पुलिस-प्रशासन के लिए प्रशंसा के भाव हैं. उस उत्तर प्रदेश पुलिस के लिए, जिसके बारे में एक बार इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा था कि उत्तर प्रदेश पुलिस ‘डकैत’ है!

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