पश्चिमी यूपी में साम्प्रदायिकता को रोकने के लिए भाईचारा मंच का गठन

पश्चिमी उत्तर प्रदेश भाईचारा मंच की कमेटी में मेरठ, मुज़फ़्फ़रनगर, शामली, सहारनपुर, बिजनौर, मुरादाबाद, रामपुर, संभल, हापुड़, ग़ाज़ियाबाद, गौतमबुद्ध नगर, बुलंदशहर, अलीगढ़ और मथुरा सहित 14 ज़िलों के प्रतिनिधि शामिल हैं। गौतमबुद्ध नगर के अधिवक्ता, सामाजिक कार्यकर्ता, मज़दूर, किसान, सामाजिक कार्यकर्ताओं व बुद्धिजीवियों ने 19 जून 2022 को एक सम्मेलन कर भाईचारा मंच की जिला इकाई का गठन किया।

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असलम भूरा केस में सुप्रीम कोर्ट के फैसले की अवमानना है ज्ञानवापी का सर्वे आदेश- शाहनवाज़ आलम

उन्होंने ज्ञानवापी का उदाहरण देते हुए कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने कथित सर्वे की रिपोर्ट के लीक होने पर तो नाराज़गी जतायी लेकिन उस कथित सर्वे के आधार पर मीडिया द्वारा प्रसारित किए जा रहे सांप्रदायिक अफवाहों पर कोई रोक नहीं लगाई जिससे उसकी मंशा पर संदेह उठना स्वाभाविक है कि कहीं यह कथित जन भावना के निर्माण की कोशिश तो नहीं है जिसके आधार पर बाद में इसे मंदिर घोषित कर दिया जाएगा।

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अबकी तलवार लहराती और आग लगाती भीड़ को देखकर मेरे राम निश्चित ही आहत हुए होंगे!

लगभग हर प्रदेश में- और आश्चर्यजनक रूप से कांग्रेस तथा अन्य विपक्षी दलों द्वारा शासित प्रदेशों में भी- इन शोभायात्राओं का स्वरूप एक जैसा था- उकसाने, भड़काने और डराने वाला। इन शोभायात्राओं को मुस्लिम-बहुल इलाकों तथा मुस्लिम धर्मस्थलों के निकट से गुजरने की इजाजत निरपवाद रूप से लगभग हर जिले में दी गई।

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बिना नतीजे आए ही बहुत कुछ कह गया है उत्तर प्रदेश का चुनाव

भाजपा की उग्र हिंदुत्ववादी सोच ने मुसलमानों को संगठित होने के लिए मजबूर किया है किंतु इसका प्रस्तुतिकरण इस प्रकार से किया जा रहा है कि संगठित मुसलमान भारी मतदान द्वारा सत्ता पर काबिज होना चाहते हैं और हिन्दू यदि उनके षड्यंत्र को न समझे तो बहुसंख्यक होने के बावजूद मुसलमानों की अधीनता उन्हें स्वीकार करनी होगी।

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जनता के गुस्से के खिलाफ राजसत्ता का सेफ्टी वॉल्व है हिजाब प्रकरण!

देश में बढ़ती बेतहाशा महंगाई, पिछले दो वर्षों में कोविड के नाम पर खत्म किये गये रोजगार, बंद हो गए व्यवसाय, सरकारी संस्थानों को उद्योगपतियों को कौड़ी के मोल बेच दिया जाना, लोगों की गिरती आर्थिक दशा और गरीबी ने देश की जनता को संकट में डाल दिया है। उनका गुस्‍सा कभी भी फट सकता है जो सत्ताधारी के लिए संकट खड़ा कर सकता है। इसे शासक वर्ग जानता है।

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बनारस में गोष्ठी: भारतीय समाज एकरंगा बनाने की कोशिश बेहद खतरनाक!

काशी विश्वनाथ मंदिर के पूर्व महंत राजेन्द्र तिवारी ने कहा कि आज धर्म को सियासत की चाशनी में लपेटकर सरकार बनाने और बिगाड़ने का दौर शुरू है। ये किसी लोकतांत्रिक देश के लिए सबसे बड़ा खतरा है। उन्होंने कहा कि आज धर्माधिकारियों और धर्म के व्यापारियों में समाज को बांट दिया गया है। इससे हमें सावधान होना चाहिए।

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त्रिपुरा: सोशल मीडिया के दौर में सांप्रदायिकता के नये प्रयोग

त्रिपुरा उच्च न्यायालय ने उनाकोटी एवं सिपाहीजाला जिलों में हुई हिंसा पर स्वत: संज्ञान लेते हुए राज्य द्वारा उठाये गए निवारक उपायों की जानकारी चाही है और राज्य सरकार से पूछा है कि सांप्रदायिक उन्माद भड़काने की साजिश को असफल बनाने के लिए सरकार की क्या कार्य योजना है?

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छान घोंट के: भारतीय राष्ट्रवाद के खिलाफ हिंदू और मुस्लिम सांप्रदायिकता का साझा इतिहास

मोहम्मद अली जिन्ना द्वारा दो-राष्ट्र सिद्धांत अपनाने के बहुत पहले से सावरकर इस सिद्धांत का प्रचार कर रहे थे और दोनों ही भारतीय राष्ट्रवाद के खिलाफ थे। एक खास गौरतलब तथ्य है कि मुस्लिम लीग के लाहौर अधिवेशन (मार्च 1940) में पाकिस्तान प्रस्ताव पारित करते समय जिन्ना ने अपने दो-राष्ट्र सिद्धांत के पक्ष में सावरकर के उपरोक्त कथन का हवाला दिया था।

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राजनीतिक उत्प्रेरक के रूप में सांप्रदायिकता का इस्तेमाल और राष्ट्रीय आंदोलन से सबक

दुर्भाग्य से हमारे कुछ बुद्धिवादियों के पास साम्प्रदायिकता एक ऐसा बांड है जिसे वे कभी भी और कहीं भी भुना सकते हैं। साम्प्रदायिकता पर उनका इतना विशद अध्ययन है कि अब उनसे कोफ़्त होने लगी है क्योंकि पूरे भारतीय समाज की हर समस्या को वे साम्प्रदायिकता से कमतर आंकते हैं। यह भी कोई अच्छी स्थिति नहीं है।

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बाराबंकी के बाद खतौली में मस्जिद ढहाए जाने की घटना सुनियोजित: रिहाई मंच

रिहाई मंच के अध्यक्ष मुहम्मद शुऐब ने कहा कि कोरोना महामारी से लड़ने के बजाय अपनी नाकामियों को छुपाने और ध्रुवीकरण करने के लिए कभी मस्जिद को ढहाया जा रहा है तो कभी मुस्लिमों को सांप्रदायिक हमले का शिकार बनाया जा रहा है। 31 मई 2021 तक हाईकोर्ट द्वारा रोक के बावजूद बाराबंकी के बाद मुजफ्फरनगर के खतौली में प्रशासन ने मस्जिद को निशाना बनाया, यह खुलेआम कोर्ट की अवमानना है।

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