आर्टिकल 19: सरकार को डिजिटल से दिक्‍कत है, मने टीवी चैनल अब अप्रासंगिक हो चुके हैं

टीवी चैनलों के प्रासंगिकता खो देने की बात हवा में नहीं है। खुद मोदी सरकार ने अदालत में सील ठप्पे के साथ ये हलफनामा दिया है कि ये सब तो हमारे काबू में हैं, लेकिन डिजिटल मीडिया वाले नहीं आ रहे। आप उन पर लगाम कसिए।

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आर्टिकल 19: लोकतंत्र के शून्‍यकाल में…

भारत की संसदीय व्यवस्था में लोकतंत्र का मतलब बीजेपी का, बीजेपी के लिए और बीजेपी के द्वारा हो चुका है। बीजेपी ही सवाल पूछ सकती है। बीजेपी को ही जवाब देना है और बीजेपी को ही सुनना है। इसीलिए 14 सितंबर से शुरू होने जा रहे संसद के सत्र में विपक्ष के सांसदों की जुबान पर ताला लगा दिया गया है।

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आर्टिकल 19: दिल्‍ली दंगे पर एमनेस्‍टी की रिपोर्ट और सन् चौरासी के प्रेत की वापसी

एमनेस्‍टी ने एक विस्तृत जांच के बाद जो रिपोर्ट तैयार की है, उसमें भारत की सबसे शानदार पुलिस माने जाने वाली दिल्ली पुलिस का रंग रूप बहुत घिनौना, बहुत डरावना और बहुत भयानक नजर आता है।

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आर्टिकल 19: प्रशांत भूषण ने नैतिकता की एक लंबी लकीर खींच दी है, जिसका नज़ीर बनना तय है

फैसला कुछ भी हो लेकिन प्रशांत भूषण हीरो बन चुके हैं। अगर सजा मिलती है तब भी और अदालत उन्हें सिर्फ फटकार लगाकर छोड़ने का फैसला करती है तब भी। भारत के न्यायिक इतिहास में अवमानना के मामले में अदालत से बाहर इतनी जोरदार बहस कभी नहीं हुई।

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आर्टिकल 19: हम उस बुलडोज़र पर बैठे हैं जो हमारी आज़ादी को कुचलते हुए आगे बढ़ रहा है!

झूठ कहती हैं किताबें कि आज़ादी की लड़ाई में देश का हर तबका शामिल था। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और हिंदू महासभा के लोग इसी देश के लोग तो थे। गोडसे भी इसी देश में रहता था, लेकिन आरएसएस को तो आज़ादी नहीं चाहिए थी? यह तिरंगा भी नहीं चाहिए था। संविधान भी नहीं चाहिए था। वही संघ देश चला रहा है।

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आर्टिकल 19: सामाजिक न्याय की पुकार 5 अगस्त को धर्म की मिट्टी के नीचे दफन कर दी गयी है!

लक्ष्य अयोध्या नहीं है। राम का मंदिर नहीं है। रामराज तो कतई नहीं है। रामराज सामाजिक न्याय के खिलाफ उछाला गया ऐसा जुमला है जिसके झांसे में आकर ओबीसी ने माथे से रामनामी बांध ली है। लक्ष्य है सामाजिक न्याय की पुकार को धर्म की मिट्टी के नीचे दफन कर देना।

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आर्टिकल 19: जनता सड़कों पर है, लेखक दड़बों में!

लेखकों की अक्सर शिकायत रहती है कि लोग उन्हें सुनते नहीं। उन्हें पढ़ते नहीं। लेकिन इन सवालों से पहले जो सवाल बनता है वो ये कि जब लेखक अपने समय के सवालों से लड़ेगा नहीं तो उसे पढ़ेगा कौन? और क्यों पढ़े। उससे क्यों जुड़े।

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आर्टिकल 19: उत्तर प्रदेश के चुनावी कर्मकांड में तब्दील होता ‘विकास दूबे कांड’!

विकास दूबे को पुलिस ने एनकाउंटर में मार तो दिया लेकिन वो मरा नहीं। उसकी आत्मा अब राजनीति में प्रवेश की कोशिश कर रही है। और आदमी से ज्यादा खतरनाक होता है आत्मा का राजनीति में प्रवेश कर जाना।

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आर्टिकल 19: लोकतंत्र का मुंडा हुआ सिर और लोकभवन के सामने झुलसती लोकलाज

गुड़िया और सोफिया इसी विकास के झुलसे हुए चेहरे हैं। यह विकास की व्यवस्था में न्याय की हालत की तस्वीर है। गुड़िया ने पुलिस को बताया है कि एक विवाद में गांव के दबंगों ने उसकी मां पर हमला कर दिया। मामला अमेठी के जामो थाने पहुंचा, लेकिन थानेदार से पहले विकासवादी दबंग पहुंच गए।

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आर्टिकल 19: आचार्य आप कहां हैं? उ प्र में हि शि का थैंक्यू हो गया!

सरकार के हिसाब से देखें तो इसे हिंदी का अभूतपूर्व विकास भी कह सकते हैं। वह ऐसे, कि 2019 में 10वीं-12वीं में हिंदी में फेल होने वाले छात्रों की संख्या 10 लाख थी। तो हिंदी का सीधे 20 फीसद विकास हुआ है। और अगर कहीं 2018 वाला देख लें तब तो लगेगा भारतेंदु युग यही है। निज भाषा उन्नति अहै सब उन्नति को मूल।

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