लॉकडाउन में फैलती मर्दवाद की महामारी से कैसे निपटें?

महिला आयोग के मुताबिक पहले चरण के लॉकडाउन के एक सप्ताह के भीतर ही उनके पास घरेलू हिंसा की कुल 527 शिकायतें दर्ज की गयी हैं

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खज़ाना खाली हो चुका है, क्या नौ लाख करोड़ रुपये की मुद्रा छापेगी सरकार?

अमेरिकी सरकार की एजेंसी USAID ने कहा है कि वह भारत को 2.9 मिलियन डॉलर देगी, वहीं वर्ल्ड बैंक ने मात्र 1 बिलियन डॉलर देने की बात्त कही है!

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एक आवाज़, जिसके सामने कट्टर हिंदुत्व के चेहरे भी लिबरल नज़र आते हैं!

महाराष्ट्र के पालघर में साधुओं की मॉब लिंचिंग और सोनिया गांघी की तथाकथित “चुप्पी” वाले विवाद में तो उन्होंने पत्रकारिता की सारी मर्यादाओं को तार-तार कर दिया है

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पहना मास्क, उतरा नक़ाबः मध्यवर्ग के तीन किस्से और चौथा मजदूर

देखता हूं कि आप गमछा चैलेंज दे रहे हैं। साड़ी चैलेंज दे रहे हैं। क्या कहते हैं वो हैशटैग! 20 साल वाला। फोटो से फेसबुक की दीवार रंग देते हैं। कोई सोहर गाता है, कोई ग़ज़ल आज़माइश कर रहा है। कुत्ता-बिलार कुछ न छूटे, सबके साथ किसिम किसिम का पोज़ मारते हैं।

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करोड़ों प्रवासी भारतीयों की रोज़ी-रोटी को खतरे में डाल रही है घरेलू साम्प्रदायिकता

भारत का कितना आर्थिक और राजनीतिक नुकसान होगा यह तो अभी विश्वास के साथ नहीं कहा जा सकता मगर देश की बदनामी हो रही है, जिसके लिए सिर्फ वे लोग ज़िम्मेदार हैं जिनको लगता है कि मुसलमान को नीचा दिखा कर उनका स्थान ऊंचा हो जाएगा.

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महामारी के बीच UAPA और NSA का प्रकोप

जिन लोगों पर एनएसए लगाया गया तकरीबन सभी मुस्लिम समुदाय से आते हैं। पिछले दो दिनों में चार लोगों पर यूएपीए लगाया गया है। इसमें भी सभी मुस्लिम हैं।

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सरकार जानती है, मजदूर बुरा नहीं मानते। लौट कर आएंगे, और कहां जाएंगे!

हर आने वाली सरकार ने श्रम कानूनों को लघु से लघुतर बनाया है. कार्यस्थलों पर सुरक्षा व्यवस्थाओं के अभाव में दुर्घटनाओं में मजदूरों का मरना बदस्तूर जारी है. बुनियादी सुविधाओं की मांग, हड़ताल, यूनियन, सब जैसे बीते जमाने की बातें हो गयीं. श्रमिक जीवन उतरोत्तर बदतर होता गया, लेकिन किसी सरकार या समाज के लिए यह कभी मुद्दा नहीं रहा.

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MP ग़ज़ब है: इकलौते सरकार पर अफ़सरों का भार और विषाणु अपार

मध्य प्रदेश इस समय दिशाहीन प्रदेश हो गया है। वैसे भी यह मध्य में है। इसके साथ न उत्तर हैं दक्षिण है न पूरब है न पश्चिम है। यह भौगोलिक रूप से दिशाहीन शुरू से रहा है। अब इस कोरोना काल में तो बेचारा राजनैतिक रूप से भी दिशाहीन होकर भटक रहा है।

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संंतोष शर्मा और विक्रम पोद्दार की शहादत से निकल रही है सामाजिक न्याय की राजनीति की नयी धारा

संतोष शर्मा जैसे लोग इस बात को बखूबी समझते थे कि सामाजिक न्याय का नीतीश मॉडल ब्राह्मणवादी सवर्ण वर्चस्व के आगे ही सरेंडर करता है

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क्या आप कोरोना के बाद बनने वाली नयी दुनिया के लिए तैयार हैं?

कोरोना वायरस संक्रमण ने रोग और महामारी के प्रति मानवीय समाज को नये रूप में जीने को बाध्य कर दिया है। अब तक किसी भी घातक महामारी या बीमारी के फैलने पर राज्य और पुलिस की इतनी केन्द्रित और सशक्त भूमिका आम लोगों ने नहीं देखी थी।

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