सरकार जानती है, मजदूर बुरा नहीं मानते। लौट कर आएंगे, और कहां जाएंगे!

हर आने वाली सरकार ने श्रम कानूनों को लघु से लघुतर बनाया है. कार्यस्थलों पर सुरक्षा व्यवस्थाओं के अभाव में दुर्घटनाओं में मजदूरों का मरना बदस्तूर जारी है. बुनियादी सुविधाओं की मांग, हड़ताल, यूनियन, सब जैसे बीते जमाने की बातें हो गयीं. श्रमिक जीवन उतरोत्तर बदतर होता गया, लेकिन किसी सरकार या समाज के लिए यह कभी मुद्दा नहीं रहा.

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MP ग़ज़ब है: इकलौते सरकार पर अफ़सरों का भार और विषाणु अपार

मध्य प्रदेश इस समय दिशाहीन प्रदेश हो गया है। वैसे भी यह मध्य में है। इसके साथ न उत्तर हैं दक्षिण है न पूरब है न पश्चिम है। यह भौगोलिक रूप से दिशाहीन शुरू से रहा है। अब इस कोरोना काल में तो बेचारा राजनैतिक रूप से भी दिशाहीन होकर भटक रहा है।

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संंतोष शर्मा और विक्रम पोद्दार की शहादत से निकल रही है सामाजिक न्याय की राजनीति की नयी धारा

संतोष शर्मा जैसे लोग इस बात को बखूबी समझते थे कि सामाजिक न्याय का नीतीश मॉडल ब्राह्मणवादी सवर्ण वर्चस्व के आगे ही सरेंडर करता है

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क्या आप कोरोना के बाद बनने वाली नयी दुनिया के लिए तैयार हैं?

कोरोना वायरस संक्रमण ने रोग और महामारी के प्रति मानवीय समाज को नये रूप में जीने को बाध्य कर दिया है। अब तक किसी भी घातक महामारी या बीमारी के फैलने पर राज्य और पुलिस की इतनी केन्द्रित और सशक्त भूमिका आम लोगों ने नहीं देखी थी।

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कामेश्वर-कैलू की ज़िंदगी और मुकेश की मौत में देखिए प्रवासी मजदूरों की पीड़ा का अक्स

कोरोना तात्कालिक एक महासंकट है मगर भूख तो एक स्थायी संकट है. कोरोना का संकट समय के साथ कम होता ही जाएगा, क्योंकि इससे बड़ों-बड़ों को अरबों का जो नुकसान जो हो रहा है और वो नहीं चाहेंगे उनका नुकसान इसी तरह होता रहे.

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कोरोना आर्थिक पैकेज की सीमाएं और कुछ कारगर तात्कालिक उपाय

एक करोड़ रुपये से ऊपर की कुल योग्य आय वाले कॉर्पोरेट की आयकर दर को 38% तक बढ़ा दिया जाना चाहिए

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लॉकडाउन का ‘मरदाना’ सौंदर्यशास्त्र और बालकनी में गौरैया

ये कौन सी जमात है, जो ‘फीलिंग लवली विद फैमिली’ हो जा रही है? ये कौन सी प्रजाति है जो लॉकडाउन में खाना खा रही है और खाने से पहले उसकी तस्वीर फेसबुक पर चिपका रही है, गोया उससे पहले शायद हवा पीकर जिंदा थी।

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कोरोना संकट के बाद बदल जाएंगे अमेरिका-चीन समीकरण

कोरोना वायरस के विश्वव्यापी संक्रमण, ढहती अर्थव्यवस्थाओं और बढ़ती अनिश्चितताओं के बीच जो कुछ भी दुर्भाग्यपूर्ण एवं भयावह हो सकता है, अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप उसके सूत्रधार बनकर उभरे हैं.

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कोरोना संकटः आने वाले दिनों में बेरोजगारी से निपटने के लिए कुछ प्रभावी उपाय

ऐसा स्पष्ट संकेत मिल रहा है कि विदेश में नौकरियां कर रहे लाखों भारतीय युवा अपनी नौकरियों से हाथ धो सकते हैं।

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मजदूरों की पहचान ‘माइग्रेंट’ के रूप में करना मेहनतकश वर्ग के खिलाफ साजिश क्यों है

आजादी से पहले देश में हैजा, प्लेग, तावन, सूखा, बाढ़ जैसी आपदाएं अनेकों बार आई होंगी और लोग गांवों को छोड़कर दूसरे जगह जाकर बस गए होंगे और उसी के साथ गांव उजड़ते बसते रहते होंगे। अपने होश से आज तक, अपने पूर्वजों से या अगल-बगल के गांवों या कस्बों या शहरों में उपेक्षित भाव से किसी के बारे में प्रवासी या माइग्रेन्ट कहते नहीं सुना।

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