आजकल गाँवों में उद्योग लगाने के लिए लोगों को आपस बाँट कर जमीन कैसे ली जाती है?

इस सब के बावजूद इस तरह की घटनाएं हुई हैं जब प्रभावित लोगों ने अपने बीच किसी तरह के विभाजन नहीं होने दिया और लगातार मिलकर परियोजना का विरोध जारी रखा। इस तरह की असाधारण स्थिति असाधारण समाधान की मांग भी करती है।

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क्या अपराध किया है मैंने? फादर स्टैन स्वामी की चार्जशीट उन्हीं की ज़ुबानी

शासन व्यवस्था मुझे रास्ते से हटाना चाहती है. और हटाने का सबसे आसान तरीका है कि मुझे फ़र्ज़ी मामलों में गंभीर आरोपों में फंसा दिया जाए और साथ ही, बेकसूर आदिवासियों को न्याय मिलने के न्यायिक प्रक्रिया को रोक दिया जाए.

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जिन आदिवासियों की ज़मीन में से कोयला निकाला जाना है, वार्ता की मेज़ से वे गायब क्यों हैं?

किसी को यह याद दिलाने की आवश्यकता नहीं है कि आदिवासी सबसे अधिक हाशिये के समुदायों में से हैं। वे भारत की 1.3 बिलियन की आबादी का मात्र 8 प्रतिशत बनाते हैं, लेकिन पिछले दशकों में विकास परियोजनाओं द्वारा विस्थापित 60 मिलियन लोगों में से लगभग 40 प्रतिशत आदिवासी ही हैं। उनमें से केवल 25 प्रतिशत का ही पुनर्वास हुआ है, लेकिन किन्हीं को भी उनका पूरा अधिकार नहीं मिला है।

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झारखंड: PESA कानून के तहत स्वशासन की आदिवासी परंपरा को पुनर्जीवित करने का मौका

प्रवासी मजदूरों के लिए जो कोई और सरकार न कर पाई वह मौजूदा झारखंड सरकार ने किया है वीर भारत तलवार (प्रभात खबर, 10-जून-2020) यह एक प्रतिष्ठित विचारक द्वारा झारखंड …

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घर लौटने वाले प्रवासी श्रमिकों के लिए लैंड बैंक और भूमि का डिजिटलीकरण दो बाधाएं हैं

हमारे प्रवासी कामगारों को जीवनयापन करने के लिए अधिक से अधिक भूमि की आवश्यकता है, लेकिन यहां तो मौजूदा भूमि को भी भयावह तरीके से लूटा जा रहा है। ऐसे में प्रवासियों को उनका हक कैसे मिले?

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घर लौटा प्रवासी मजदूर इज्ज़त के साथ अपने गांव में कैसे टिके और परिवार पाले? कुछ कारगर सुझाव

इन्हें इंसाफ की झलक भर दिखलाने का इकलौता तरीका यह है कि उच्च/सर्वोच्च न्यायालय में एक जनहित याचिका दायर करके सरकार को सड़क पर फंसे लोगों को पर्याप्त मुआवजा देने की मांग की जाए।

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