विकास रैली की पोस्‍टमॉर्टम रिपोर्ट: दिल्‍ली, 29 सितंबर 2013


अभिषेक श्रीवास्‍तव
हाल ही में एक बुजुंर्ग पत्रकार मित्र ने मशहूर शायर मीर की लखनऊ यात्रा पर एक किस्‍सा सुनाया था। हुआ यों कि मीर चारबाग स्‍टेशन पर उतरे, तो उन्‍हें पान की तलब लगी हुई थी। वे एक ठीहे पर गए और बोले, ”ज़रा एक पान लगाइएगा।” पनवाड़ी ने उन्‍हें ऊपर से नीचे तक ग़ौर से देखा, फिर बोला, ”हमारे यहां तो जूते लगाए जाते हैं हुज़ूर।” दरअसल, यह बोलचाल की भाषा  का फ़र्क था। लखनऊ में पान बनाया जाता है। लगाने और बनाने के इस फ़र्क को समझे बगैर दिल्‍ली से आया मीर जैसा अदीब भी गच्‍चा खा जाता है। ग़ालिब, जो इस फ़र्क को बखूबी समझते थे, बावजूद खुद दिल्‍ली में ही अपनी आबरू का सबब पूछते रहे। दिल्‍ली और दिल्‍ली के बाहर के पानी का यही फ़र्क है, जिसे समझे बग़ैर ग़यासुद्दीन तुग़लक से दिल्‍ली हमेशा के लिए दूर हो गई। गर्ज़ ये, कि इतिहास के चलन को जाने-समझे बग़ैर दिल्‍ली में कदम रखना या दिल्‍ली से बाहर जाना, दोनों ही ख़तरनाक हो सकता है। क्‍या नरेंद्रभाई दामोदरदास मोदी को यह बात कोई जाकर समझा सकता है? चौंकिए मत, समझाता हूं…।  
सवेरे आठ बजे पार्क में पहुंचते घोड़े और पुलिसवाले 

अगर आपने राजनीतिक जनसभाएं देखी हैं, तो ज़रा आज की संज्ञाओं का भारीपन तौलिए और मीडिया के जिमि जि़प कैमरों के दिखाए टीवी दृश्‍यों से मुक्‍त होकर ज़रा ठहर कर सोचिए: जगह दिल्‍ली, मौका राजधानी में विपक्षी पार्टी भाजपा की पहली चुनावी जनसभा और वक्‍ता इस देश के अगले प्रधानमंत्री का इकलौता घोषित प्रत्‍याशी नरेंद्र मोदी। सब कुछ बड़ा-बड़ा। कटआउट तक सौ फुट ऊंचा। दावा भी पांच लाख लोगों के आने का था। छोटे-छोटे शहरों में रैली होती है तो रात से ही कार्यकर्ता जमे रहते हैं और घोषित समय पर तो पहुंचने की सोचना ही मूर्खता होती है। मुख्‍य सड़कें जाम हो जाती हैं, प्रवेश द्वार पर धक्‍का-मुक्‍की तो आम बात होती है। दिल्‍ली में आज ऐसा कुछ नहीं हुआ। न कोई सड़क जाम, न ही कोई झड़प, न अव्‍यवस्‍था। क्‍या इसका श्रेय जापानी पार्क में मौजूद करीब तीन हज़ार दिल्‍ली पुलिसबल, हज़ार एसआइएस निजी सिक्‍योरिटी और हज़ार के आसपास आरएएफ के बलों को दिया जाय, जिन्‍होंने कथित तौर पर पांच लाख सुनने आने वालों को अनुशासित रखा? दो शून्‍य का फ़र्क बहुत होता है। अगर हम भाजपा कार्यकर्ताओं, स्‍वयंसेवकों, मीडिया को अलग रख दें तो भी सौ श्रोताओं पर एक सुरक्षाबल का हिसाब पड़ता है। ज़ाहिर है, पांच लाख की दाल में कुछ काला ज़रूर है।     
साढ़े आठ बजे 
आयोजन स्‍थल पर जो कोई भी सवेरे से मौजूद रहा होगा, वह इस काले को नंगी आंखों से देख सकता था। मोदी की जनसभा का घोषित समय 10 बजे सवेरे था, जबकि वक्‍ता की लोकप्रियता और रैली में अपेक्षित भीड़ को देखते हुए मैं सवेरे सवा सात बजे जापानी पार्क पहुंच चुका था। उस वक्‍त ईएसआई अस्‍पताल के बगल वाले रोहिणी थाने के बाहर पुलिसवालों की हाजि़री लग रही थी। सभी प्रवेश द्वार बंद थे। न नेता थे, न कार्यकर्ता और न ही कोई जनता। रोहिणी पश्चिम मेट्रो स्‍टेशन वाली सड़क से पहले तक अंदाज़ा ही नहीं लगता था कि कुछ होने वाला है। अचानक मेट्रो स्‍टेशन वाली सड़क पर बैनर-पोस्‍टर एक लाइन से लगे दिखे, जिससे रात भर की तैयारी का अंदाज़ा हुआ। बहरहाल, आठ बजे के आसपास निजी सुरक्षा एजेंसी एसआइएस के करीब हज़ार जवान पहुंचे और उनकी हाजि़री हुई। नौ बजे तक ट्रैक सूट पहने कुछ कार्यकर्ता आने शुरू हुए। गेट नंबर 11, जहां से मीडिया को प्रवेश करना था, वहां नौ बजे तक काफी पत्रकार पहुंच चुके थे। गेट नंबर 1 से 4 तक अभी बंद ही थे। सबसे ज्‍यादा चहल-पहल मीडिया वाले प्रवेश द्वार पर ही थी। दिलचस्‍प यह था कि तीन स्‍तरों के सुरक्षा घेरे का प्रत्‍यक्ष दायित्‍व तो दिल्‍ली पुलिस के पास था, लेकिन कोई मामला फंसने पर उसे भाजपा के कार्यकर्ता को भेज दिया जा रहा था। तीसरे स्‍तर के सुरक्षा द्वार पर भी भाजपा की कार्यकर्त्री और एक स्‍थानीय नेतानुमा शख्‍स दिल्‍ली पुलिस को निर्देशित कर रहे थे।
यह अजीब था, लेकिन दिलचस्‍प। साढ़े नौ बजे पंडाल में बज रहे फिल्‍मी गीत ”आरंभ है प्रचंड” (गुलाल) और ”अब तो हमरी बारी रे” (चक्रव्‍यूह) अनुराग कश्‍यप व प्रकाश झा ब्रांड बॉलीवुड को उसका अक्‍स दिखा रहे थे। इसके बाद ”महंगाई डायन” (पीपली लाइव) की बारी आई और भाजपा के सांस्‍कृतिक पिंजड़े में आमिर खान की आत्‍मा तड़पने लगी। जनता हालांकि यह सब सुनने के लिए नदारद थी। सिर्फ मीडिया के जिमी जि़प कैमरे हवा में टंगे घूम रहे थे। अचानक मिठाई और नाश्‍ते के डिब्‍बे बंटने शुरू हुए। कुछ कार्यकर्ता मीडिया वालों का नाम-पता जाने किस काम से नोट कर रहे थे। फिर पौने दस बजे के करीब अचानक एक परिचित चेहरा दर्शक दीर्घा में दिखाई दिया। यह अधिवक्‍ता प्रशांत भूषण को चैंबर में घुसकर पीटने वाली भगत सिंह क्रांति सेना का सरदार नेता था। उसकी पूरी टीम ने कुछ ही देर में अपना प्रचार कार्य शुरू कर दिया। ”नमो नम:” लिखी हुई लाल रंग की टोपियां और टीशर्ट बांटे जाने लगे। कुछ ताऊनुमा बूढ़े लोगों को केसरिया पगड़ी बांधी जा रही थी। कुछ लड़के भाजपा का मफलर बांट रहे थे। जनसभा के घोषित समय दस बजे के आसपास पंडाल में भाजपा कार्यकर्ताओं, स्‍वयंसेवकों और मीडिया की चहल-प‍हल बढ़ गई। सारी कुर्सियां और दरी अब भी जनता की बाट जोह रही थीं और टीवी वाले जाने कौन सी जानकारी देने के लिए पीटीसी मारे जा रहे थे।

सवा दस बजे एक पत्रकार मित्र के माध्‍यम से सूचना आई कि नरेंद्र मोदी 15 मिनट पहले फ्लाइट से दिल्‍ली के लिए चले हैं। यह पारंपरिक आईएसटी (इंडियन स्‍ट्रेचेबल टाइम) के अनुकूल था, लेकिन आम लोगों का अब तक रैली में नहीं पहुंचना कुछ सवाल खड़े कर रहा था। साढ़े दस बजे के आसपास माइक से एक महिला की आवाज़़ निकली। उसने सबका स्‍वागत किया और एक कवि को मंच पर बुलाया। ”भारत माता की जय” के साथ कवि की बेढंगी कविता शुरू हुई। फिर एक और कवि आया जिसने छंदबद्ध गाना शुरू किया। कराची और लाहौर को भारत में मिला लेने के आह्वान वाली पंक्तियों पर अपने पीछे लाइनें दुहराने की उसकी अपील नाकाम रही क्‍योंकि कार्यकर्ता अपने प्रचार कार्य में लगे थे और दुहराने वाली जनता अब भी नदारद थी।
 
पौने ग्‍यारह बजे की स्थिति यह थी कि आयोजन स्‍थल पर बमुश्किल दस से बारह हज़ार लोग मौजूद रहे होंगे। एक पुलिस सब-इंस्‍पेक्‍टर ने (नाम लेने की ज़रूरत नहीं) बताया कि कुल सात हज़ार के आसपास सुरक्षाबल (सरकारी और निजी), 500 के आसपास मीडिया, तीन हज़ार के आसपास कार्यकर्ता और स्‍वयंसेवक व छिटपुट और लोग होंगे। ”लोग नहीं आए अब तक?”, मैंने पूछा। वो मुस्‍कराकर बोला, ”सरजी संडे है। हफ्ते भर नौकरी करने के बाद किसे पड़ी है। टीवी में देख रहे होंगे।” फिर उसने अपने दो सिपाहियों को चिल्‍लाकर कहा, ”खा ले बिजेंदर, मैं तुम दोनों को भूखे नहीं मरने दूंगा।” ग्‍यारह बज चुके थे और पंडाल के भीतर तकरीबन सारे मीडिया वाले और पुलिसकर्मी भाजपा के दिए नाश्‍ते के डिब्‍बों को साफ करने में जुटे थे। मंच से कवि की आवाज़ आ रही थी, ”मोदी मोदी मोदी मोदी”। उसने 14 बार मोदी कहा। मंच के नीचे पेडेस्‍टल पंखों और विशाल साउंड सिस्‍टम के दिल दहलाने वाले मिश्रित शोर का शर्मनाक सन्‍नाटा पसरा था और हरी दरी के नीचे की दलदली ज़मीन कुछ और धसक चुकी थी।   

कुछ देर बाद हम निराश होकर निकल लिए। मोदी सवा बारह के आसपास आए और दिल्‍ली में हो रही जोरदार बारिश के बीच एक बजे की लाइव घोषणा यह थी कि रैली में पांच लाख लोग जुट चुके हैं। मोदी ने कहा कि ऐसी रिकॉर्ड रैली आज तक दिल्‍ली में नहीं हुई। इस वक्‍त मोबाइल पर उनका लाइव भाषण देखते हुए हम बिना फंसे रिंग रोड पार कर चुके थे। पंजाबी बाग से रोहिणी के बीच रास्‍ते में गाजि़याबाद से रैली में आती बैनर, पोस्‍टर और झंडा बांधे कुल 13 बसें दिखीं। अधिकतर एक ही टूर और ट्रैवल्‍स की सफेद बसें थीं। निजी वाहनों के बारे में कुछ नहीं कहा जा सकता। हरेक बस में औसतन 20-25 लोग थे। लाल बत्तियों पर लगी कतार को छोड़ दें तो पूरी रिंग रोड (जो हरियाणा को दिल्‍ली से जोड़ती है), रोहिणी से धौला कुआं वाली रोड (गुड़गांव वाली), कुतुब से बदरपुर की ओर जाती सड़क (जो फरीदाबाद को दिल्‍ली से जोड़ती है) और बाद में उत्‍तर प्रदेश से दिल्‍ली को जोड़ने वाली आउटर रिंग रोड खाली पड़ी हुई थी। और यह दिल्‍ली की बारिश में था जबकि जाम एक सामान्‍य दृश्‍य होता है।
रैली में आखिर लाखों लोग आए कहां से? क्‍या सिर्फ 26 मेट्रो से? बसों और निजी वाहनों से तो जाम लग जाता, जबकि ग़ाजि़याबाद से रोहिणी और वहां से वापस रिंग रोड, आउटर रिंग रोड व भीतर की पंजाबी बाग वाली रोड को कुल 125 किलोमीटर हमने पूरा नापा। ग़ाजि़याबाद का जि़क्र इसलिए विशेष तौर पर किया जाना चाहिए क्‍योंकि राजनाथ सिंह यहां से सांसद हैं और पिछले दो दिनों से बड़े पैमाने पर यहां रैली की तैयारियां चल रही थीं। इसे इस बात से समझा जा सकता है कि मोदी की जनसभा में जितने भी नेताओं के कटआउट आए थे, सब ग़ाजि़याबाद से आए थे जिन्‍हें एक ही कंपनी ”आज़ाद ऐड” ने बनाया था। सवेरे साढ़े आठ बजे तक ये कटआउट यहां ट्रकों में भरकर पहुंच चुके थे, हालांकि ग़ाजि़याबाद से श्रोता नहीं आए थे। वापस पहुंचने पर इंदिरापुरम, ग़ाजि़याबाद के स्‍थानीय भाजपा कार्यकर्ता टीवी पर मोदी का रिपीट भाषण सुनते मिले।
बहरहाल, मोदी जब बोल चुके थे तो भाजपा कार्यालय के एक प्रतिनिधि ने फोन पर बताया कि रैली में आने वालों की कुल संख्‍या 50,000 के आसपास थी। अगर हम इसे भी एकबारगी सही मान लें, तो याद होगा कि इतने ही लोगों की रैली पिछले साल फरवरी में दिल्‍ली में कुछ मजदूर संगठनों ने की थी और समूचा मीडिया यातायात व्‍यवस्‍था और जनजीवन अस्‍तव्‍यस्‍त हो जाने की त्राहि-त्राहि मचाए हुए था। अजीब बात है कि बिना हेलमेट पहने और लाइसेंस के बतौर भारत का झंडा उठाए दर्जनों बाइकधारी नौजवानों के आज सड़क पर होने के बावजूद कुछ भी अस्‍तव्‍यस्‍त नहीं हुआ, लाखों लोग रोहिणी जैसी सुदूर जगह पर आ भी गए और चुपचाप चले भी गए। यह नरेंद्रभाई मोदी की रैली में ही हो सकता है। उत्‍तराखंड की बाढ़ में फंसे गुजरातियों को जिस तरह उन्‍होंने एक झटके में वहां से निकाल लिया था, हो सकता है कि ऐसा ही कोई जादू चलाकर उन्‍होंने दिल्‍ली की विकास रैली में लाखों लोगों को पैदा कर दिया हो। ऐसे चमत्‍कार आंखों से दिखते कहां हैं, बस हो जाते हैं।
जब जनता आगे देखती है और नेता पीछे, तो ऐसा ही होता है 
ऐसे चमत्‍कारों का हालांकि खतरा बहुत होता है। उत्‍तराखंड वाले चमत्‍कार में ऐपको नाम की जनसंपर्क एजेंसी का भंडाफोड़ हो चुका है। दिल्‍ली में किस एजेंसी को भाजपा ने यह रैली आयोजित करने के लिए नियुक्‍त किया, यह नहीं पता। देर-सवेर पता चल ही जाएगा। मेरी चिंता हालांकि यह बिल्‍कुल नहीं है। मैं इस बात से चिंतित हूं कि मोदी जैसा कद्दावर शख्‍स दिल्‍ली में बोल गया और दिल्‍लीवाले नहीं आए। वजह क्‍या है? कहीं तुग़लक जैसी कोई समस्‍या तो इसके पीछे नहीं छुपी है? मोदी दिल्‍लीवालों को न समझें न सही, क्‍या विजय गोयल आदि आयोजकों से भी कोई चूक हो गई? ठीक है, कि टीवी चैनलों के हवा में लटकते पचास फुटा कैमरों ने टीवी देख रहे लोगों को काम भर का भरमाया होगा, जैसा कि उसने अन्‍ना हज़ारे की गिरफ्तारी के समय किया था। अन्‍ना से याद आया- वह भी तो रोहिणी जेल का ही मामला था जहां दो-चार हज़ार लोगों को कैमरों ने एकाध लाख में बदल दिया था। इत्‍तेफाक कहें या बदकिस्‍मती, कि रोहिणी में ही इतिहास ने खुद को दुहराया है। मोदी चाहें तो किसी ज्‍योतिषी से रोहिणी पर शौक़ से शोध करवा सकते हैं। वैसे रोहिणी तो एक बहाना है, असल मामला दिल्‍ली के मिजाज़ का है जिसे भाजपा (प्रवृत्ति और विचार के स्‍तर पर इसे अन्‍ना आंदोलन भी पढ़ सकते हैं) समझ नहीं सकी है। 

भाजपा और संघ के पैरोकार वरिष्‍ठ पत्रकार वेदप्रताप वैदिक ने आज तक एक ही बात ऐसी लिखी है जो याद रखने योग्‍य है। उन्‍होंने कभी लिखा था कि इस देश का दक्षिणपंथ जनता की चेतना से बहुत पीछे की भाषा बोलता है और इस देश का वामपंथ जनता की चेतना से बहुत आगे की भाषा बोलता है। इसीलिए इस देश में दोनों नाकाम हैं। कहीं मोदी समेत भाजपा की दिक्‍कत यही तो नहीं? कहीं वे भी तो शायर मीर की तरह ”लगाने” और ”बनाने” का फर्क नहीं समझते? मुझे वास्‍तव में लगने लगा है कि किसी को जाकर नरेंद्रभाई दामोदरदास मोदी को यह बात गंभीरता से समझानी चाहिए कि 29 सितंबर, 2013 को दिल्‍ली के जापानी पार्क में उनकी ”बनी” नहीं, ”लग” गई है। ग़ालिब तो शेर कह के निकल लिए, इस ”भारत मां के शेर” का संकट उनसे कहीं बड़ा है। दिल्‍लीवालों ने आज संडे को टीवी देखकर मोदी और भाजपा की आबरू का सरे दिल्‍ली में जनाज़ा ही निकाल दिया है। 
Read more

18 Comments on “विकास रैली की पोस्‍टमॉर्टम रिपोर्ट: दिल्‍ली, 29 सितंबर 2013”

  1. मैं एक दिन जंतर मंतर वाले रास्ते के बीच की गली से निकलकर संसद मार्ग थाने की तरफ आ रहा था।गली तक लाउडस्पीकर से जरिये एक आवाज आ रही थी- हटिये हटिये, रास्ता छोड़िए, आगे बढ़ने दिजीए, यह विशाल रैली देश की सरकार को चेताने आई है, हटिए हटिए , रास्ता साफ किजीए आदि आदि ।गली से संसद मार्ग थाना तक आते आते मेरे दिमाग में ये बात बैठ गई थी कि कोई बड़ी रैली निकली है। लेकिन मैं जब थाने के सामने पहुंचा तो मैं हैरान था। कोई रैली नहीं दिख रही थी।थाने की तरफ से जंतर मंतर के चौराहे की तरफ एक खुली जीप जैसी सवारी थी और उस पर शिव सेना का दिल्ली का अध्यक्ष माइक थामे खड़ा था। उसके साथ मुश्किलन दर्जन भर लोग होंगे। मैं सोचने लगा कि आखिर माइक से इस तरह शोर मचाने से इन्हें क्या मिलेगा। लोग तो अपनी आंखों से देख रहे हैं कि दर्जन भर लोग भी नहीं है और पुलिस वाले भी माइक से आती आवाज को सुनकर धीमे धीमे हंस रहे हैं। तब मैंने उनके प्रचार की राजनीतिक शैली का विश्लेषण करने की कोशिश की। जो वहां मौजूद है उन्हें तो सच का पता पहले भी था और अब भी है। लेकिन इस कथित रैली से दूर न जाने कितने लोग इस आवाज को सुन रहे होंगे और उनके जेहन में इस रैली को लेकर क्या तस्वीर बन रही होगी? संचार और संप्रेषण के राजनीतिक दुरूपयोग को ये बाखूबी जानते हैं। झुठ को स्थापित करने की इनकी कार्य योजना बेहद खतरनाक है।

  2. खाकी चड्डी छाप चूतियों को सच्चाई हजम नहीं होती, सो यहाँ भी गाली-गलौज चालू। हाँ भाई हाँ, जो कोई फेंकू की बकवास पर ना जाये, वो सब कांग्रेसी।

  3. Ye Sanghi modi Ka thooka huwa chat ke apne aap ko pavitra samjhathe hain..modi ki is sachchai ko chhupane ka lakh jatan karen lekin dilli ne munh par karara thamacha mara hai… dhnyawad dilli

  4. चूतियों ki aulad … dekh tere se pehle gali galoch kisi ne ki hai … gandu tune hi shuru ki hai ….

  5. पूरे भारत मे एक यही पैदा हुआ सच का ठेकेदार बाकी मीडिया जोकि कॉंग्रेस की पालतू हैं उसने भी जो कल जो सच दिखाया, वो उसकी मजबूरी थी क्यूकी पूरी दुनिया की नजर इस रैली पर थी, नही ये मीडिया ये भी ना दिखाता, ओर इन महाशय को ओर कोई फोटो नही मिला तो पुलिस लाइन दिल्ली से इलाज के लिए अस्पताल ले जाये जा रहे घोड़ो का फोटो खींच कर लोगो को बेवकुफ़ बना दिया ओर चूतिये लोग बन भी गए

  6. 5 लाख लोगो का जमावड़ा था यहाँ पर लेकिन कॉंग्रेस के पालतू लोग घोड़ो की फोटो ले रहे थे सोनिया के लिए,

  7. मैं तो भाजपा का समर्थक नहीं हूं लेकिन कांग्रेस को समर्थन का अर्थ है कि मैं भ्रष्ट हूं और मुझे ऐसी सरकार का संरक्षण चाहिए जो इसे पाले पोसे। मोदी को लेकर अलग-अलग अवसरवादी समूहों में संशय है कि उनकी दाल गलेगी या नहीं, यहीं हाल भाजपा के अंदर भी एक प्रभावशाली गुट का भी है। जिस आदमी के पीछे देश और विदेश के सज्जन चोर उच्चकों से लेकर शरीफ डकैत पीछे पड़े हुए हैं और एक-एक छेद को खोजने की कोशिश कर रहे हैं तथा उसकी पार्टी के अंदर भी एक व्यवस्थवादी गुट पिछले 10 वर्षों से उसे उखाड़ने की कोशिश कर रहे है, इसके बाद भी वह आदमी टिका हुआ है तो वाकई वह सम्ॅमान के काबिल है। और दिल्ली तो उपर से नीचे एक सज्जनों से भरी है। चाहे किसी पार्टी का भी हो इस देश को एक ईमानदार और पक्के इरादे वाला नेता चाहिए।

  8. भाई यह सच हो ही नाहे शकता..,
    भाई मोदी को सुनने तो उस के दुश्मन भी जाते है

  9. @@ Ek Postmortem Mera Bhi Lekh ke Sandarbh main@@
    Abhishek Srivastav Ji lekh bahut hi sundar hain lekin lekh main jarur kuch kala hain …Mudde ki baat
    Aapko malum hona chahiye ki Delhi ki total Population kareeb Sabha Crore hain air Delhi Police ki total strength 80000 hain aur is hisab se dekhe to state main 1 police personnel 1562.50 logo ki suraksha krta hain….
    Dusri baat jo aapne kahi aapki jankari ke liye 3000 police strength 468750 yani ki aapke lekh main ulekhit dusari security ke sath 5 lakh logo ko sambhalne ke liye kafi hain.
    ….aur ek baat ki aaj tak ka reporter 4 baje morning aise logo ki byte le rha tha jo park main sayad raat hi haryana se pahuch chuke the….
    Mere hisab se koi bhi media ek exact figure kisi rally ke sandarbh main pais krta hain jaisa 10 hajar jo aapne gine hain…unki calculation team ko main badhai deta hun.
    @@Mana ki is vakt do hi log kamyab he 1 wo jo modi virodhi hain ek wo jo modifobia se grasit hain…..@@

  10. मुझे एक बात समझ नहीं आ रही कि तमाम 'बेनामी' कमेंटेटर अपने नाम क्‍यों छुपा रहे हैं। असहमति है तो मृत्‍युजय कुमार राय की तरह अपने नाम से उसे दर्ज करवाइए, इतना साहस तो रखिए। मुझे आप बेनामी गाली देंगे तो अव्‍वल उस गाली का असर नहीं होगा, दूसरे आपकी मेहनत बेकार जाएगी।

  11. hum gulam rahe yeh sach hai iska karan hai ki hum kabhi bhi gulami ki aahat ko mehsoos nahi kar paye.bharat me gulami sanghi rashtravad ka mukhota laga kar layi ja rahi hai.narendra modi par sampardayikta ke drishtikon se charcha jari hai.muslim modi ke sampirdayik hone se virodhi hain.sangh ke vicharoon ke pirbhavo me aane vale modi ka iss liye samarthan kar rahe hain ki jis tarah modi ne gujrat me musalmanon ko sabak sikhaya hai agar woh pirdhanmantri ban gaya to poore desh me sabak sikha dega ya unki sakhti logon ki samassiyaon ko door kar degi. sampirdayikta viodhi secular log bhi keval modi ke sampirdayik pehlu par charcha kar rahe hain lekin charcha ka asli bindu charcha se bahar hai.yahan tak ki modi ke virodhi congress bhi us pehloo se kanni kat rahi hai. charcha ka woh pehloo modi ki aarthik neetian hain.modi aur manmohan singh ki aarthik neetian aik hain. modi aur manohan ki aarthik neetion ke prerna sirot americi economomist milton friedman aur fredrik hayek hain.yeh dono arthshastri nijikaran ke pakshdharaur rashtriyekaran ke virodhi hain.modi unki neetion ka anukaran kar rahe hain. modi har tarah ki penssion ke virodhi hain,woh rashan ki dukane band kardena chahte hain,sarkari school aur aspatal ke virodhi hain, prakartik apda me madad diye jane ke virodhi hain,bharat ki aatmnirbharta ki nishanian sarkari udhyog yahan tak ki rail tak ko niji hathoon me diye jane ke paksh me hain, woh ponjivad ke pakke samarthak aur samajvad ke kattar dushman hain.woh bharat ki nahi americi samrajeyvad ke hitoon ki numayindagi karte hain. unke hathoon me bharat ki bagdoor de di jaye to bharat bahut jaldi pakistan ban jayega.woh kitne deshbhagat hain yeh iss baat se pata chalta hai ki apni chvi banane ka theka bhi unhon ne america ki compony apko worldvide ko de rakha hai.bharat ki aatm nirbharta ko bachana hai,usko pakistan banne se rokna hai to modi ko rokna hi hoga. unka adhyan hindu ya muslim ke chashme laga kar nahi kiya ja sakta balki unki aarthik nitiyon ka adhyan karke hi kiya ja sakta hai. sampardayikta us dhund ki tarah hoti hai jiske peeche sachchayi ojhal ho jati hai.aisa hi modi ke sath ho raha hai. sampardayikta ke chashme ko hata kar jab aap modi ka adhayan karenge to payenge ki modi desh ko gulami ki taraf le ja rahe hain haan itna faraq hai ki yeh gulami britain ki na hokar america ki hogi

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *