भाजपाई राज्यों के लोकल रोजगार कानूनों और अखंड भारत के बीच फंसी संवैधानिकता


भारतीय संविधान का अनुच्छेद 19:
19(ङ) भारत के राज्यक्षेत्र के किसी भाग में निवास करने और बस जाने का, और
19(छ) कोई वृत्ति, उपजीविका, व्यापार या कारोबार करने का अधिकार होगा।

हरियाणा का नया कानून:
हरियाणा विधानसभा द्वारा नवंबर 2020 में पारित Haryana state Employment of Local Candidates Act, 2020  को राज्यपाल की मंजूरी के पश्चात राज्य की निजी कम्पनियों के लिए  50,000 मासिक तनख्वाह तक वाले रोजगार को स्थानीय नागरिक (जिसका जन्म राज्य में हुआ हो या जो विगत 5 वर्षो से राज्य में रह रहा हो) के लिए आरक्षित करना अनिवार्य कर दिया है।

इन दोनों की एक साथ मौजूदगी संवैधानिकता का प्रश्न उत्पन्न करती है।

जब केंद्र की भाजपा सरकार एक राष्ट्र-एक टैक्स, एक राष्ट्र-एक राशन कार्ड जैसी नीतियों को लेकर आगे बढ़ रही हो, जम्मू कश्मीर से राज्य का दर्जा छीन एक विधान के बात की गई हो और वहां की नौकरियों को समस्त भारतीयों के लिए खोला जा रहा हो, तब हरियाणा की भाजपा-जजपा सरकार संविधान से परे जाकर हरियाणा से बाहर की जनता के लिए बेगानी क्यों बन रही है?

जिस समय अमेरिका में रोजगार कर रहे भारतीय मूल के नागरिक और भारत की सरकार पूर्ववर्ती ट्रम्प सरकार के द्वारा H1B वीजा के प्रावधानों को कठोर बनाकर अपने यहां की नौकरियों को अमेरिकी जनता के लिए सुरक्षित करने की नीति का विरोध कर रहे हों, उस समय हरियाणा की सरकार का स्थानीय निवासियों के लिए निजी नौकरियों को आरक्षित करने का असंवैधानिक कदम कहां तक तर्कसंगत है?

इस सवाल का जवाब हरियाणा में मौजूद राष्ट्रीय औसत से अधिक बेरोजगारी, जजपा के चुनावी वादे तथा दो वर्ष पूर्व आंध्र प्रदेश की जगनमोहन रेड्डी सरकार द्वारा लाये गये समान कानून में हो सकता है। आंध्र प्रदेश में निजी क्षेत्र में स्थानीय नागरिक के लिए ऐसे प्रावधान को आंध्र प्रदेश उच्च न्यायालय में मिली चुनौती के पश्चात इसे लागू नहीं किया गया है।

इससे पूर्व मध्यप्रदेश में 15 महीनों की कमलनाथ सरकार ने अपने कार्यकाल के शुरुआत में ही राज्य की उद्योग नीति में परिवर्तन कर रोजगार में स्थानीय लोगों के लिए 70% आरक्षण का प्रावधान किया था। तब इसका विरोध बिहार बीजेपी और जेडीयू तथा यूपी की समाजवादी पार्टी ने किया था। इसी तरह आंध्र प्रदेश की जगनमोहन रेड्डी सरकार ने 75% आरक्षण निजी नियोजन में स्थानीय लोगों को दिया था। महाराष्ट्र सरकार ने राज्य वित्त सहायता प्राप्त उद्योगों में अनस्किल्ड मजदूरों में स्थानीय लोगों को आरक्षण दिया था।

देश के भीतर संरक्षणवाद की ऐसी ही नीतियों ने क्षेत्रवाद को प्रश्रय दिया है। हरियाणा के उपमुख्यमंत्री दुष्यंत चौटाला ने अपनी सरकार के इस निर्णय को स्वागत योग्य कदम बताया है। जजपा के चुनावी घोषणापत्र में शामिल इस वादे को लागू करने के बाद चौटाला का इंडियन एक्सप्रेस में लिखे आलेख (13 मार्च, 2021) का यह हिस्सा वाकई गैर-जिम्मेदाराना है, जिसमें  प्रवासी मजदूरों और समाज में उपस्थित अपराध दर के बीच सम्बन्ध स्थापित किया गया है:

इस कानून से सिर्फ हरियाणा के नौजवानों को लाभ नहीं होगा। इससे नियोक्‍ताओं को ज्‍यादा फायदा होगा क्‍योंकि उनकी पहुंच एक योग्‍य और प्रशिक्षित स्‍थानीय कार्यबल तक होगी। स्‍थानीय कर्मचारियों के होने से अनुपस्थिति कम होगी, प्रवासी श्रमिकों पर निर्भरता कम होगी और समाज में अपराध की दर कम होगी।
(This law does not benefit the Haryana youth alone. It endows employers with great benefits, through access to a qualified and trained local workforce. Having local employees will reduce absenteeism, dependency on migrant labourers and crime rate in the society.)

इस संरक्षणवादी नीति से भारत की एकता-अखंडता की उस भावना को धक्का लगेगा, जिसकी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ लगातार बात करता है। साथ ही जन्मस्थान तथा निवास के आधार पर आरक्षण से अर्थव्यवस्था पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा। जब विभिन्न बहुराष्ट्रीय कंपनियां अमेरिका-चीन ट्रेड वॉर के मद्देनजर चीन से अपने निवेश को निकाल भारत जैसे सस्ते श्रम वाले राष्ट्र में निवेशित करना चाहती हैं तब राज्य सरकारों का शासकीय (जैसा मध्य प्रदेश में शिवराज सरकार द्वारा किया गया) और अशासकीय नियोजन में स्थानीय जनता के लिए आरक्षण की यह नीति अर्थव्यवस्था के प्रतिकूल है।

अपने को पहले से ही हाशिये पर महसूस कर रही जम्मू कश्मीर की जनता के लिए यह खबर अपने को दोयम नागरिक समझने का अवसर प्रदान करती है जब वहां की नौकरियों को पूरे राष्ट्र के लिए खोल दिया गया है।

संरक्षणवाद की यह  नीति असंवैधानिक है। राज्य सरकार को नौकरियों की संख्या बढ़ाने पर ध्यान केंद्रित करना होगा। ऐसे समय में यूपी तथा बिहार सरकारों को अपनी नीति का विश्लेषण करना होगा जब उनकी जनता रोजगार के लिए आंतरिक पलायन पर निर्भर है। आने वाले वर्षों में संरक्षणवादी नीतियों की बहुलता के चलते उन्हें अपने राज्य में ही नौकरियों के अवसर को सुनिश्चित करना पड़ेगा।


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